Edited By Updated: 30 Jan, 2017 09:09 AM
दिन-प्रतिदिन बढ़ रहे हवा के प्रदूषण के कारण व कृषि के लिए उपयोग की जा रही जहरीली रसायनिक वस्तुओं के कारण पक्षियों की प्रजातियां लुप्त हो रही हैं। कभी समय था जब छत की मुंडेर पर बैठा कौआ कांव-कांव करे तो महिलाएं समझ लेती थीं कि आज कोई मेहमान आने वाला...
फरीदकोट (हाली): दिन-प्रतिदिन बढ़ रहे हवा के प्रदूषण के कारण व कृषि के लिए उपयोग की जा रही जहरीली रसायनिक वस्तुओं के कारण पक्षियों की प्रजातियां लुप्त हो रही हैं। कभी समय था जब छत की मुंडेर पर बैठा कौआ कांव-कांव करे तो महिलाएं समझ लेती थीं कि आज कोई मेहमान आने वाला है। लोक बोलियों में भी लड़की अपने भाई की प्रतीक्षा करती हुई कहती हैं कि ‘किते बोल बनेरे उत्ते कावां मेरा वीर कदों घर आवे’। इसी तरह चिडिय़ों की प्रजातियां भी खत्म होती जा रही हैं। चिडिय़ों का भी लोक बोलियों में, उनकी तीखी चीं-चीं की आवाज का जिक्र आता है। जिला फरीदकोट में जहां कभी सबसे ज्यादा कौए होते थे अब लोगों को कोई एक कौआ कभी-कभार नजर पड़ता है। तोते, चिडिय़ां, कबूतर व अन्य बहुत सारे पक्षियों को लोग कभी-कभी देखते हैं।
क्या कहते हैं समाजसेवी
समाजसेवी गुरप्रीत सिंह मिंटू, गुरसेवक सिंह व अमरिंद्र सिंह को भी इसी तरह खेतों में रसायनिक कीटनाशकों के कारण बेहोश पड़े 2 कौए, उल्लू व अन्य कई पक्षी कई बार मिले जिन्हें बचाने का उन्होंने भरपूर प्रयास किया व अन्य को बचाकर पर्यावरण में छोड़ा। उन्होंने कहा कि लोगों को जहां समाज भलाई के कार्य करने चाहिएं, वहीं पक्षियों की प्रजातियों को बचाने के लिए यत्न करने चाहिएं।