Edited By Vatika,Updated: 20 Oct, 2018 04:08 PM
अमृतसर में जोड़ा फाटक के समीप शुक्रवार शाम को रावण दहन देखने के दौरान रेल हादसे का शिकार हुए लोगों के परिजनों को यकीन नहीं हो रहा है कि उनके अपने अब इस दुनिया में नहीं रहे।
अमृतसरः अमृतसर में जोड़ा फाटक के समीप शुक्रवार शाम को रावण दहन देखने के दौरान रेल हादसे का शिकार हुए लोगों के परिजनों को यकीन नहीं हो रहा है कि उनके अपने अब इस दुनिया में नहीं रहे।
एेसा ही एक अभागा पिता विजय कुमार वह दृश्य याद कर अभी भी सिहर उठता है। उसने अपने 18 साल बेटे के कटे हुए सिर की फोटो अपने वॉट्पसऐप पर तड़के 3 बजे देखी। विजय के 2 बेटो में से एक आशीष भी घटनास्थल पर ही था। उसकी जान बच गई, लेकिन दूसरा बेटा मनीष उतना खुशकिस्मत नहीं निकला। विजय को जब इस हादसे का पता चला तो वह अपने बेटे की तलाश में एक अस्पताल से दूसरे अस्पताल भटकते रहा, लेकिन कुछ पता नहीं चला। फिर अचानक उसके वॉट्सऐप पर एक फोटो आई। फोटो उसके बेटे के कटे हुए सिर की थी। इस तलाश में विजय को एक हाथ और एक पैर मिला, लेकिन वह बेटे का नहीं था। रुंधे गले से विजय बताते हैं, "मनीष नीली जींस पहने हुए था, यह पैर उसका नहीं हो सकता। मेरी तो दुनिया ही उजड़ गई।" इस हृदय विदारक घटना के समय वहां मौजूद रहीं सपना को सिर में चोट आई है।
उन्होंने बताया कि वह रावण दहन का घटनाक्रम वॉट्सऐप वीडियो कॉल के जरिए अपने पति को दिखा रही थीं। जब पुतले में आग लगी तो लोग पीछे हटने लगे और पटरियों के करीब आ गए। जब ट्रेन करीब पहुंच रही थी तो लोग पटरी खाली करने लगे और दूसरी पटरी पर आ गए। इतने में एक और ट्रेन तेज गति से वहां आ गई और फिर भगदड़ मच गई। सपना ने इस हादसे में अपनी रिश्ते की बहन और एक साल की भतीजी को खो दिया। वह बताती हैं कि अफरा-तफरी में लोग इधर-उधर भागने लगे और बच्ची पत्थरों पर जा गिरी और उसकी मां को लोगों को पैरों तले रौंद दिया। उत्तर प्रदेश के हरदोई निवासी और दिहाड़ी मजदूर 40 साल के जगुनंदन को सिर और पैर में चोट आई है।
उन्होंने बताया कि वह घटना के समय पटरियों पर नहीं थे, लेकिन जब रावण जलने लगा तो आगे की तरफ मौजूद भीड़ पीछे हटने लगी और वह भी धक्का खाते हुए पीछे हो गए। अपनी मां परमजीत कौर के साथ रावण दहन देखने गई सात साल की खुशी की आंखों के सामने वह दर्दनाक मंजर अभी भी तैर रहा है। वह उस वक्त पटरियों पर गिर गई थी और उसे सिर में चोट लग गई। घायल हुए कई लोगों ने उस क्षण को याद करते हुए बताया कि उन्हें वहां आ रही ट्रेन का हॉर्न सुनाई नहीं दिया। एक और ट्रेन कुछ देर पहले ही वहां से गुजरी थी। पटाखों के शोर में ट्रेन की आवाज दब गई।