पंजाबियो! सीचेवाल की निर्मल आबोहवा में भी पहुंचा कैंसर और काला पीलिया

Edited By swetha,Updated: 11 Dec, 2018 09:12 AM

cancers and black jaundice also reached the village sechewal

आबोहवा के संदेश देने वाले पंजाब के गांव सीचेवाल में कैंसर और काला पीलिया जैसी बीमारियों का होना चिंता का विषय है। 323 घर, 1262 की कुल आबादी में 958 वोटों के इस भरे-पूरे गांव की शक्ल ही अलग है। इसी गांव ने वातावरण के क्षेत्र में सराहनीय कार्य किया...

कपूरथलाःआबोहवा के संदेश देने वाले पंजाब के गांव सीचेवाल में कैंसर और काला पीलिया जैसी बीमारियों का होना चिंता का विषय है। 323 घर, 1262 की कुल आबादी में 958 वोटों के इस भरे-पूरे गांव की शक्ल ही अलग है। इसी गांव ने वातावरण के क्षेत्र में सराहनीय कार्य किया है। दुनिया में ऐसी मिसाल पेश की कि 2014 से ‘नमामी गंगे’ जैसे प्रोजैक्ट भी सीचेवाल मॉडल की तर्ज पर अपने गंगा किनारे लगते गांवों की बनावट निखारना चाहते हैं परन्तु गांव बेचारा क्या करे जब गांव से बाहर का जहरीला वातावरण यहां की निर्मल आबोहवा को भी जहरीला कर रहा हो।

वातावरण को लेकर गंभीर नहीं सरकारें

गांव सीचेवाल में 2000 के बाद ऐसे केस सामने आए, परन्तु 2016 से 2018 तक यहां कैंसर से हुई मौतों में विस्तार हुआ है। दोनों क्षेत्रों के इस गांव में कैंसर से कुल 22 मौतें हुई हैं । इस समय 4 मरीज और कैंसर की मार तले हैं। यह खबर संबंधित सरकारों के लिए चेतावनी है जो वातावरण को लेकर गंभीर नहीं हैं, क्योंकि गांव सीचेवाल की इस दशा के लिए गांव या गांववासी जिम्मेदार नहीं हैं। इस भौगोलिक क्षेत्र में पड़ती सफेद बेईं और गंदा नाला बनी नदी में बह रहे इलैक्ट्रोप्लेट और डाइंग इंडस्ट्री के खतरनाक रसायन जिम्मेदार हैं।

10 साल से कैंसर से पीड़ित है गुरमीत कौर

गांव सीचेवाल की गुरमीत कौर पत्नी सूरत सिंह (55) पिछले 10 साल से छाती के कैंसर से जूझ रही है। गुरमीत कौर बताती है कि उसे 2007 में अपने शरीर में रसौली का पता लगा और 2008 तक डाक्टरों ने कैंसर की निशानदेही की। गुरमीत कौर ओसवाल अस्पताल में उपचाराधीन है। उन्होंने कहा कि वह अब तक 30 लाख रुपए अपने इलाज पर खर्च चुकी है।

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कैंसर से हो चुकी है दंपति की मौत

गांव सीचेवाल की चरण कौर की मौत 2014 में हुई और उनके पति लछमण सिंह की मौत 2017 में हुई। दोनों कैंसर से पीड़ित थे। अब उनका घर खाली है, क्योंकि बाकी परिवार ऑस्ट्रेलिया चला गया है। इस तरह ही गांव के अमृतपाल सिंह बताते हैं कि हमारे गांव की नवजोत कौर ने आखिरी श्वास बड़े कठिनाई से छोड़े। नवजोत 15 साल की थी और 3 साल के लंबे इलाज के बाद 2016 में उसकी मौत हो गई थी। नवजोत को रीढ़ की हड्डी में कैंसर था जो पेट तक फैलता गया।

इसके अलावा कुलवंत सिंह भी कैंसर की बीमारी से पीड़ित है और अस्पताल में उपचाराधीन है। वह जांघ का एक बार ऑप्रेशन करवा चुके हैं और कैंसर का एक ऑप्रेशन और होना बाकी है। इस परिवार ने इससे पहले भी मौतें देखी हैं। 2015 में कुलवंत की भाभी हरदीप कौर कैंसर से जूझती हुई मर गई थी और 2017 में कुलवंत की माता हरबंस कौर लुधियाना में कैंसर की बीमारी से जूझते हुए संसार को अलविदा कह गईं।

