पंजाब केसरी के साथ बातचीत में भगवंत मान की दो-टूक:दिल्ली से चलेगी पार्टी

Edited By swetha,Updated: 20 Aug, 2018 02:54 PM

bhagwant mann interview

संगरूर से आम आदमी पार्टी के लोकसभा सदस्य भगवंत मान ने कहा है कि बतौर नेता विपक्ष सुखपाल सिंह खैहरा का काम अच्छा था लेकिन उन्हें पार्टी तोडऩे की कोशिश के कारण पद से हटाया गया है। पंजाब केसरी के संवाददाता रमन दीप सिंह सोढी के साथ बातचीत के दौरान मान...

जालंधरःसंगरूर से आम आदमी पार्टी के लोकसभा सदस्य भगवंत मान ने कहा है कि बतौर नेता विपक्ष सुखपाल सिंह खैहरा का काम अच्छा था लेकिन उन्हें पार्टी तोडऩे की कोशिश के कारण पद से हटाया गया है। पंजाब केसरी के संवाददाता रमन दीप सिंह सोढी के साथ बातचीत के दौरान मान ने पंजाब में आम आदमी पार्टी की मौजूदा स्थिति, अरविंद केजरीवाल द्वारा बिक्रम सिंह मजीठिया से मांगी गई माफी, चुनाव में हुई पार्टी की हार और पंजाब की यूनिट को खुद मुख्त्यारी जैसे तमाम मुद्दों पर विस्तार से चर्चा की। पेश है भगवंत मान का पूरा इंटरव्यू-

 प्र.: पार्टी की मौजूदा स्थिति को आप किस तरह से देखते हैं?
 उ.: इस समय पार्टी में जो भी चल रहा है वह दुर्भाग्यपूर्ण है। मुझे लगता है कि यह विवाद इस हद तक नहीं जाना चाहिए था। कुछ चीजें जल्दबाजी में हो गई हैं। बङ्क्षठडा कन्वैंशन के आयोजन से पहले सुखपाल खैहरा बैठ कर बात कर लेते तो शायद यह नौबत नहीं आती। हमारी पार्टी महज 5 साल पुरानी है, लिहाजा पार्टी में उथल-पुथल स्वाभाविक है और इससे घबराने की जरूरत नहीं है। दो भाई भी लड़ते हैं तो घर में दीवार खड़ी हो जाती है लेकिन बाद में मसला सुलह से ही निपटता है। 

 प्र.: जब खैहरा ने कन्वैंशन का ऐलान किया तो आपकी उनसे कोई बात नहीं हुई?
उ. जिस दिन खैहरा मनीष सिसौदिया के पास जा रहे थे मैंने उस समय फोन किया था लेकिन मुझे बताया गया कि वह दिल्ली जा रहे हैं। फिर 30 जुलाई को मेरी बात हुई और उन्होंने मुझे कन्वैंशन में आने का निमंत्रण दिया। मैं उस समय बीमार चल रहा था लेकिन मुझे लगा कि यह कदम पार्टी विरोधी है। लिहाजा मैंने रैली में आने के लिए हां नहीं की। 
 
प्र.: पार्टी छोटी-सी बात पर अन्य नेताओं को बाहर का रास्ता दिखा देती है, तो खैहरा गुट के खिलाफ कार्रवाई क्यों नहीं हुई?
उ.: यह अनुशासन कमेटी का काम है। पार्टी इस बात का इंतजार कर रही है कि शायद भूले-भटके लोग वापस आ जाएं लेकिन यदि इनका स्टैंड नहीं बदला तो कार्रवाई में भी देर नहीं लगेगी। खैहरा गुट द्वारा बनाई गई पी.ए.सी. (पोलिटीकल अफेयर कमेटी) पार्टी संविधान के खिलाफहै। 

