ऊंची इमारतों के सामने बौने साबित हो रहे कायदे-कानून, बिल्डर्स कर रहे नियमों का उल्लंघन

Edited By Updated: 20 May, 2017 01:14 PM

chandigarh news

पंजाब में एक के बाद एक बुलंद हो रही ऊंची-ऊंची इमारतों के सामने सभी नियम-कायदे बौने होते जा रहे हैं।

चंडीगढ़ (अश्वनी) : पंजाब में एक के बाद एक बुलंद हो रही ऊंची-ऊंची इमारतों के सामने सभी नियम-कायदे बौने होते जा रहे हैं। हालात यह हैं कि निर्माण योजनाओं को जिन शर्तों के साथ मंजूरी दी जाती है, वे शर्तें निर्माण चालू होते ही हवा-हवाई हो रही हैं। ये तथ्य निर्माण योजनाओं के रिकॉर्ड की जांच-पड़ताल के दौरान सामने आए हैं। बाकायदा, अकाऊंटैंट जनरल पंजाब ने इस पर विस्तृत रिपोर्ट भी तैयार की है। पोस्ट क्लीयरैंस मॉनीटरिंग ऑफ एन्वायरनमैंट क्लीयरैंस के नाम से तैयार रिपोर्ट में कहा कि पंजाब में निर्माणाधीन योजनाओं की जांच-पड़ताल के लिए ठोस व्यवस्था नहीं है। 


इसके चलते पर्यावरण संरक्षण जैसे महत्वपूर्ण विषय की सरेआम अनदेखी हो रही है। पंजाब पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड (पी.पी.सी.बी.) जैसे जिन सरकारी संस्थानों पर निर्माण योजनाओं की जांच का जिम्मा है, वह अपनी जिम्मेदारी का सही तरीके से निर्वाह नहीं कर रहे हैं। अलबत्ता, जांच-पड़ताल की जिम्मेदारी से पल्ला झाडऩे को ज्यादा अहमियत दे रहे हैं।


25 योजनाओं की पड़ताल की गई
यह रिपोर्ट प्रदेश में 25 विभिन्न निर्माण योजनाओं की पड़ताल के आधार पर तैयार की गई है। इसमें कहा गया है कि ऑडिट पार्टी ने पंजाब पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड के साथ मिलकर 9 योजनाओं का मुआयाना किया लेकिन बोर्ड अधिकारियों ने केवल 4 इंस्पैक्शन रिपोर्ट पर ही सांझा हस्ताक्षर किए। वहीं, बाकी चिह्निïत की गईं 16 योजनाओं में से 6 योजनाओं का मौका-मुआयना पर्यावरण मंत्रालय के चंडीगढ़ स्थित क्षेत्रीय कार्यालय के साथ मिलकर संभव हो सका।

 

रिन्यू करवाए बिना निर्माण जारी
जांच में पाया गया कि एन्वायरनमैंट क्लीयरैंस की मियाद खत्म होने के बाद भी निर्माण जारी है। क्लीयरैंस 5 साल की अवधि के लिए दी जाती है। इसके बाद रिन्यू करवाना होता है लेकिन बिना रिन्युअल के ही निर्माण जारी हैं। और तो और पी.पी.सी.बी. की कन्सैंट की अवधि समाप्त होने के बाद भी निर्माण बदस्तूर जारी रहा। क्लीयरैंस के दौरान कंडीशन होती है कि संचालक अलग से एन्वायरनमैंट मैनेजमैंट सैल स्थापित करेगा। जांच में पाया गया कि चिह्निïत योजनाओं में 3 जगह सैल की कोई व्यवस्था नहीं की गई। साथ ही, मॉनीटरिंग टैस्ट भी नहीं किए गए।

 

