Edited By Punjab Kesari,Updated: 26 Jul, 2017 11:30 AM
भारत में पैदा होने वाली बासमती और अन्य अलग-अलग फसलों में जहरीले रसायनों की मात्रा को लेकर यूरोपीय यूनियन संगठन और अमरीका समेत अलग-अलग देशों की तरफ से अपनाए गए सख्त रवैये कारण देश के बासमती एक्सपोर्ट से संबंधित कारोबारियों को बड़ा झटका लगा है, साथ ही...
गुरदासपुर (हरमनप्रीत): भारत में पैदा होने वाली बासमती और अन्य अलग-अलग फसलों में जहरीले रसायनों की मात्रा को लेकर यूरोपीय यूनियन संगठन और अमरीका समेत अलग-अलग देशों की तरफ से अपनाए गए सख्त रवैये कारण देश के बासमती एक्सपोर्ट से संबंधित कारोबारियों को बड़ा झटका लगा है, साथ ही बासमती की काश्त करने वाले किसानों के पैरों तले से भी जमीन खिसक गई है।
जिक्रयोग्य है कि दुनिया भर की कुल बासमती की पैदावार का 70 प्रतिशत के करीब हिस्सा भारत और पाकिस्तान में पैदा होता है। भारत में पंजाब के अलावा हरियाणा, जम्मू-कश्मीर, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, तेलंगाना, मध्य प्रदेश और आंध्र प्रदेश आदि बासमती पैदा करते हैं। भारत पिछले कु छ साल से हर साल औसतन 40 लाख टन बासमती चावल ईरान समेत खाड़ी के अन्य देशों को भेजता है जबकि बासमती के करीब 20 लाख टन चावलों की उपभोग भारत में ही हो जाता है।
यूरोपीय देशों के नए फैसले के साथ बढ़ा संकट
यूरोपीय देश भारत में पैदा होने वाली बासमती के सबसे बड़े खरीदार हैं जो हर साल भारत से तकरीबन 2,000 करोड़ रुपए की बासमती खरीदते हैं। पिछले कुछ सालों से यूरोपीय देश बासमती में इस्तेमाल की जाने वाले फंफूद-नाशक ट्राईसाइक्लाजोल नाम के तत्व की 1 पी.पी.एम. तक मात्रा वाले बासमती के चावल खरीदते रहे हैं, परन्तु अब 1 जनवरी 2018 से खरीदे जाने वाले बासमती चावलों के लिए यूरोपीय संगठन ने इस तत्व की मात्रा 1 पी.पी.एम. से घटा कर 0.01 पी.पी.एम. कर दी है।
इस नए फैसले के चलते किसान और बासमती एक्सपोर्टर्ज परेशानी के आलम में घिर गए हैं क्योंकि बासमती में ब्लास्ट जैसी खतरनाक बीमारियों की रोकथाम के लिए ऐसे रसायनों का प्रयोग करना किसानों की मजबूरी है। जापान की तरफ से इस तत्व की मात्रा अभी भी 1 पी.पी.एम. और अमरीका की तरफ से 3 पी.पी.एम. ही रखी गई है परन्तु किसान और बासमती के निर्यातक इस बात को लेकर चिंतित हैं कि यदि सरकार ने उचित कदम न उठाए तो आने वाले समय में अन्य देशों में भी बासमती के चावल भेजने में मुश्किल आ सकती है।
विदेशों में रजिस्टर्ड नहीं हैं भारत की अनेक दवाएं
बड़ी कम्पनियों ने इन रासायनिक तत्व वाली दवाओं को भारत में तो रजिस्टर्ड करवाया हुआ है, परन्तु यूरोप समेत कई देशों में इन दवाओं को रजिस्टर्ड न करवाने का नुक्सान किसानों और कारोबारियों को उठाना पड़ रहा है। सिर्फ ट्राईसाईक्लाजोल तत्व ही नहीं बल्कि आईसोप्रोटोरोन और कारबैंडाजैम समेत अन्य अनेक तत्वों वाली दवाओं को लेकर भी आए दिन अलग-अलग देशों के साथ झगड़ा रहता है जिस कारण यूनाईटिड स्टेट्स ऑफ अमरीका जैसे देश भारत में से गए अनाज और अन्य सामान को रिजैक्ट करते आ रहे हैं। इस कारण भारत में पैदा हो रहे अनाज की अंतर्राष्ट्रीय मंडी में होने वाली किरकिरी का सीधा प्रभाव किसानों की आॢथकता पर पड़ रहा है।
सरकार कम्पनियों के खिलाफ करे कार्रवाई
ऑल इंडिया राईस एक्सपोर्टर्ज एसोसिएशन के प्रधान विजय सेतिया ने बताया कि आने वाले दिनों में यह समस्या और भी गंभीर हो सकती है, इसलिए उनकी जत्थेबंदी ने केन्द्र सरकार को पत्र लिख कर मांग की है कि दवाइयां तैयार करने वाली कम्पनियां दवाओं की बिक्री के बाद मुक्त हो जाती हैं, परन्तु किसान मुश्किलों में घिर जाते हैं इसलिए सरकार इन कम्पनियों को इस बात के लिए पाबंद करें कि जो कोई दवाएं भारत में रजिस्टर्ड करवाई जा रही हैं, उनको विदेशों में भी रजिस्टर्ड करवाया जाए।
वैज्ञानिक ढंग अपनाकर बच सकते हैं किसान
इन विवादित तत्व वाली दवाओं का सबसे ज्यादा प्रयोग हरियाणा और साथ लगते पंजाब समेत अन्य हिस्सों में बीजी जाने वाली बासमती 1401 या मुच्छल नाम की किस्मों पर होता है, परन्तु पंजाब में इन किस्मों अधीन बहुत ही कम क्षेत्रफल है। पिछले साल बासमती अधीन 5 लाख 2 हजार हैक्टेयर क्षेत्रफल में से 84 प्रतिशत क्षेत्रफल पूसा 1121 अधीन और करीब 11. 25 प्रतिशत क्षेत्रफल बासमती 1509 अधीन था जबकि बाकी के क्षेत्रफल में अन्य किस्मों की काश्त की गई थी।
पंजाब कृषि यूनिवर्सिटी लुधियाना के सीनियर वैज्ञानिक डा. गुरजीत सिंह मांगट ने कहा किसान उन किस्मों को प्राथमिकता दें जिनको यह बीमारी कम लगती है और हर हालत में बीज को दवाई लगाकर ही बीजें। उन्होंने कहा कि किसान इस तत्व का प्रयोग न करें और यूनिवर्सिटी की तरफ से सिफारिश-शुदा फफूंद नाशकों का एक छिड़काव फसल के उभार से पहले ही कर दें।