प्र.: पहले आप खैहरा के खिलाफ काफी मुखर थे लेकिन अब आपके तेवर भाई-भाई वाले क्यों हो गए हैं?
उ.: मैं उस वक्त तलख हुआ था जिस समय मेरी बीमारी का मजाक उड़ाया गया। मैं दिल्ली के बड़े अस्पताल में दाखिल था। वहां मैं 25 जुलाई की रात दाखिल हुआ तो मेरी बीमारी को ड्रामा करार दिया गया। लिहाजा मुझे लगा कि ये लोग जनता को गुमराह कर रहे हैं इसलिए मैंने अपनी स्थिति स्पष्ट की। 

प्र.: खैहरा के खुद मुख्तियारी के तर्क से आप कितने सहमत हैं?
उ.: खैहरा साहब ने जिस दिन पार्टी ज्वाइन की थी तो उन्हें नहीं पता था कि पार्टी दिल्ली से चलती है और उन्हें पार्टी के अनुशासन में ही रहना पड़ेगा। यदि हम पार्टी की बात नहीं मानेंगे तो हर कोई अनुशासन तोड़ेगा। खैहरा को पंजाब यूनिट की खुद मुख्तियारी की बात पद खोने के बाद ही क्यों याद आई है? पहले तो सब कुछ ठीक चल रहा था। उनका इतिहास बोलता है कि वह किसी भी पार्टी में अनुशासन में नहीं रहे और इस बात की हमें उनकी पार्टी में शामिल होने से पहले से ही जानकारी थी लेकिन हमें यह उम्मीद थी कि अब पार्टी में शामिल होने के बाद अपना स्वभाव छोड़ देंगे लेकिन ऐसा नहीं हो सका। 

प्र.: विपक्ष के नेता को बदलने की जरूरत क्यों पड़ी? क्या पार्टी खैहरा के काम से संतुष्ट नहीं थी?
उ.: सुखपाल खैहरा की बेबाकी और काबलियत के बारे में किसी को कोई शक नहीं है। जब वह विपक्ष के नेता नहीं थे तो उस समय भी वह सरकार को तथ्यों के आधार पर घेरते रहे हैं। रेत के अवैध खनन के मामले में उन्होंने ऐसा ही काम किया था। दरअसल पिछले कुछ समय से उनके खिलाफ पार्टी विरोधी गतिविधियों में शामिल होने की रिपोर्ट आ रही थी और यह रिपोर्ट खुद पार्टी के विधायकों ने दी थी। बैंस ब्रदर के साथ पार्टी का गठबंधन टूटने के बावजूद खैहरा ने उनके साथ मिलकर धरने दिए और प्रैस कांफ्रैंस की। हमारी पार्टी के कार्यकत्र्ताओं को लोक इंसाफ पार्टी में शामिल करवाया जा रहा था। नगर निगम चुनाव के दौरान ऐसा लग रहा था जैसे लुधियाना में खैहरा बैंस ब्रदर्स की पार्टी का प्रचार कर रहे हों। हमारे कार्यकत्र्ता चुनाव लडऩा चाहते थे लेकिन उन्हें घर जाकर बैंस ब्रदर्स की पार्टी का साथ देने के लिए कहा गया। आस्ट्रेलिया में हमारे पार्टी के वालंटियर्स को बैंस ब्रदर्स के साथ जोड़ा गया। पार्टी हाईकमान को ऐसा महसूस हुआ कि खैहरा पार्टी को खोखला कर रहे हैं। लिहाजा यह फैसला लिया गया। 

