बाल मजदूरी को खत्म करने के दावे ‘हवा’ में, भीख मांग रहा ‘देश का भविष्य’

Edited By swetha,Updated: 07 May, 2018 09:39 AM

child labour

शहर में रोजाना हर चौक-चौराहा पर छोटे बच्चे वाहन चालकों से भीख मांगते नजर आते हैं। कोई भी ऐसा बच्चा जिसकी उम्र 14 वर्ष से कम हो और वह जीविका के लिए काम करता है,वह बाल मजदूर कहलाता है। गरीबी, लाचारी और माता-पिता की प्रताडऩा के चलते ये बच्चे बाल मजदूरी...

अमृतसर (रमन): शहर में रोजाना हर चौक-चौराहा पर छोटे बच्चे वाहन चालकों से भीख मांगते नजर आते हैं। कोई भी ऐसा बच्चा जिसकी उम्र 14 वर्ष से कम हो और वह जीविका के लिए काम करता है,वह बाल मजदूर कहलाता है। गरीबी, लाचारी और माता-पिता की प्रताडऩा के चलते ये बच्चे बाल मजदूरी के इस दलदल में धंसते चले जा रहे हैं। आज दुनिया भर में 215 मिलियन ऐसे बच्चे हैं जिनकी उम्र 14 वर्ष से कम है।  

वहीं लेबर डिपार्टमैंट द्वारा हर बार कागजों में ही बाल मजदूरी सप्ताह मनाया जाता है। कुछ जगहों पर छापामारी कर गिनती के ही बच्चों को काम करते पकड़ते हैं, लेकिन सारे शहर में बाल मजदूरी करते बच्चों की भरमार है। केंद्र सरकार ने 1986 में कानून पास कर 14 साल से कम आयु के बच्चों से काम कराने पर प्रतिबंध लगा रखा है। इसके तहत बच्चों से फैक्ट्रियों, कारखानों, खदानों और अन्य कार्य (जिनसे सेहत को खतरा हो) कराना कानूनी अपराध है। इसका उल्लंघन करने पर 3 माह से लेकर एक साल तक की सजा का प्रावधान है।

 

इसके अलावा 20 हजार रुपए तक जुर्माना भी हो सकता है। किसी विशेष स्थिति में सजा की अवधि 6 माह से 2 साल तक भी बढ़ाई जा सकती है। हैरत की बात है कि विभाग को फोरेस चौक, लारेंस रोड, कस्टम चौक पर बच्चे बाल मजदूरी करते नजर नहीं आते हैं जबकि वहां से गुजरने वाला हर शख्स इन्हें देखता है। इन्हीं सड़कों पर शहर के 4 बड़े अधिकारी डी.सी., इंकम टैक्स कमिश्नर, निगम कमिश्नर एवं पुलिस कमिश्नर भी यहां से गुजरते हैं लेकिन किसी ने भी लेबर डिपार्टमैंट को कोई नसीहयत नहीं दी। 

 

विभाग के पास एक तो इंस्पैक्टर की कमी है व कार्रवाई भी नाममात्र है। शहर के अनेकों ढाबों-रेस्तरां, होटल, फैक्ट्रियों, कारखानों, चाय की दुकानों, रेहडियों व मंडियों में बच्चों से बाल मजदूरी करवाई जा रही है। विभाग किसी पर कार्रवाई करने के लिए तैयार नहीं है। सभी अधिकारी छापामारी के दौरान  नेताओं के दबाव को लेकर डरते हैं। सुप्रीम कोर्ट के तो यहां तक निर्देश हैं कि जिस भी संस्थान से बाल श्रमिक मिलता है, उससे 20 हजार रुपए हर्जाना वसूल किया जाए और उसमें 5 हजार रुपए सरकार डालकर बाल श्रमिक के परिवार वालों को पुनर्वास के लिए दे। इतना ही नहीं सुप्रीम कोर्ट ने तो यहां तक निर्देश दिए हुए हैं कि बाल श्रमिक के परिवार में से किसी एक को सरकार नौकरी मुहैया करवाए, लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं हो रहा है। 

 

बच्चें से भीख मंगवा कर चला रहे बिजनैस
शहर में मल्टी स्टोरी बिल्डिंग, मॉल, मार्कीट, खाने-पीने की जगह, चौक-चौराहों, धार्मिक स्थलों पर कुछ लोग बच्चों से भीख मंगवाकर अपना बिजनैस चला रहे हैं। अगर भीख मांगने वाले बच्चों से कोई भी पूछता कि किसके कहने पर भीख मांग रहे हो तो वे बच्चे वहां से भाग जाते हैं। कई बार कुछ एन.जी.ओ. के सदस्यों ने इन बच्चों को पकड़ा है व सोशल मीडिया पर ऐसे केस दिखाए हैं कि बच्चे अपने चेहरे पर जख्म दिखाने के लिए चिकन आदि का मांस लगाकर ऊपर पट्टी बांध लेते हैं जिससे लोग इन पर तरस खाकर भीख दे देते हैं।

 

गरीबी और बेबसी के आगे योजना विफल
जनवरी 2005 में नेशनल चाइल्ड लेबर प्रोजैक्ट स्कीम को देश के 21 प्रदेशों के 250 जिलों तक बढ़ाया गया। आज सरकार ने 8वीं तक की शिक्षा को अनिवार्य और नि:शुल्क कर दिया है, लेकिन लोगों की गरीबी और बेबसी के आगे यह योजना भी निष्फल साबित होती दिखाई दे रही है। बच्चों के माता-पिता सिर्फ इस वजह से उन्हें स्कूल नहीं भेजते क्योंकि उनके स्कूल जाने से परिवार की आमदनी कम हो जाएगी। 

14 नवम्बर को ही दिखती है विभाग की हलचल
लेबर डिपार्टमैंट द्वारा शहर में बाल मजदूरी खात्मा सप्ताह 14 नवम्बर को मनाया जाता है। हर वर्ष विभाग द्वारा स्पैशल टॉस्क फोर्स तो बनाई जाती रही है लेकिन खानापू्र्ति कर उसे बंद किया जाता है। बाल मजदूरी खात्मा सप्ताहमनाने के बावजूद शहर में होटल, रैस्टोरेंट, मॉल, कॉम्पलैक्स, चौक-चौराहों में बच्चे भीख मांगते एवं रेहडियों व दुकानों  में काम करते देखे जा सकते हैं।

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