Edited By Vatika,Updated: 30 Aug, 2018 09:47 AM
प्रदेश के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरेंद्र सिंह की कथनी व करनी अब उन्हीं पर भारी पडऩे लगी है। कैप्टन अपने ही बुने जाल में बुरी तरह फंस चुके हैं। विधानसभा सैशन में पहली बार अपने ही विधायकों के दबाव में कैप्टन को झुकना पड़ा और बेअदबी कांड की जांच सी.बी.आई....
जालंधर (रविंदर): प्रदेश के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरेंद्र सिंह की कथनी व करनी अब उन्हीं पर भारी पडऩे लगी है। कैप्टन अपने ही बुने जाल में बुरी तरह फंस चुके हैं। विधानसभा सैशन में पहली बार अपने ही विधायकों के दबाव में कैप्टन को झुकना पड़ा और बेअदबी कांड की जांच सी.बी.आई. को देने के अपने फैसले से हाथ पीछे खींचने पड़े।
दरअसल कैप्टन की कथनी व करनी की नींव उस समय ही पड़ गई थी जब पूरी प्रदेश कांग्रेस पूर्व प्रधान प्रताप सिंह बाजवा की अगुवाई में अकाली नेता बिक्रमजीत मजीठिया व अन्य नेताओं की नशे में संलिप्तता की जांच सी.बी.आई. से करवाने को कह रही थी तो अकेले कैप्टन ही इस बात पर अड़े थे कि नशे की जांच सी.बी.आई. से न करवाई जाए। इसके पीछे कैप्टन का तर्क था कि जिस मामले को ज्यादा से ज्यादा लटकाना हो उसे सी.बी.आई. को सौंप देना चाहिए। साथ ही कैप्टन ने कहा था कि पंजाब पुलिस हर जांच करने में सक्षम है। कैप्टन के इस विरोध के बाद प्रदेश कांग्रेस को बैकफुट पर जाना पड़ा था और सी.बी.आई. जांच से अपने हाथ पीछे खींचने पड़े थे। मगर सत्ता में आते ही कैप्टन को सी.बी.आई. प्यारी लगने लगी थी।
बेअदबी कांड के मामले की जांच प्रदेश में न करवाकर सरकार ने फैसला लिया था कि इसे सी.बी.आई. को सौंप दिया जाए मगर इसका पहली बार विरोध पूर्व प्रदेश कांग्रेस प्रधान प्रताप सिंह बाजवा ने किया था। बाजवा का कहना था कि पूरे मामले को सी.बी.आई. के हवाले करने की बजाय यहीं इसकी जांच करवाई जानी चाहिए। शायद कैप्टन अपने ही बयानों को भूल चुके थे कि कोई भी मामला लटकाना हो तो उसे सी.बी.आई. को सौंप दिया जाए। पहली बार विधानसभा सैशन में कांग्रेस के विधायक कैप्टन के इस फैसले का विरोध करते नजर आए। पहली बार सैशन में पार्टी के विधायक अपने ही सी.एम. के फैसले के खिलाफ खड़े नजर आए। आखिरकार अपने ही विधायकों के दबाव के बाद कैप्टन को बेअदबी कांड की जांच सी.बी.आई. को न सौंपने का फैसला लेना पड़ा।