प्र.: खैहरा के नेता विपक्ष बनने के कितने समय बाद आपको यह पता चला और आपने इस बारे में उनसे बात क्यों नहीं की?
उ.: नेता विपक्ष बनने के कुछ दिन बाद ही खैहरा ने पार्टी विरोधी गतिविधियां शुरू कर दी थीं। पार्टी ने खैहरा को इस बारे में सूचित भी किया था और दिल्ली में पी.एस.सी. की बैठक के दौरान उन्हें ऐसा न करने की हिदायत भी दी गई थी। उस समय भी खैहरा का चेहरा सब कुछ बयान कर रहा था। यहां तक कि केजरीवाल ने जिस दिन बिक्रम सिंह मजीठिया से माफी मांगी उस दिन खैहरा ने बैंस ब्रदर्स को बुला लिया। खैहरा उस समय भी पार्टी तोडऩे की कोशिश कर रहे थे। मुझे कंवर संधू का पार्टी तोडऩे को लेकर फोन भी आया था और मेरा जवाब था कि संधू साहब आप संवैधानिक तौर पर इस तरह नहीं कर सकते, तो कंवर संधू ने मुझे 14 विधायकों का समर्थन हासिल होने की स्थिति में दल-बदल विरोधी कानून लागू न होने की दलील दी जिस पर मैंने उन्हें दोबारा इस मामले में किसी वकील की राय लेने की सलाह दी थी। इसके बावजूद खैहरा गुट ने पार्टी तोडऩे की कार्रवाई शुरू की।

 प्र.: आप व सुखपाल खैहरा एक साथ नजर क्यों नहीं आते?
उ.: जब रेत के मुद्दे पर मुख्यमंत्री कै. अमरेंद्र सिंह की कोठी का घेराव करना था तो मैं उस समय खैहरा के साथ था। जिस समय पंजाब में चिट्टा हफ्ता मनाया गया और मुख्यमंत्री ने पार्टी को मिलने का समय दिया तो उस समय भी मैं पार्टी के शिष्टमंडल में शामिल था। गुरदासपुर में पार्टी के उम्मीदवार के ऐलान के समय भी मैं साथ था। 

अति आत्मविश्वास के कारण हारे विधानसभा चुनाव
प्र.: 2017 में ‘पार्टी’ के पक्ष में चल रही हवा को आप सीटों में क्यों नहीं बदल सके?
उ.: हम अति आत्मविश्वास का शिकार हो गए थे और हमें लगा था कि पंजाब में भी वैसा ही नतीजा होगा जैसा दिल्ली में आया था। 

प्र.: क्या यह सच है कि दिल्ली वाले उस वक्त कहते थे कि ‘आप’ की टिकट पर जानवर भी जीत जाएगा?
उ.: यह बिल्कुल सही है। इसी तरह कहा जाता था। मैं स्वीकार करता हूं कि हमारी विकटें गलत समय पर गिरती गईं। इसके अलावा एक-एक हलके से टिकट के साथ-साथ इच्छुक पैदा हो गए जिन्हें टिकट नहीं मिली उन्होंने पार्टी का विरोध किया। हमारे ऊपर बाहरी होने का ठप्पा भी लगा। सबसे बड़ी गलती यह थी कि हम ऐसी टीम की तरह खेल रहे थे जिसका कोई कैप्टन नहीं था। मुख्यमंत्री के चेहरे का ऐलान न करना सबसे बड़ी गलती थी। कांग्रेस ने किसानों का कर्जा माफ करने का झूठा वायदा भी किया जिससे लोग प्रभावित हुए।

प्र.: खैहरा गुट का आरोप है कि चुनाव के दौरान टिकटें बेची गईं। आप क्या कहेंगे?
उ.: मेरे ध्यान में ऐसा कोई मामला नहीं आया। यदि उनके पास इसका कोई प्रमाण है तो उन्हें पेश करना चाहिए। 

प्र.: दुर्गेश पाठक व संजय सिंह को लेकर पंजाब में पार्टी के समर्थकों में बहुत गुस्सा है। आप इनके बारे में क्या सोचते हैं?
उ.: मुझे नहीं लगता कि कोई भी पार्टी हारने के लिए मैदान में उतरती है। काम करने वाले व्यक्ति से गलती हो जाती है लेकिन हम किसी एक व्यक्ति को हार के लिए जिम्मेदार नहीं ठहरा सकते।

