पराली जलाने से लोगों का सांस लेना हुआ दूभर, ए.क्यू.आई. 70 से पहुंचा 300 पर

Edited By Sunita sarangal,Updated: 03 Nov, 2019 12:36 PM

burning stubble makes people hard to breathe

धान की कटाई के बाद जिले में खेतों में पराली को आग लगाने के मामलों में हो रही बढ़ौतरी के चलते हवा में प्रदूषण लगातार बढ़ रहा है।

नवांशहर(त्रिपाठी): धान की कटाई के बाद जिले में खेतों में पराली को आग लगाने के मामलों में हो रही बढ़ौतरी के चलते हवा में प्रदूषण लगातार बढ़ रहा है। हवा में ए.क्यू.आई. (एयर क्वालिटी इन्डैक्स) 300 के स्तर पर पहुंच गया है। वहीं ए.क्यू.आई. और बढ़ने की संभावना है, जबकि आम दिनों में यह करीब 70 रहता है। धान की कटाई के बाद लगातार पराली जलाने से लोगों का सांस लेना भी दूभर होता जा रहा है। विशेष तौर पर बच्चों, बुजुर्गों व हार्ट के मरीजों के लिए दिक्कतें बढ़ गई हैं। प्रदूषित हवा के चलते ही आसमान में धुंध की परत छाई हुई है।

सैंट्रल व पंजाब प्रदूषण बोर्ड द्वारा की जाने वाली नैशनल एयर मॉनीटरिंग के तहत 50 तक का ए.क्यू.आई. गुड स्तर का, 51-100 तक संतोषजनक, 101-200 मध्यम स्तर पर प्रदूषित, 301-400 वैरी पुअर (घटिया) और 401-500 तक अति गंभीर माना जाता है। जिला कृषि विभाग के अनुसार इस वर्ष 57 व्यक्तिगत मामलों में 50 प्रतिशत सबसिडी पर पराली का निपटारा करने वाले यंत्र किसानों को उपलब्ध करवाए गए हैं जबकि 20 ग्रुपों के निर्मित कस्टम हायरिंग सैंटर में 80 प्रतिशत सबसिडी पर 65 यंत्र उपलब्ध करवाए गए हैं। इसी प्रकार वर्ष 2018 में जिले में किसानों को व्यक्तिगत व सामूहिक ग्रुपों तथा सोसायटियों के माध्यम से 196 यंत्र उपलब्ध करवाए गए थे।
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2.60 लाख रुपए का जुर्माना वसूला
जिला कृषि विभाग से प्राप्त आंकड़ों के अनुसार अब तक जिले में आग लगने की घटनाओं के कुल 166 मामले सामने आए हैं, जिसमें से 104 मामलों में चालान काट कर प्रति मामला 2500 रुपए के हिसाब से 2.60 लाख रुपए हर्जाना एकत्रित किया गया है। उक्त में से 31 मामले अभी पैंडिंग पड़े हैं, जबकि शेष मामलों में कुछ कार्रवाई योग्य नहीं है। यहां यह भी वर्णनीय है कि ब्लॉक औड में एक नंबरदार की मलकियत वाले खेत में भी पराली जलाने का मामला सामने आया है।

पराली जलाने के दुष्प्रभाव

  • रासायनिक खाद पर निर्भरता बढ़ने से खेती लागत बढ़ रही है
  • मिट्टी के मित्र कीट नष्ट हो रहे हैं
  • उत्पादन क्षमता घट रही है
  • भूजल पर दबाव बढ़ता है
  • भूमि के पोषक तत्व नष्ट होते हैं
  • जलधारण क्षमता पर विपरीत प्रभाव पड़ता है
  • तापमान में होता उतार-चढ़ाव
  • मौसम चक्र में परिवर्तन
  • खेतों के लिए जल की मांग में बढ़ौतरी
  • बेमौसमी बारिश
  • सेहत पर विपरीत प्रभाव
  • अस्थमा, डायबिटीज व हार्ट के मरीजों के लिए खतरनाक
  • मनुष्य की आयु का 7-10 वर्ष तक कम होना
  • धुएं-धूल के कणों से फेफड़ों में सूजन और हार्ट आदि बीमारियों में बढ़ौतरी।

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कृषि अधिकारी डा. राजकुमार ने बताया कि पराली को खेतों में जलाने के स्थान पर उनका प्रबंधन करने के मामलों में अब तक 80 प्रतिशत तक सफलता मिली है। सामने आया है कि 20 प्रतिशत किसान अभी भी पराली को जलाकर निपटारा करने में विश्वास रखते हैं। जल्द ही इस समस्या का पूर्ण तौर पर हल देखने को मिलेगा।

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