कैप्टन व सिद्धू में जारी आपसी ‘द्वंद्व युद्ध’ लंबा खिंचने से पार्टी के पतन के संकेत

Edited By Vatika,Updated: 22 Jun, 2019 09:18 AM

clash between sidhu and captain

मुख्यमंत्री कै. अमरेन्द्र सिंह द्वारा 2 सप्ताह पहले विभागों में फेरबदल करके कैबिनेट मंत्री नवजोत सिंह सिद्धू को अपेक्षा के अनुसार ही बड़ा झटका देते हुए उनसे स्थानीय निकाय विभाग वापस ले लिया व उन्हें इसकी एवज में बिजली विभाग थमा दिया।

पठानकोट (शारदा): मुख्यमंत्री कै. अमरेन्द्र सिंह द्वारा 2 सप्ताह पहले विभागों में फेरबदल करके कैबिनेट मंत्री नवजोत सिंह सिद्धू को अपेक्षा के अनुसार ही बड़ा झटका देते हुए उनसे स्थानीय निकाय विभाग वापस ले लिया व उन्हें इसकी एवज में बिजली विभाग थमा दिया।
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देखने में यह कार्य जितना सरल लगता था, परन्तु परिणाम कांग्रेस पार्टी के लिए उतने ही गंभीर होते जा रहे हैं, जिसकी उम्मीद नहीं थी। विश्लेषकों का मानना था कि हाईकमान शीघ्र ही इस मसले का कोई न कोई समाधान निकाल लेगा, परन्तु राहुल गांधी, प्रियंका गांधी व अहमद पटेल के हस्तक्षेप के बाद भी दोनों दिग्गजों में बना हुआ डैडलॉक इस बात का द्योतक है कि अब स्थिति बद से बदतर होती जा रही है। मुख्यमंत्री कै. अमरेन्द्र व सिद्धू में जो आर-पार की लड़ाई की बात पंजाब केसरी ने शुरू में ही उजागर कर दी थी अंतत: सही साबित हुई। दोनों के मनों में पूरी तरह से प्रतिद्वंद्वी की भांति तल्खी कायम है तथा गांठ बढ़ती जा रही है। सत्ता में 28 महीने बिताने के बाद कांग्रेस पार्टी में फूट स्थायी होती जा रही है। पिछले 20 दिनों से पार्टी आपस में ही लड़ रही है तथा इसके नेता एक-दूसरे पर निशाना साधने से नहीं चूक रहे हैं। समूचा पंजाब व प्रशासन भी इस लड़ाई पर निगाहें गाड़े हुए है जिससे कांग्रेस पार्टी की प्रदेश में छवि खराब होने से अनिश्चित्तता का माहौल बनता जा रहा है। वहीं इन 2 दिग्गजों की लड़ाई में अगर कांग्रेस का पतन शुरू होता है तो कौन सी दूसरी राजनीतिक पार्टी इस मौके का लाभ उठाने में कामयाब होगी, इस पर सभी की निगाहें टिकी हुई हैं क्योंकि अकाली दल के साथ भाजपा व तीसरा विकल्प भी कतार में है।

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डैड लॉक का हाईकमान के पास भी नहीं तोड़
वहीं सिद्धू के राजनीतिक जीवन पर अगर झांका जाए तो एक बात तो स्पष्ट है कि वह अपनी राजनीति की कर्मभूमि प्रदेश की गुरुनगरी अमृतसर में ही रखना चाहते हैं, वहीं जीवन में जो भी उपलब्धि हासिल करना चाहते हैं वह पंजाब में ही करना चाहते हैं। यही कारण है कि अमृतसर से टिकट न मिलने के बाद उन्होंने अरुण जेतली के अमृतसर चुनाव लडऩे के समय प्रचार आदि में भाग तक नहीं लिया था। राज्यसभा का सदस्य बनकर भाजपा को अलविदा कह दिया क्योंकि उन्हें कहा गया था कि वह पंजाब में सियासी पारियों को भूल जाएं। 

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कैप्टन ने सिद्धू का विभाग तो बदला पर स्वीकार न करने पर नहीं निकाल पा रहे कैबिनेट से
मुख्यमंत्री कै. अमरेन्द्र ने सिद्धू के विभाग को तो बदल दिया परन्तु पिछले एक पखवाड़े से यह मामला दिल्ली व चंडीगढ़ के बीच लटका हुआ है। इतना लंबा समय विभाग में कोई मंत्री न होने के चलते चाहिए तो यह था कि मुख्यमंत्री मंत्रीपद न लेने की स्थिति में सिद्धू को कैबिनेट से बाहर कर सकते थे, जिससे पार्टी व जनता में अ‘छा संदेश जाता। अब दोनों दिग्गजोंं के वर्चस्व की लड़ाई लंबी ङ्क्षखचती जा रही है उसमें जीत का सेहरा किसके सिर बंधेगा यह तो पता नहीं परन्तु कांग्रेस पार्टी की प्रतिदिन हो रही हार निश्चित है। सिद्धू की भांति एक अन्य कैबिनेट मंत्री ओ.पी. सोनी भी अपने विभाग का चार्ज नहीं ले रहे हैं। धीरे-धीरे यह स्थिति दो से चार व चार से आठ तबदील होने में समय नहीं लगाएगी। अंतत जिस बात का डर है कांग्रेस पार्टी गुटबंदी व वर्चस्व की लड़ाई में रसातल की ओर अग्रसर होती जाएगी। 

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मां वैष्णो देवी में नतमस्तक होने के बाद सिद्धू ले सकते हैं बड़ा फैसला
जिस प्रकार से राहुल गांधी व प्रियंका गांधी तथा अहमद पटेल ने सिद्धू के साथ पारिवारिक संबंध बना लिए हैं, वह इस बात का द्योतक है कि उनके लिए अब कांग्रेस को छोडऩा एक बहुत ही बड़ा फैसला हो सकता है। हाईकमान उन्हें कोई रिलीफ दिलाने की स्थिति में नहीं है जिससे सिद्धू का सियासी कद प्रदेश में बड़ा हो सके। वहीं समय-समय पर सिद्धू मां वैष्णो देवी दरबार में नतमस्तक होते रहे हैं। आगामी समय में मां वैष्णो दरबार में जाकर तप कर सकते हैं वहां से वापसी पर वह कोई बड़ा फैसला ले सकते हैं।  

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प्रदेश के बाहर राजनीति नहीं करना चाहते सिद्धू
 सूत्रों के अनुसार राहुल गांधी के जन्म दिन वाले दिन उनकी हुई मीटिंग में सिद्धू ने स्पष्ट किया है कि वह अपनी राजनीति प्रदेश के बाहर नहीं करना चाहते। वहीं डैडलॉक न टूटने पर पंजाब में वापस लौटकर सिद्धू मैडीटेशन में लीन हो गए। दूसरी ओर कांग्रेस पार्टी हाईकमान क्या सिद्धू को प्रदेश का गृह मंत्रालय या स्थानीय निकाय विभाग सौंपने या कांग्रेस का प्रदेश अध्यक्ष बनाने की स्थिति में है। अगर नहीं तो इस लड़ाई का अंत क्या होगा पाठकगण खुद अनुमान लगाने की स्थिति में होंगे।

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