पार्टी के लिए जी-जान से काम किया, वफादारी के सर्टीफिकेट की जरूरत नहीं

प्र.: पार्टी के सारे नेताओं की छुट्टी के पीछे भगवंत मान का हाथ होने का आरोप लगता है। क्या यह सब आप करवा रहे हैं?
उ.: मैं खुद इस बात से हैरान हूं कि हर काम मेरे नाम क्यों लगता है। मैंने खुद सुच्चा सिंह छोटेपुर की प्रधानगी में काम किया है। पंजाब से हम 4 लोकसभा सीटें जीते और मेरी जीत सबसे बड़ी थी लेकिन पार्टी ने धर्मवीर गांधी को मेरी सलाह से ही लोकसभा में पार्टी का नेता बनाया। गुरप्रीत घुग्गी को पार्टी का प्रधान बनाने की सहमति भी मैंने ही दी थी। मेरी पार्टी का प्रधान बनने की कोई इच्छा नहीं है लेकिन पार्टी ने मुझे उस वक्त प्रधान बनाया जब पार्टी का ग्राफ गिर रहा था। 

प्र.: बतौर पार्टी अध्यक्ष आप पंजाब में सक्रिय क्यों नहीं रहे?
उ.: मैं भी एक इंसान हूं। मैं रोजाना चुनावी मोड में नहीं रह सकता और हर समय फेसबुक पर लाइव भी नहीं रह सकता। यह बात जनता को समझनी चाहिए। 

प्र.: आप न तो शाहकोट उपचुनाव में गए और न ही अपने विधायक संदौआ का पता लेने के लिए पहुंचे। ऐसा क्यों हुआ?
उ.: शाहकोट के चुनाव के ऐलान से पहले ही मैंने पार्टी को अपने विदेश जाने के कार्यक्रम के बारे में बता दिया था। मैं जैसे ही विदेश से वापस आया तो वहां प्रचार के लिए गया। मैं निजी तौर पर शाहकोट का उपचुनाव लडऩे के पक्ष में नहीं था और इसके लिए मेरे अपने तर्क थे लेकिन मैं इस बात को लेकर पार्टी के विरोध में कोई स्टैंड नहीं ले सकता था क्योंकि पार्टी का अनुशासन जरूरी है। संदौआ पर हुए हमले के वक्त मैं दिल्ली में था इसलिए मैं नहीं आ सका। लोग किसी भी मौके पर भगवंत मान की हाजिरी के बिना पार्टी की हाजिरी नहीं मानते। 

प्र.: पार्टी के विधायक एच.एस. फूलका को लेकर वायरल हुई आपकी ऑडियो टेप के बारे में आप क्या कहेंगे?
उ. हमारे कार्यकत्र्ता बाघापुराना की टिकट का विरोध कर रहे थे। यह टिकट एच.एस. फूलका ने फाइनल करवाई थी। वर्करों ने अरविंद केजरीवाल की लुधियाना रैली का विरोध करने का फैसला किया था। मैंने बठिंडा में ठहरे हुए केजरीवाल को इस बात की जानकारी दी तो उन्होंने कहा कि कार्यकत्र्ता विरोध कर सकते हैं। मैंने वर्करों को अपील की कि आप रैली स्थल की बजाय कहीं बाहर धरना लगा सकते हैं। उसके बाद वही वर्कर निहालसिंहवाला में पहुंचे और रैली में विरोध करना शुरू कर दिया। वर्करों ने मांग की कि बाघापुराना से उम्मीदवार कंग को मंच से उतारा जाए। यह बात जब केजरीवाल को पता चली तो उन्होंने फूलका जी को बोलकर कंग को मंच से उतरवा दिया। मैं सिर्फ पार्टी का विरोध रोकने के लिए ऐसा कर रहा था। बाघापुराना की सीट हम हार भी गए थे। मालेरकोटला की टिकट को लेकर मेरे भी पुतले फूंके गए थे। 

 प्र.: सोशल मीडिया के हीरो भगवंत मान अब सोशल मीडिया पर जीरो क्यों हो रहे हैं?
उ.: आजकल सियासी दल विपक्षी नेताओं को ट्रोल करने के लिए एजैंसियों की सेवाएं ले रहे हैं। भाजपा ने बकायदा इसके लिए विंग भी बनाया हुआ है। 

