Edited By Vatika,Updated: 15 Jan, 2019 09:34 AM
आगामी लोकसभा चुनावों को लेकर केंद्र की मोदी सरकार ने एक बार फिर से अपना कूटनीतिक जादू चलाना शुरू कर दिया है। इससे चुनावी मौसम में समीकरण बदलने शुरू हो गए हैं।यहां वर्णनीय है कि कुछ माह पूर्व कांग्रेस ने मोदी सरकार पर हल्ला बोलकर एक बार लोगों के बीच...
जालंधर(बुलंद): आगामी लोकसभा चुनावों को लेकर केंद्र की मोदी सरकार ने एक बार फिर से अपना कूटनीतिक जादू चलाना शुरू कर दिया है। इससे चुनावी मौसम में समीकरण बदलने शुरू हो गए हैं।यहां वर्णनीय है कि कुछ माह पूर्व कांग्रेस ने मोदी सरकार पर हल्ला बोलकर एक बार लोगों के बीच मोदी की छवि को धूमिल करने में सफलता हासिल की थी, पर जो मौजूदा हालात हैं वो कुछ और ही बयान करते हैं।
मामले बारे राजनीतिक विद्वान बताते हैं कि मोदी सरकार पूरे कूटनीतिक रूप में आ चुकी है। मोदी सरकार ने पिछले कुछ दिनों में ऐसे कदम उठाए हैं कि जिससे पंजाब की कांग्रेस और अकाली दल दोनों चकरा गए हैं। जानकार बताते हैं कि मोदी सरकार द्वारा सबसे पहले डेरा सच्चा सौदा के प्रमुख गुरमीत राम रहीम को जेल में पहुंचाकर सिखों की तारीफ बटोरी। गत दिनों करतारपुर कोरीडोर को हरी झंडी देना, सज्जन कुमार सहित 2 अन्य को सिख विरोधी दंगों में जेल तक पहुंचाने जैसे कदमों ने देश के सिख वोटरों को मोदी का कायल कर दिया है। और आज जो कट्टर अकाली या कट्टर कांग्रेसी सिख थे वे भी एक बार मोदी की तारीफ करने से पीछे नहीं हट रहे।ऐसे में अकाली दल के लिए यह परेशानी बढ़ गई है कि कहीं उसका वोट बैंक भाजपा में शिफ्ट न हो जाए।
अगर ऐसा होता है तो भाजपा का पंजाब में दबदबा बढ़ेगा और अकाली दल कमजोर होगा। इतना ही नहीं बरगाड़ी कांड और बलबलकलां गोलीकांड के बाद से अकाली दल की धूमिल छवि सुधरने का नाम नहीं ले रही। ऐसे में जानकार बताते हैं कि अगर मोदी ने कहीं इस केस में केंद्रीय एजैंसियों से जांच करवाकर असल आरोपियों को जेल तक पहुंचा दिया तो सारा मालवा मोदी की जेब में होगा। ऐसे में गत दिनों सवर्ण जातियों के गरीबों को 10 प्रतिशत आरक्षण देकर मोदी ने जनरल कैटेगरी को भी खुश कर दिया है। इसी बीच पंजाब में सिख सियासत बुरी तरह बंटी हुई है। बरगाड़ी मोर्चे के बंटने के बाद अब सिखों को तीसरे सियासी मोर्चे से आस है जिसमें सुखपाल खैहरा, डा. गांधी, बैंस बंधु, बसपा सहित अगर टकसाली अकाली शामिल हो जाते हैं तो इससे सिख वोट अकाली दल से टूट कर और बिखर जाएगी।
ऐसे में जानकार सूत्र बताते हैं कि मोदी द्वारा पंजाब में सिखों को भाजपा से जोडऩे के लिए लगातार प्रयत्न किए जा रहे हैं। इसमें आर.एस.एस. खास भूमिका निभा रहा है।उधर कांग्रेस की पंजाब में हालत पतली हुई पड़ी है। बच्चे-बच्चे की जुबान पर है कि पंजाब के मुख्यमंत्री कै. अमरेंद्र पूरी तरह मोदी के बस में हुए पड़े हैं और पंजाब सरकार कैप्टन नहीं मोदी ही चला रहे हैं। इसी बीच सट्टा बाजार की मानें तो 2 महीने पहले पंजाब की जो 13 लोकसभा सीटों में से 10 कांग्रेस की झोली में देखी जा रही थीं वो आज कम होकर 8 हो गई हैं। अगर यही कूटनीति मोदी सरकार की जारी रही तो लोकसभा चुनावों तक यह गिनती और कम होकर 6 रह सकती है। देखना होगा कि आगामी लोकसभा चुनावों में पंजाब कांग्रेस और अकाली दल मोदी की नीतियों का कैसे सामना करते हैं।