गांव सीचेवाल को मिल चुका है निर्मल ग्राम पुरस्कार

गांव सीचेवाल की सरपंच राजवंत कौर बताती हैं कि 2008 में राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल से हमारे गांव को निर्मल ग्राम पुरस्कार मिला था। गांव वासियों ने हमेशा शुद्ध हवा-पानी की बात की है परन्तु अगर हमारे नजदीक सफेद बेईं का जहर हमारी मिट्टी तक मार कर रहा है तो हम क्या कर सकते हैं। गांव के हरनेक सिंह कहते हैं कि 2018 में 2 मौतें काला पीलिया से भी हुई हैं। विधानसभा चुनाव के मौके पर हर मतदान में हमारी अपने नेता से मांग होती है कि 1974 के वातावरण कानून को गंभीरता से लिया जाए और इन फैक्टरियों पर कानूनी कार्रवाई की जाए परन्तु किसी भी पार्टी ने कभी इसको चुनावी मुद्दा नहीं बनाया। इस गांव में महिलाओं की ज्यादातर मौतें छाती के कैंसर से हुई हैं और पुरुषों में गले और हड्डियों का कैंसर पाया गया है। 

फैक्टरियों का जहर फैंका जा रहा है नदियों में
वातावरण विशेषज्ञ डा. अमर आजाद कहते हैं कि जहां-जहां भी ड्रेन या ऐसी नदियां हैं उनके किनारे रहने वाली आबादी कैंसर और काला पीलिया से प्रभावित होगी। सभी फैक्टरियां दरिया या ऐसे प्राकृतिक साधनों के किनारे बनाने के पीछे मकसद भी यही था कि इन फैक्टरियों का जहर इन नदियों में आराम से फैंका जा सके। उन्होंने सरकारों से सवाल किया जिन्होंने इस जहर को इन नदियों में फैंकने की आज्ञा दी।  हालात इतने गंभीर हैं कि यह इसी बात से समझ लेना चाहिए कि दोआबा के दोनों क्षेत्रों के निवासियों के मुताबिक सन 2000 के बाद अब तक हमारे   प्रतिदिन खराब और चिंताजनक ही हुए हैं। सफेद बेईं के किनारे पड़ते गांव मंडियाला छन्ना से लेकर नमाजीपुर का सफर अगर यह तस्वीर बयान करती है तो हम पंजाब के हालात समझ सकते हैं।

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मुंडी शहरिया गांव के हालात काफी गंभीर 

मंडियाला छन्ना गांव सतलुज दरिया के उस किनारे पर है, जहां सफेद बेईं अपना जहरीला पानी लेकर दरिया में मिलती है। यह गांव पीने के लिए साफ पानी, निकासी पक्ष से सीवरेज और नालियों से वंचित है। यहां के बाशिंदे अपने घरों में गड्ढा खोदते हैं और फालतू पानी मल-पेशाब उसमें जमा करते हैं। फिर उसी गड्ढों के पानी को आंगन में ही बिखेर देते हैं और गड्ढा भरने का इंतजार करते हैं। मंडियाला खास, नसीरपुर, जलालपुर खुर्द, मुंडी शहरीया, शेरगढ़ी, नवा पिंड खालेआल, फूल घुद्दू, मुरीदवाल, नमाजीपुर हर गांव में कैंसर, काला पीलिया और दिल के रोगी हैं। मुंडी शहरिया गांव के हालात काफी गंभीर हैं। यह गांव चिट्टी बेईं के किनारों पर दोनों तरफ फैला हुआ है। इस गांव में न तो साफ पानी है और न ही गंदे पानी की निकासी और सीवरेज का प्रबंध है। यहां भी पानी गड्ढे खोद कर जमा किया जाता है। यहां के लोगों के मुताबिक वल्र्ड बैंक की सहायता से यहां लगी टैंकी के पानी का मानक भी सही नहीं था और आखिर उन्होंने फिर से नलके का पानी पीना ही शुरू कर दिया। - प्रस्तुति : हरप्रीत सिंह काहलों

