पेट की खातिर रोज मौत के मुंह में जाता है यह बच्चा

Edited By Punjab Kesari,Updated: 29 Nov, 2017 08:34 AM

child labor illiteracy poverty

कहते हैं बचपन हर गम से अन्जान होता है लेकिन गरीबी की मार बहुत सारे बच्चों को छोटी उम्र में ही दो-जून की रोटी कमाने के लिए ऐसे काम करने को मजबूर कर देती है जिसे देखकर हम और आप हैरत में पड़ जाते हैं। सड़क के किनारे अक्सर छोटे मासूम बच्चे जिस तरह के...

होशियारपुर(अमरेन्द्र): कहते हैं बचपन हर गम से अन्जान होता है लेकिन गरीबी की मार बहुत सारे बच्चों को छोटी उम्र में ही दो-जून की रोटी कमाने के लिए ऐसे काम करने को मजबूर कर देती है जिसे देखकर हम और आप हैरत में पड़ जाते हैं। सड़क के किनारे अक्सर छोटे मासूम बच्चे जिस तरह के कारनामे दिखाते मिल जाते हैं वह आपके और हमारे वश के बाहर की बात है। रस्सी पर करतब दिखाते इन बच्चों को जब आसपास से गुजरने वाले लोग देखते हैं तो बिना पूरा खेल देखे वे वहां से निकल नहीं पाते। इन दिनों होशियारपुर के चौक चौराहों पर रस्सी पर अपने करबत दिखाता 8 साल का संजय भी रोटी जुटाने की जद्दोजहद में अपने परिवार के साथ इस काम को अंजाम देता दिख रहा है। आज वह यहां है, कल कहां होगा, किसी को मालूम नहीं। नया कस्बा, नया शहर, नया प्रदेश, कारनामा वही पुराना। हवा में लहराती रस्सी पर कई तरह की कलाबाजियां दिखा लोगों का मनोरंजन करना बस यही उसके नसीब में है। 


रोजाना 700 से 800 रुपए होती है कमाई
शहर के भगत सिंह नगर चौक में संजय कभी एक पैर में थाली फंसाकर रस्सी पर कदम आगे बढ़ाता है तो कभी छल्ले में पैर फंसाकर। इस रस्सी के एक सिरे से दूसरे सिरे तक वह हवा में लहराते हुए, एक लाठी के सहारे संतुलन बनाते हुए पहुंच जाता है। इसके बाद लोग ताली बजाते हैं और भीड़ में से कुछ लोग रुपए देने उसके पास पहुंच जाते हैं। दो पल ठहरने के बाद यह बच्चा एक बार फिर वापस मुड़ता है और रस्सी के दूसरे सिरे पर पहुंचने के लिए चलना शुरू कर देता है। शाम की रोटी जुटाने के लिए यह बच्चा अपने परिवार के साथ दिन भर शहर के अलग-अलग हिस्सों में ऐसे ही करतब दिखाता है।  इस बच्चे का पिता दिनेश बताता है कि वह मूलरूप से छत्तीसगढ़ का रहने वाला है। पूरा परिवार ऐसे ही खानाबदोश की तरह एक शहर से दूसरे शहर घूमते और करतब दिखाते हुए आगे बढ़ता जाता है। रोजाना औसतन 700 से 800 रुपए की कमाई हो जाया करती है।


कहां है अनिवार्य शिक्षा का अधिकार
मां की ममता, पिता का दुलार, दोस्तों के साथ स्कूल की मौज करना हर बच्चे की चाहत होती है लेकिन 8 साल के मासूम संजय के नसीब में यह सब नहीं है। रोज सुबह अपने डेरे से सूखी रोटी और चटनी रख छोटे-छोटे भाई-बहनों और मां-बाप के साथ शहर की ओर रुख करता है। गरीबी की वजह से पढऩे की उम्र में परिवार का भरण पोषण करने के लिए संजय खतरनाक करतब दिखाने को मजबूर है। संजय ही नहीं कई और मासूम बच्चे सड़कों पर कूड़ा बीनते, होटलों पर काम करते देखे जा सकते हैं। यह स्थिति तब है जब अनिवार्य शिक्षा का अधिकार, बालश्रम, बाल अधिकार कानून देश में लागू है। किसी भी जिम्मेदार अधिकारी की नजर ऐसे मासूम बच्चों पर न पडऩे से बचपन में ही छोटे कंधों पर बड़ा बोझ ढोने के लिए इन्हें मजबूर होने को विवश होना पड़ता है।

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