प्र.: फिर खैहरा की रैली या इंटरव्यू के वक्त यह विंग काम क्यों नहीं करते? प्रचार सिर्फ आपके खिलाफ क्यों है?
उ.: सियासत में हमेशा आपकी तारीफ नहीं हो सकती। जब तक मैं कलाकार था लोग मेरी तारीफ करते थे। हमारे वर्कर जज्बाती भी हैं। मुझे उम्मीद है कि समय के साथ उनका गुस्सा ठंडा हो जाएगा। 

प्र.: आप यह धारणा कैसे तोड़ेंगे कि भगवंत मान की पार्टी तोडऩे में अहम भूमिका है?
उ.: मुझे समझ नहीं आ रहा कि मेरे बारे में ऐसा क्यों कहा जा रहा है। मैं हमेशा पंजाब के लिए लड़ा हूं। हर विधायक के लिए दिन-रात रैलियां की हैं। सुखबीर बादल के खिलाफ लडऩे का हौसला भी मैंने ही दिखाया था। मैं दूसरे उम्मीदवारों के प्रचार में ही इतना व्यस्त रहा कि जलालाबाद में प्रचार के लिए मेरे पास सिर्फ 7 दिन बचे फिर भी मुझे 57000 वोट मिले और मैंने सुखबीर की जीत के अंतर को कम कर दिया। पार्टी के प्रति वफादारी का सर्टीफिकेट लेने की मुझे कोई जरूरत नहीं है।

हरसिमरत के खिलाफ बठिंडा से लडने के लिए तैयार

प्र.: कांग्रेस के साथ पार्टी के गठबंधन की चर्चा पर आप क्या कहेंगे?
उ.: कांग्रेस के साथ गठबंधन का सवाल ही पैदा नहीं होता, मैं खुद इसके खिलाफ हूं। विरोधियों के साथ कभी हाथ नहीं मिलाएंगे।

प्र. : लोकसभा चुनाव की तैयारी किस तरह चल रही है? क्या निलंबित सांसदों को मनाएंगे?
उ.: तैयारी पूरी है, डा. धर्मवीर गांधी को मनाने के बारे में बातचीत भी चल रही है। मेरी अक्सर उनके साथ बातचीत हो रहीहै।

प्र.: हरसिमरत बादल ने आपके खिलाफ संगरूर से लडने की चुनौती दी है, क्या आप तैयार हैं?
उ.: मैं पूरी तरह तैयार हूं। यदि वह कहें तो मैं बिंडा से चुनाव लडऩे को भी तैयार हूं। मैं तो उनके पति सुखबीर बादल के खिलाफ भी चुनाव लडऩे से नहीं डरा था।

प्र.: बतौर सांसद आप संगरूर के लिए क्या लेकर आए हैं?
उ.: मैं एम.पी. फंड से सोलर लाइट और वाटर फिल्टर लगवा रहा हूं। इसके अलावा स्कूलों की इमारतें बनवाई हैं। संगरूर में बनने वाले पासपोर्ट कार्यालय के लिए जगह का प्रबंध कर रहा हूं। खेलो इंडिया प्रोजैक्ट के तहत संगरूर में एस्ट्रो टर्फ लगवाने की फाइल राज्यवद्र्धन राठौर जी के टेबल पर है। मैंने अपने गोद लिए गांव के लिए 15 लाख की ग्रांट दी है। 

प्र.: क्या हरपाल चीमा खैहरा की तरह पंजाब के मुद्दे सदन में उठा पाएंगे?
उ.: हरपाल चीमा एक वरिष्ठ वकील हैं। वह संगरूर बार एसोसिएशन  अध्यक्ष रहे हैं और विधानसभा के सत्र में उनकी काबलियत का अंदाजा हो जाएगा। 

प्र.: क्या आपके नजदीकी होने के कारण हरपाल सिंह चीमा को पद मिला है?
उ.: मेरे तो सारे ही नजदीकी हैं। पार्टी ने उनकी काबलियत के कारण उन्हें चुना है और मेरी इस बारे में पार्टी के साथ कोई बात नहीं हुई। यह पंजाब का फैसला है और पंजाब के विधायकों ने ही इसकी सहमति दी है। 