25 योजनाओं की पड़ताल की गई
यह रिपोर्ट प्रदेश में 25 विभिन्न निर्माण योजनाओं की पड़ताल के आधार पर तैयार की गई है। इसमें कहा गया है कि ऑडिट पार्टी ने पंजाब पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड के साथ मिलकर 9 योजनाओं का मुआयाना किया लेकिन बोर्ड अधिकारियों ने केवल 4 इंस्पैक्शन रिपोर्ट पर ही सांझा हस्ताक्षर किए। वहीं, बाकी चिह्निïत की गईं 16 योजनाओं में से 6 योजनाओं का मौका-मुआयना पर्यावरण मंत्रालय के चंडीगढ़ स्थित क्षेत्रीय कार्यालय के साथ मिलकर संभव हो सका।

 

रिन्यू करवाए बिना निर्माण जारी
जांच में पाया गया कि एन्वायरनमैंट क्लीयरैंस की मियाद खत्म होने के बाद भी निर्माण जारी है। क्लीयरैंस 5 साल की अवधि के लिए दी जाती है। इसके बाद रिन्यू करवाना होता है लेकिन बिना रिन्युअल के ही निर्माण जारी हैं। और तो और पी.पी.सी.बी. की कन्सैंट की अवधि समाप्त होने के बाद भी निर्माण बदस्तूर जारी रहा। क्लीयरैंस के दौरान कंडीशन होती है कि संचालक अलग से एन्वायरनमैंट मैनेजमैंट सैल स्थापित करेगा। जांच में पाया गया कि चिह्निïत योजनाओं में 3 जगह सैल की कोई व्यवस्था नहीं की गई। साथ ही, मॉनीटरिंग टैस्ट भी नहीं किए गए।


बिना मंजूरी के भू-जल का दोहन
जांच में यह भी पाया गया कि योजना संचालकों ने नियमों को ताक पर रखकर भू-जल का दोहन किया। एक संचालक ने तो सैंट्रल ग्राऊंड वाटर बोर्ड से मंजूरी तक नहीं ली। 
वहीं, तीन संचालकों को जिस अवधि के लिए मंजूरी प्रदान की गई थी, उसके खत्म होने के बाद भी वह भू-जल का दोहन करते रहे। इसी कड़ी में तीन संचालकों ने डीजल जैनरेटर सैट्स से निकलने वाली घातक कचरे के निस्तारण की कोई व्यवस्था नहीं की और न ही इस संबंध में पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड से अनिवार्य मंजूरी ली।

 

आपातकालीन व्यवस्था हवा-हवाई 
जांच में पाया गया कि उल्लंघन करते हुए कई संचालकों ने आपातकालीन व्यवस्था योजना तक को तवज्जो नहीं दी। यहां तक कि मजदूरों के लिए प्राथमिक उपचार की सुविधा तक उपलब्ध नहीं करवाई गई। डिजास्टर मैनेजमैंट प्लान भी तैयार नहीं करवाया गया जबकि क्लीयरैंस में इस शर्त को सबसे अहम जगह दी गई है। 
ऑडिट रिपोर्ट भी गायब: हर वर्ष पी.पी.सी.बी. के पास एन्वायरनमैंटल ऑडिट रिपोर्ट/स्टेटमैंट जमा करवानी होती है, लेकिन चार संचालकों ने ऐसा नहीं किया। वहीं, एक संचालक ने 3 साल में एक बार ही रिपोर्ट जमा करवाने की जहमत उठाई। 

 

ग्रीन बैल्ट तक नहीं बनाई 
नियमानुसार पर्यावरण मंजूरी लेने वाले संचालक को योजना वाली जगह के 33 फीसदी क्षेत्र को ग्रीन बैल्ट के तौर पर विकसित करना होता है। जांच में 8 संचालकों को नियम की अनदेखी करते हुए पाया गया। एक योजना के संचालक ने एन्वायरनमैंट मैनेजमैंट प्लान सौंपने के बावजूद बिना पौधे के छोटे पार्क की जगह रखी। वहीं, एक अन्य संचालक ने योजना वाली जगह की बजाय अन्य जगह पर पार्क विकसित कर दिया। इसी तरह, अन्य संचालकों ने भी हरियाली की अनिवार्य शर्त का उल्लंघन किया।

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