Edited By Vatika,Updated: 24 Oct, 2018 09:27 AM
96 घंटे बाद भी रावण दहन के दौरान रेल पटरी पर देखा ‘खूनी मंजर’ घायलों के दिमाग में घूम रहा है, जबकि मौतों की जिम्मेदारी को लेकर खूब सियासत हो रही है। दिल में दर्द है, दिमाग में वही मंजर, आंखों में भविष्य के लिए सिर्फ आंसू हैं और मन में दिलासा है कि...
अमृतसर: 96 घंटे बाद भी रावण दहन के दौरान रेल पटरी पर देखा ‘खूनी मंजर’ घायलों के दिमाग में घूम रहा है, जबकि मौतों की जिम्मेदारी को लेकर खूब सियासत हो रही है। दिल में दर्द है, दिमाग में वही मंजर, आंखों में भविष्य के लिए सिर्फ आंसू हैं और मन में दिलासा है कि एक दिन दोबारा अपने काम-काज पर लौटेंगे।
घायलों को दर्द की दवा मिल रही है। दुआ यही कर रहे हैं जो हादसे में बच गए, वो जल्दी ठीक होकर घर लौटें। मरने वालों की आत्मा को शांति देने की प्रार्थना करते हैं, वहीं इस हादसे का जिम्मेदार सिस्टम और आयोजकों को मानते हैं। ‘पंजाब केसरी’ ने जाना इन घायलों का दर्द और कुछ उन यादों को टटोला जब वो मौत की ट्रेन से खुद बचे और दूसरों को बचाने में खुद जख्म ले बैठे। भविष्य की चिंता जहां उन्हें सता रही है, वहीं अस्पतालों में इलाज करा बच्चे आज दशहरा के बाद खुले स्कूलों में हाजिर नहीं हो सके।
मैंने देखा, ट्रेन आ गई और बस बचाने में जुट गया
लखबीर सिंह (30) की पत्नी माला खून से सनी वो शर्ट दिखा रही थी जो बाएं हाथ से ट्रेन हादसे में अलग हो गई थी, शुक्र है कि हाथ की हड्डी टूटी है। बताते हैं 6 बजे जोड़ा फाटक गया, सवा 6 बजे के करीब 2 ट्रेनें धीरी रफ्तार में निकल कर गईं। सूरज ढल चुका था, लेकिन रावण नहीं जला था। कुछ देर बाद जैसे ही रावण जला, उधर से ट्रेन बिजली की रफ्तार से आई। मैं और मेरे 3 दोस्त भी चपेट में आ गए। मैंने हौसला नहीं छोड़ा। मैं चीख कर दोस्त जट्टा को ढूंढ रहा था, जट्टा दिखाई दिया। हम 3 दोस्त कई लोगों को बचाने में कामयाब रहे, लेकिन तीनों को चोटें आईं। अस्पताल में सबसे पहले मैं खुद पहुंचा। पत्नी माला कहती है कि घर का खर्चा कैसे चलेगा। सियासत केवल हाल पूछने आती है, दवा मिल रही है, बस जख्म ठीक हो जाएं। कहते हैं कि इस हादसे के पीछे अहंकार और सिस्टम जिम्मेदार है।
ट्रेन आई और रौंदते, काटते हुए इंसानों को चली गई
अमर नाथ अमर कोट में रहते हैं। कहते हैं कि भाई विजय के साथ गया था मेला देखने। वो सीन जब आंखों के सामने आता है तो लगता है जैसे की मौत सामने खड़ी हो। मैंने सोचा कि अब जिंदा नहीं बचूंगा, लेकिन होनी को जो मंजूर। भगवान का शुक्र है कि मैं जिंदा बच गया। मेले में जैसे ही ट्रेन आई, मैं पटरी से थोड़ी दूर खड़ा था। इंसानों को दोनों पटरियों पर फेंकते हुए, रौंदते हुए ट्रेन आगे चली गई। किसी को कुछ भी सोचने का मौका नहीं मिला। इतनी मौतें हो चुकी हैं, आखिर इसका जिम्मेदार कौन है।
घायल बेटे को लाशों के बीच से निकाला पिता ने
विशाल 10 साल का है। पिता शाम बहादुर व मां कालिंदी दोनों उसके स्वस्थ होने का इंतजार कर रहे हैं। रावण दहन देखने विशाल पिता के साथ भाई विवेक (12), बहन काजल (8) के साथ गया था। हादसे के दौरान विशाल लाशों के नीचे दब गया। बाकी परिवार को रब ने बाल-बाल बचा लिया, लेकिन विशाल को लाशों के नीचे से बाप ने निकाला, तब वो बेहोश था। सिविल अस्पताल में इलाज चल रहा है। यह परिवार जज नगर में रहता है। कहता है, गुनहगारों को जज कड़ी सजा दे। विशाल पहली कक्षा में पढ़ता है। मूल रूप से यह परिवार उत्तर प्रदेश के गोरखपुर का रहने वाला है।
कृष्णा बोला बस ‘राम’ ने बचाया
सिविल अस्पताल में घायल कृष्णा सुंदर नगर में रहता है। दोस्तों के साथ रावण दहन देखने गया था। कहता है कि रावण वध होते ही ट्रेन ने मेरी आंखों के सामने ही कितने लोगों का वध कर दिया, खूनी ट्रेन ने कुछ ही देर में खुशी की जगह मातम का माहौल बना दिया। लोग चीख रहे थे। चीख-पुकार से मौके पर ऐसे हालात थे, जो याद करके अभी भी रूह कांप जाती है। जो लोग मरे हैं, उसका जिम्मेदार सिस्टम और आयोजक हैं। कड़ी सजा मिलनी चाहिए।