कैप्टन की राजशाही डुबो रही है पार्टी की लुटिया

Edited By Sonia Goswami,Updated: 13 Apr, 2018 08:40 AM

amarinder monarchy lose to party

प्रदेश के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरेंद्र सिंह की राजशाही वर्किंग लगातार पंजाब में कांग्रेस का ग्राफ गिरा रही है।

जालंधर  (रविंदर): प्रदेश के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरेंद्र सिंह की राजशाही वर्किंग लगातार पंजाब में कांग्रेस का ग्राफ गिरा रही है। पहले विधायकों की अनदेखी, फिर राणा गुरजीत सिंह व सुरेश कुमार का एपीसोड, अब पुलिस विभाग में बगावत और प्रदेश कांग्रेस प्रधान सुनील जाखड़ की बेइज्जती ने कैप्टन सरकार की साख को बट्टा लगा दिया है। एक तरफ प्रदेश में लगातार विकास की रफ्तार रुकने और दूसरी तरफ जनता पर लगातार पड़ रही टैक्सों की मार ने कैप्टन की कार्यप्रणाली को कटघरे में खड़ा कर दिया है। वहीं अब नए एपीसोड में जिस तरह से कैप्टन की राजशाही वर्किंग से जाखड़ नाराज हुए हैं, उससे पार्टी के भीतर बगावत की बीज बोए जा सकते हैं। 


दरअसल कैप्टन अमरेंद्र सिंह का अंदाज शुरू से ही राजशाही रहा है। 2002 में भी जब प्रदेश में कांग्रेस की सरकार के दौरान मुख्यमंत्री की बागडोर कैप्टन के हाथ में थी तो तब भी न कैप्टन अपने विधायकों से मिलते थे, न मंत्रियों को टाइम देते थे और न ही किसी वर्कर की पूछ होती थी। इसका असर यह हुआ था कि वर्कर लगातार पार्टी से कटता चला गया और प्रदेश की सत्ता से कांग्रेस 10 साल दूर रही। अब दोबारा सत्ता में आने के बाद कैप्टन ने फिर उसी शैली को अपनाए रखा हुआ है बल्कि अब की बार की शैली तो और भी घमंडी व राजशाही भरी है। न तो कैप्टन सी.एम. ऑफिस में कहीं नजर आ रहे हैं, न जिलों में ही कहीं कूच कर रहे हैं और न ही किसी विधायक की कोई सुनवाई सी.एम. दरबार में हो रही है। यहां तक कि कैबिनेट मंत्रियों की सी.एम. दरबार में कोई पूछ नहीं है। रही-सही कसर तो कैप्टन के सी.एम. रूम में फोन न ले जाने के फरमान ने पूरी कर दी है। इस आदेश से पहले ही पार्टी के सभी विधायक व नेतागण परेशान व आक्रोश में थे और अब प्रदेश प्रधान सुनील जाखड़ के साथ भी जब ऐसा दुव्र्यवहार किया गया तो बात दूर तक चली गई है। 


वहीं, मंत्रिमंडल विस्तार न होने के कारण भी लगातार विधायकों में रोष पनप रहा है। पार्टी के भीतर इस चर्चा ने जोर पकड़ लिया है कि क्या प्रदेश की जनता इसलिए सत्ता की चाबी किसी पार्टी को सौंपती है कि वह अपने राजशाही फरमान से न केवल प्रदेश का बेड़ा गर्क कर दे, बल्कि साथ ही अपने राजशाही अंदाज के कारण पार्टी का भी बेड़ा गर्क कर दिया जाए। कुल मिलाकर बात अब राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी तक पहुंच चुकी है और जिस तरह से प्रदेश प्रधान तक को सी.एम. दरबार से बेइज्जत होकर जाना पड़ा है, उससे आने वाले दिनों में पार्टी के भीतर एक बड़ी बगावत के आसार नजर आ रहे हैं क्योंकि पार्टी विधायकों का एक बड़ा नाराज खेमा जो पहले ही पूर्व प्रधान प्रताप सिंह बाजवा के साथ खड़ा नजर आ रहा था, वहीं अब उन्हें सुनील जाखड़ के रूप में एक सशक्त नेता मिल सकता है। ऐसे में आने वाले दिनों में कैप्टन की राह भी बेहद मुश्किल हो सकती है। 

 

विकास न होने व फंड न मिलने से विधायक पहले ही नाराज
कैप्टन सरकार को सत्ता में आए एक साल से ज्यादा का समय हो गया है। इन एक साल में सरकार की ओर से किसी भी विधायक को कोई फंड जारी नहीं किया गया है। न ही कहीं पर कोई विकास का काम नजर आ रहा है। ऐसे में अपने-अपने हलके में विधायकों की लगातार जनता में साख गिर रही है। कैप्टन सरकार की कार्यप्रणाली से पहले ही अधिकांश विधायक नाराज चल रहे हैं और वह किसी सशक्त चेहरे की तलाश में हैं, जो खुलकर कैप्टन के कामकाज का विरोध कर सके। 

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