Edited By Updated: 16 May, 2017 01:14 PM
एक ओर पंजाब स्वास्थ्य विभाग कन्या भ्रूण हत्या रोकने हेतु नई-नई योजनाएं बनाने और उन्हें सख्ती से लागू करने के दावे कर रहा है और पंजाब के
भटिंडा(पायल): एक ओर पंजाब स्वास्थ्य विभाग कन्या भ्रूण हत्या रोकने हेतु नई-नई योजनाएं बनाने और उन्हें सख्ती से लागू करने के दावे कर रहा है और पंजाब के विभिन्न जिला स्वास्थ्य विभाग मुहिम को कारगर बनाने हेतु जी-जान से जुटा है परन्तु वहीं दूसरी ओर राज्य के 8 जिला स्वास्थ्य विभागों की इंफोर्समैंट टीमें अल्ट्रासाऊंड केंद्रों की जांच में कोताही बरत रही हैं। विभागीय इंफोर्समैंट टीमें प्रतिमाह निर्धारित लक्ष्य तहत अल्ट्रासाऊंड केंद्रों की जांच नहीं कर रहीं, जो विभाग की कन्या भ्रूण हत्या विरोधी मुहिम को बड़ा झटका है। यह खुलासा स्वास्थ्य विभाग पंजाब से प्राप्त अहम रिपोर्ट में हुआ है।
कन्या भ्रूण हत्या को मिल सकता है बढ़ावा
जांच मुहिम में बरती जा रही यह लापरवाही पंजाब में कन्या भ्रूण हत्या के मामलों को बढ़ावा दे सकती है। इस संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता कि ऐसे में पुत्र के मोह में अभिभावक किन्हीं अल्ट्रासाऊंड केंद्रों की सेवाएं प्राप्त कर कन्या को मौत के घाट उतार सकते हैं। आंकड़ों की बात करें तो विभाग द्वारा कुछ वर्ष पूर्व खामियों की भरमार वाले 115 केंद्रों के लाइसैंस निलंबित व 10 के रद्द किए गए थे जबकि 7 विरुद्ध कोर्ट केस दायर किया गया था। यदि अब विभागीय टीमें कोताही बरतेंगी तो अल्ट्रासाऊंड केंद्रों में फिर से खामियों की भरमार हो सकती है, जिसका सीधा असर कन्या भ्रूण हत्या विरोधी मुहिम पर पड़ेगा। इस संबध में सेहत विभाग के अधिकारियों से बात करनी चाही तो उनसे संपर्क नहीं हो सका।
गड़बड़ा रहे लिंग अनुपात के सुधार हेतु चलाई थी मुहिम
पंजाब में गड़बड़ा रहे लिंग अनुपात का मुख्य कारण कन्या भू्रण हत्या है, जिसे रोकने हेतु स्वास्थ्य विभाग पंजाब द्वारा पी.एन.डी.टी. यानी प्री-नैटल डायग्नोस्टिक तकनीक एक्ट को सख्ती से लागू किया गया और उक्त एक्ट की धाराओं तहत अल्ट्रासाऊंड केंद्रों में ङ्क्षलग जांच करने पर पाबंदी लगाई गई है, क्योंकि अल्ट्रासाऊंड के माध्यम से पहले ही बच्चे के ङ्क्षलग संबंधी पता चल जाने पर भ्रूण हत्या की संभावना बढ़ जाती है। इसके अलावा एक्ट अनुसार समय-समय पर केंद्र का लाइसैंस रिन्यू करवाना, केंद्र में आने वाली गर्भवतियों संबंधी रिकॉर्ड दर्ज करना आदि जरूरी है लेकिन कई केंद्र संचालक उक्त नियमों का उल्लंघन करने से बाज नहीं आ रहे थे। इसके मद्देनजर विभागीय टीमों को प्रतिमाह लक्ष्य देकर अल्ट्रासाऊंड केंद्रों की जांच की जिम्मेदारी सौंपी जाती है परन्तु हैरानी की बात है कि पंजाब के 8 जिलों में इंफोर्समैंट टीमों द्वारा निर्धारित लक्ष्य पूरा नहीं किया जा रहा और प्रत्येक माह अधिकांश अल्ट्रासाऊंड केंद्र औचक छापेमारी से बच रहे हैं।