Edited By Punjab Kesari,Updated: 02 Oct, 2017 11:17 AM
नोटबंदी के बाद से ठंडे पड़े रीयल एस्टेट बाजार और जी.एस.टी. के बाद से सुस्त चल रहे व्यापार की मार से उबरने के प्रयास में लगे ईंट-भट्ठा उद्योग अब धुएं के मुद्दे पर जिग-जैग (इंड्यूस्ड ड्राफ्ट्स टैक्नोलॉजी) चिमनी की मार के चलते दम तोड़ता दिखाई दे रहा है।
होशियारपुर (अमरेन्द्र): नोटबंदी के बाद से ठंडे पड़े रीयल एस्टेट बाजार और जी.एस.टी. के बाद से सुस्त चल रहे व्यापार की मार से उबरने के प्रयास में लगे ईंट-भट्ठा उद्योग अब धुएं के मुद्दे पर जिग-जैग (इंड्यूस्ड ड्राफ्ट्स टैक्नोलॉजी) चिमनी की मार के चलते दम तोड़ता दिखाई दे रहा है।
हालात ऐसे हैं कि मंदी के चलते ठप्प पड़े जिले के एक चौथाई से भी ज्यादा ईंट-भट्ठा मालिक कोई और कारोबार करने का विकल्प तलाशने लगे हैं। वहीं बड़े सरमायेदार के तौर पर अन्य कारोबारों में भी पैठ रखने वाले इक्का दुक्का मालिकों ने तो 30 से 40 लाख रुपए खर्च करके जिग-जैग टैक्नोलॉजी वाले चिमनी तैयार करा ली है। केन्द्रीय प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड के हवाले से साफ कर दिया गया है कि इस साल के अंत तक सभी ईंट-भट्ठे जिग-जैग तकनीक को अपनाएं अन्यथा आवश्यक कार्रवाई के लिए तैयार रहें।
ईंट-भट्ठा मालिकों में मचा है हाहाकार
होशियारपुर जिले में इस समय 128 ईंट-भट्ठे हैं, जिसमें से 90 के करीब भट्ठे चल रहे हैं। अब बोर्ड की तरफ से पुरानी तकनीक वाले भट्ठे चलाने पर कानूनी कार्रवाई के साथ-साथ लाइसैंस रद्द होने के फरमान सुन भट्ठा मालिकों में इस समय हड़कंप मचा हुआ है। सभी भट्ठा मालिक एक-दूसरे से सम्पर्क कर इसका समाधान ढूंढने का प्रयास कर रहे हैं
आखिर क्या है जिग-जैग तकनीक ईंट-भट्ठा
जिग-जैग तकनीक से बनाया जाने वाला ईंटों का भट्ठा वास्तव में वर्तमान भट्ठा से बिल्कुल विपरीत होता है। जिग-जैग तकनीक वाला ईंट-भट्ठा चौरस होता है, जबकि पुरानी तकनीक वाला भट्ठा लंबा व गोलाकार होता है। पुरानी तकनीक वाला भट्ठा काला धुआं छोड़ता है जो वातावरण में मौजूद हवा को जहरीला कर देता है, जबकि जिग-जैग तकनीक वाला भट्ठा सफेद धुआं छोड़ता है, जिसमें हानिकारक तत्व की मात्रा काफी कम होती है।