लोकसभा चुनाव में अकाली-भाजपा के लिए खतरे की घंटी

Edited By Punjab Kesari,Updated: 01 Jun, 2018 11:34 AM

akali bjp not safe for in lok sabha elections

पहले गुरदासपुर लोकसभा उपचुनाव में भाजपा की बड़ी हार और अब शाहकोट उपचुनाव में अकाली दल की बड़ी हार ने दोनों पार्टियों के भविष्य पर खतरे की घंटी बजा दी है।

जालंधर (रविंदर): पहले गुरदासपुर लोकसभा उपचुनाव में भाजपा की बड़ी हार और अब शाहकोट उपचुनाव में अकाली दल की बड़ी हार ने दोनों पार्टियों के भविष्य पर खतरे की घंटी बजा दी है। खास तौर पर आने वाले 2019 में लोकसभा चुनाव को लेकर दोनों पार्टियों के भीतर टकराव की संभावना बढऩे के आसार हैं। एक तरफ जहां गुरदासपुर उपचुनाव में भाजपा को खुलकर अकाली दल का साथ नहीं मिला तो अब शाहकोट उपचुनाव में भाजपा के नेताओं ने खुलकर अकाली प्रत्याशी के लिए प्रचार नहीं किया। 

 

पहले 2014 लोकसभा चुनाव व फिर 2017 विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी ने पंजाब में दमदार एंट्री मारी थी। 2014 लोकसभा चुनाव में ‘आप’ को जहां देशभर ने नकार दिया था, वहीं उसके 4 सांसद पंजाब से ही चुनकर संसद भवन पहुंचे थे। इसके बाद विधानसभा चुनाव के दौरान भी ‘आप’ एक क्रांति के रूप में उभरी थी, हालांकि हाईकमान की कुछ गलत नीतियों के कारण ‘आप’ सत्ता से कोसों दूर हो गई थी, मगर वोट प्रतिशत व सीट जीतने के मामले में आप ने दूसरा नंबर प्राप्त किया था। 

 

ऐसा लगने लगा था कि ‘आप’ ने सबसे ज्यादा सेंधमारी अकाली दल व भाजपा के वोट बैंक में की है, मगर धीरे-धीरे अब प्रदेश भर में ‘आप का ग्राफ गिरता जा रहा है और लोगों का विश्वास तक इस पार्टी से उठने लगा है। ऐसे में कयास लगाए जा रहे थे कि ‘आप’ की तरफ आया वोट बैंक दोबारा अकाली व भाजपा की तरफ मुड़ सकता है, मगर गुरदासपुर व शाहकोट उपचुनाव के नतीजों ने साफ कर दिया है कि आप से खिसक रहा वोट बैंक अकाली-भाजपा की तरफ जाने की बजाय कांग्रेस की तरफ जा रहा है। यह आने वाले लोकसभा चुनाव में अकाली-भाजपा के लिए बड़ी खतरे की घंटी है और ऐसे में इन चुनावों में अकाली-भाजपा की राह आसान नहीं होगी, जबकि आप का वोट बैंक मिलने से कांग्रेस की बांछें खिली हुई नजर आ रही हैं। 

 

सरकार व दमदमी टकसाल टकराव ने भी अकाली दल को पहुंचाया नुक्सान
पिछले कुछ दिनों से जिस तरह प्रदेश में कांग्रेस सरकार व दमदमी टकसाल के बीच टकराव की स्थिति देखने को मिली है, ने भी अकाली दल को खासा नुक्सान पहुंचाया है। दरअसल प्रदेश का वोटर अब उग्र दल की राजनीति व उग्र बोलों की राजनीति से दूर रहना चाहता है। अकाल तख्त व दमदमी टकसाल की ओर से जिस तरह संत ढंडरियां वाले पर धमकी भरा लहजा अपनाया गया और इसके बाद प्रदेश की कांग्रेस सरकार ने दमदमी टकसाल को धमकी भरे लहजे में समझाया, उसका असर भी शाहकोट उपचुनाव में देखने को मिला। 

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