यही हमारा जीवन

पिछले 12 सालों से चर्म रोग से पीड़ित मनप्रीत सिंह नया गांव खालेवाल में अब कैंसर के साथ जूझ रहा है। मनप्रीत बताते हैं कि उनकी मां की मौत 2017 में हो गई थी और 25 वर्षीय उस की घरवाली पिछले 7 सालों से अपनी, आंखों की रोशनी गंवा बैठी है। मनप्रीत के पिता मङ्क्षहद्र सिंह चर्म रोग के कारण पिछले 3 सालों से संताप भोग कर अगस्त 2018 को चल बसे। शाहकोट के आस आसपास लोहियां-कपूरथला से लेकर जालंधर तक हर बताए जाते पते पर दवा ले चुके हैं। नया गांव खालेवाल भी सफेद बेईं के किनारे पड़ता गांव है। मनप्रीत का एक भाई सिद्ध सपाट गांव में रहता है। मनप्रीत अपने परिवार के लिए पीने वाला पानी रोज की अपने भाई के घर से लाता है।

पहले दामाद गया, फिर पुत्र व आखिरी विदाई पिता की

कैंसर से हो रही मौतों में अकेले कैंसर मरीजों की संख्या या उस बीमारी तक बात खत्म नहीं होती। उस बीमारी के आने से उस परिवार की तबाही और परेशानी जो वह मानसिक, शारीरिक और वित्तीय तौर पर गंवाता है, का हिसाब कोई महकमा या सरकार नहीं लगा रही। गांव सीचेवाल से सुखदेव सिंह को 3 महीने पहले ही पता लगा कि उनको कैंसर है और आखिरी स्टेज है। इससे पहले सुखदेव सिंह के दामाद गुलशन की भी कैंसर के साथ मौत हुई थी। गुलशन का गांव भोडीपुर भी सफेद बेईं किनारे ही पड़ता है। सुखदेव सिंह की मौत से महीना पहले ही उन के पुत्र सुरिंद्र सिंह मिला की मौत हो गई थी। सुरिंद्र जालंधर से डाक्टरों से जवाब सुन कर आया था कि उस के पिता का इलाज संभव नहीं है और वह उम्मीद छोड़ घर जाकर अपने पिता की सेवा करने लगा। उसी रात चिंता में डूबे 32 साला सुरिंद्र सिंह की दिल का दौरा पडने से मौत हो गई। इन मौतों की आपसी कड़ी कैंसर की मार के नीचे आए परिवारों का ताजा बयान है। 

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पंजाब की आबोहवा से कैसे बचे गांव सीचेवाल

पंजाब की आबोहवा में दरिया 2 तरह की परेशानी से जूझ रहे हैं। इससे हमारा गांव सीचेवाल कैसे बचे। चमड़ा, डाइंग और इलैक्ट्रोप्लेट इंडस्ट्री के मापदंड, 1974 के एक्ट का दुरुपयोग, ट्रीटमैंट प्लांट्स का अच्छी तरह लागू न होना, सतलुज में बुड्ढे नाले के जरिए जहरीले रसायन मिल रहे हैं, इसके बारे में विभाग चुप क्यों है?

क्या कहना है संत सीचेवाल का

इस संबंधी पर्यावरण समाजसेवी संत बलबीर सिंह सीचेवाल ने कहा कि इन दरियाओं में पानी का बहाव नहीं है। सतलुज दरिया का पानी तो पीछे रोक दिया जाता है। पानी का बहाव 15-20 प्रतिशत भी उतना ही जरूरी है, जितना इन दरियाओं में रसायन घुलने से रोकना। सफेद बेईं का पानी तटीय केनाल से बंद कर दिया गया है। यहां भी बिस्त दोआब कनाल द्वारा पानी का बहाव शुरू करना पड़ेगा। इसके अलावा दरियाओं किनारे फैक्टरियों को मंजूरी देना ही बड़ी गलती है। फैक्टरियां किसी भी ड्रेन या दरिया के नजदीक रखी ही इसी मंशा के कारण हैं कि वे अपनी, मनमानी कर सकें।  

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