प्र.: आपने कंवर संधू के बारे में कहा कि वह खुद विपक्ष के नेता बनना चाहते हैं, क्या यह सच है?
उ.: हां, यह सही है। कंवर संधू ने कहा था कि मुझे नेता विपक्ष बना दो, मैं खैहरा को खुद संभाल लूंगा। उन्होंने यह बात मनीष सिसौदिया को फोन करके कही थी और सिसौदिया ने यह बात मुझे खुद बताई है। 

अकाली दल की टिकट पर चुनाव लड़ेंगे हरिंद्र खालसा
भगवंत मान ने इस इंटरव्यू के दौरान दावा किया कि पार्टी के फतेहगढ़ साहिब से सांसद हरिंद्र सिंह खालसा 2019 में अकाली दल की टिकट से चुनाव लड़ेंगे और अकाली दल के कहने पर ही वह आम आदमी पार्टी व उनके खिलाफ बयानबाजी करते हैं। मेरे पर संसद में शराब पीकर आने के लगाए गए आरोप के पीछे भी अकाली दल का ही हाथ है और अकाली सांसद चंदूमाजरा के कहने पर ही उन्होंने लोकसभा के स्पीकर से मेरी शिकायत की थी। वह लोकसभा में सबसे ज्यादा भत्ता लेने वाले सांसदों में हैं। उन्हें मेरे खिलाफ बोलने से पहले अपना रिकार्ड देख लेना चाहिए।

मजीठिया ही नशे का सौदागर,  केजरीवाल ने माफी पर स्थिति साफ न की तो वापस नहीं लूंगा इस्तीफा 

प्र.: चुनाव के दौरान आप बिक्रम सिंह मजीठिया को लेकर किकलियां डाल रहे थे लेकिन क्या अरविंद केजरीवाल की माफी ने आपको शर्मसार किया है?
 उ.: मुझे जैसे ही अरविंद केजरीवाल की तरफ से माफी मांगने की खबर मिली तो मैंने उसी वक्त प्रधानगी के पद से इस्तीफा दे दिया। मेरी आज भी उनके साथ इस बात को लेकर नाराजगी है कि इस मामले में हमारे साथ बात क्यों नहीं की गई। मैं अभी भी केजरीवाल से इस मामले में बात कर जवाब मांगूंगा लेकिन मैं आज भी दावे के साथ कह रहा हूं कि पंजाब की जवानी को बर्बाद करने के पीछे बिक्रम सिंह मजीठिया का हाथ है। अरविंद केजरीवाल को अपनी व्यस्तताओं के कारण माफी मांगनी पड़ी है।

प्र.: आपके पास पुख्ता प्रमाण थे तो आप पीछे क्यों हट गए?
उ.: इसके बारे में अरविंद केजरीवाल ही बता सकते हैं। मैं कह रहा हूं कि मैं उनसे बात करूंगा और इस मामले में उनका स्पष्टीकरण मिलने तक अपने इस्तीफे पर डटा रहूंगा।

प्र.: इसका अर्थ है कि आपने मजीठिया की झूठी बदनामी की?
उ.: नहीं, बिल्कुल नहीं। मैं आज भी कह रहा हूं कि नशा तस्करी में सबसे बड़ा नाम बिक्रम मजीठिया का है और वह ही नशे का सौदागर है। वह मुझ पर मानहानि का केस करें।

प्र.: केजरीवाल ने जिन नौजवानों के हाथ में पोस्टर पकड़वाकर मजीठिया के खिलाफ प्रचार करवाया उनसे भी केजरीवाल को माफी नहीं मांगनी चाहिए?
उ.: नहीं, इस तरह की कोई बात नहीं है। केजरीवाल की माफी की तो निंदा हो रही है लेकिन कैप्टन के हाथ क्यों बंधे हैं, वह मजीठिया के खिलाफ कार्रवाई क्यों नहीं करते? 

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