पंजाब में लगातार कम हो रहा नहरी पानी का क्षेत्रफल

Edited By swetha,Updated: 21 Jun, 2018 08:40 AM

area of non continuous low water in punjab

पंजाब में सिंचाई के प्रयोग वाला नहरी पानी का क्षेत्रफल निरंतर 2 दशकों से खरतनाक हद तक कम होता जा रहा है। इसका बड़ा कारण यह भी हो सकता है कि दरियाओं में पानी का बहाव कम होना है या जब पंजाब सतलुज-यमुना लिंक नहर के 3.5 एम.ए.एफ. पानी के लिए लड़ रहा...

मानसा(मित्तल): पंजाब में सिंचाई के प्रयोग वाला नहरी पानी का क्षेत्रफल निरंतर 2 दशकों से खरतनाक हद तक कम होता जा रहा है। इसका बड़ा कारण यह भी हो सकता है कि दरियाओं में पानी का बहाव कम होना है या जब पंजाब सतलुज-यमुना लिंक नहर के 3.5 एम.ए.एफ. पानी के लिए लड़ रहा हो। यह पानी जागरूकता की कमी कारण पंजाब के पड़ोसी राज्य राजस्थान या हरियाणा के लिए मुफ्त दिया जा रहा है। इस समय पर चिंता का विषय यह है कि अगर इतनी बड़ी मात्रा, भाव 8 एम.ए.एफ. (मिलियन एकड़ फुट) नहरी पानी जो सिंचाई के लिए इस्तेमाल नहीं किया गया तो वह पानी आखिरकार कहां चला गया? 

क्या हैं नहरी पानी के तथ्य व ताजा आंकड़े 
वर्ष 1980-81 दौरान नहरी सिंचाई नीचे कुल सिंचाई क्षेत्रफल 1430 हजार हैक्टेयर था जो 1990-91 में बढ़ कर 1660 हजार हैक्टेयर हो गया था। बाद के कुछ वर्षों के आंकड़े प्राप्त नहीं हैं परन्तु 2000-01 के प्राप्त आंकड़ों के अनुसार नहरी सिंचाई क्षेत्रफल कम होकर 962 हजार हैक्टेयर रह गया। पंजाब में सिंचाई क्षेत्र बारे पिछले 5 वर्षों के प्राप्त आंकड़ों से अनुसार वर्ष 2010-11 दौरान इस के बिजवाई निचले कुल क्षेत्रफल का 98 प्रतिशत, वर्ष 2011-12 व 2012-13 दौरान 99 प्रतिशत और 2013-14 व 2014-15 दौरान 100 प्रतिशत क्षेत्र सिंचाई अधीन था। वर्ष 2014-15 के लिए यह आंकड़े दिखाते हैं कि सिंचाई के लिए औसतन 28.53 प्रतिशत (1175 हजार हेक्टेयर) पानी नहरों व बाकी 71.46 प्रतिशत (2943 हजार हैक्टेयर) पानी ट्यूबवैलों के द्वारा प्राप्त हुआ था।

नहरी पानी की मात्रा का अनुमान
नहरी पानी की मात्रा का अंदाजा लगाएं जो कभी 485 हजार हैक्टेयर क्षेत्रफल की सिंचाई के लिए इस्तेमाल किया जाता था। पंजाब में वर्ष 2014-15 दौरान चावलों की प्रति हैक्टेयर पैदावार 3838 किलोग्राम थी। एक किलोग्राम चावल पैदा करने के लिए औसतन 5337 लीटर पानी का प्रयोग होता है इसलिए एक साल में 485 हजार हैक्टेयर क्षेत्रफल में से चावलों की पैदावार 1861430000 किलोग्राम होगी और इतने चावलों की पैदावार के लिए सिंचाई के लिए 8 एम.ए.एफ. (मिलियन एकड़ फुट) पानी की जरूरत होगी। हर साल पंजाब में से 8 एम.ए.एफ. पानी मुफ्त ही दूसरे राज्यों को बह रहा है। इसका भाव यह भी है कि अपने अलाट हुए 14.54 एम.ए.एफ. कोटे में पंजाब बहुत कम दरियाई पानी इस्तेमाल कर रहा है। बताने योग्य है कि पंजाब को केवल चावल पैदा करने के लिए ही 48 एम.ए.एफ. पानी की जरूरत है परन्तु चावल पैदा करने के लिए पंजाब हर साल 24 एम.ए.एफ. जमीनी जल ट्यूबवैलों के द्वारा निकालता है। 

क्या करना होगा राज्य सरकार को 
सरकार को हर हालत में उन जिलों की शिनाख्त करनी होगी जहां नहरी सिंचाई नीचे क्षेत्रफल कम हुआ है। दूसरा यह क्षेत्रफल कम होने के कारणों का पता जरूर लगाना पड़ेगा। अलग-अलग पड़ावों पर सहज अनुभव यह है कि सरकार ने यह सोचे-समझे बिना बड़ी स्तर पर नए ट्यूबवैल कनैक्शन जारी किए हैं कि इस नीति के साथ लम्बे समय के लिए क्या पेचीदगियां पैदा होंगी, हालांकि इस के उलट किसानों को नहरी पानी के लिए उनको सिर्फ बारी का इंतजार नहीं करना पड़ता, नहर में पानी आने के लिए भी इंतजार करना पड़ता है।

अर्थशास्त्रियों की खोज 
आक्सफोर्ड बरुक्स यूनिवर्सिटी में अर्थशास्त्र के प्रोफैसर प्रीतम सिंह यू.के. व पीएच.डी. स्कॉलर आर.एस. मान ने बताया कि पंजाब सरकार ने और ज्यादा किफायती ढंग के साथ पानी का प्रयोग कर बिजली की बचत करने वाले किसानों के लिए नकदी वापसी स्कीम लाई है। इस स्कीम के द्वारा किसानों को ट्यूबवैल वाले पानी के प्रयोग की जगह, नहरी पानी के लिए उत्साहित किया जा सकता है। जहां नहरी सिंचाई खतरनाक हद तक कम हो गई है वहां 8 एम.ए.एफ. नहरी सिंचाई पानी की प्राप्ति के लिए व्यापक रणनीति तैयार करके उसे अमल में लाने के लिए कृषि नीति में कुछ खास व्यवस्थाएं करने की जरूरत है। 

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