Edited By Vatika,Updated: 07 Jun, 2019 08:41 AM
लोकसभा चुनावों में मुख्यमंत्री कैप्टन अमरेन्द्र सिंह के मिशन-13 की विफलता ने पंजाब में कांग्रेस के लिए खासी पेचीदगियां खड़ी कर दी हैं।
जालंधर(चोपड़ा): लोकसभा चुनावों में मुख्यमंत्री कैप्टन अमरेन्द्र सिंह के मिशन-13 की विफलता ने पंजाब में कांग्रेस के लिए खासी पेचीदगियां खड़ी कर दी हैं। कै. अमरेन्द्र के दावों के बावजूद पार्टी का प्रदर्शन बेहतर नहीं रहा क्योंकि एक तरफ जहां कांग्रेस को 13 में से केवल 8 सीटों पर जीत कर संतुष्ट होना पड़ा वहीं 2017 के विधानसभा चुनावों में जीते कई विधानसभा हलकों में कांग्रेस बुरी तरह से पिछड़ गई।
लोकसभा चुनावों से पूर्व प्रदेश में अकाली-भाजपा के लगातार गिरते ग्राफ को देखते हुए प्रदेश कांग्रेस के हौसले खासे बुलंद थे और मुख्यमंत्री, मंत्रियों व विधायकों की लॉबी भी 2022 में प्रदेश की सत्ता पर पुन: काबिज होने के सपने संजोए हुए थे परंतु मिशन-13 की असफलता ने मुख्यमंत्री खेमे को खासा ङ्क्षचतित कर दिया है क्योंकि मौजूदा राजनीतिक हालातों से अब 2022 के विधानसभा चुनावों की डगर कांग्रेस के लिए आसान नहीं होगी। कांग्रेस के लिए सबसे बड़ी ङ्क्षचता का कारण है कि देश भर में जिस प्रकार मोदी मैजिक ने रंग दिखाया, उसके बावजूद पंजाब में अकाली-भाजपा गठबंधन का प्रदर्शन निराशाजनक रहा। परंतु गठबंधन की हार के बावजूद भाजपा ने अपने हिस्से की 3 लोकसभा सीटों में से गुरदासपुर व होशियारपुर से जीत हासिल की है जिसके बाद भाजपा कार्यकत्र्ता खासे उत्साहित हैं।
अकाली दल ने 10 में से केवल 2 सीटें जीती हैं परंतु पंजाब में अकाली दल वोट प्रतिशत में हुए इजाफे ने भी कांग्रेसियों के माथे पर शिकन की लकीरें बढ़ा दी हैं। अकाली दल व भाजपा का लोकसभा चुनावों में प्रदर्शन गठबंधन को संतुष्टी से भरी सीटें तो नहीं दिला सका परंतु चुनाव नतीजों ने पंजाब की राजनीति के समीकरण काफी हद तक बदल दिए हैं। मुख्यमंत्री को अब 2022 के विधानसभा चुनावों में परचम फहराने को लेकर अब कई नई चुनौतियों का सामना करना होगा।