पंजाब में धराशायी होता जा रहा ‘आप’ का जनाधार, वोट बैंक में 17 फीसदी गिरावट

Edited By Suraj Thakur,Updated: 26 May, 2019 03:22 PM

aap vote bank

पजाब में ‘आप’ का जनाधार धराशायी होता नजर आ रहा है। दरअसल 2014 के चुनाव के मुकाबले इस लोकसभा चुनाव में ‘आप’ के वोट बैंक में करीब 17 फीसदी गिरावट दर्ज की गई है।

जालंधर(सूरज ठाकुर):पजाब में ‘आप’ का जनाधार धराशायी होता नजर आ रहा है। दरअसल 2014 के चुनाव के मुकाबले इस लोकसभा चुनाव में ‘आप’ के वोट बैंक में करीब 17 फीसदी गिरावट दर्ज की गई है। 2014 में ‘आप’ को 4 सीटों पर जीत दर्ज कर 24.5 फीसदी वोट मिले थे, जबकि इस बार ‘आप’ को 1 सीट के साथ 7.8 फीसदी ही वोट मिले हैं। अगर विधानसभा चुनाव-2017 की बात की जाए तो 20 सीटें हासिल करते हुए पार्टी को 23.72 फीसदी वोट मिले थे। साफ जाहिर है कि विधानसभा क्षेत्रों में भी ‘आप’ का जनाधार खिसक गया है। ‘आप’ को बताने जा रहे हैं कि ‘आप’ का पतन प्रदेश में 2016 में ही शुरू हो गया था, जब ‘आप’ से अलग होकर तत्कालीन कन्वीनर सुच्चा सिंह छोटेपुर ने नई पार्टी का गठन कर लिया था।  

देश में ‘आप’ के इकलौते सांसद
प्रदेश की 13 लोकसभा सीटों में पार्टी के प्रधान भगवंत मान ही अपनी सीट निकाल पाए हैं। यह माना जा रहा है कि यह सीट ‘आप’ नहीं भगवंत मान अपनी फेस वैल्यू के कारण जीते हैं। अब वह ‘आप’ के इकलौते सांसद होने के नाते पंजाब का ही नहीं पूरे देश का संसद में प्रतिनिधित्व करेंगे। भगवंत मान को संगरूर लोकसभा क्षेत्र से 1105888 वोटों में से 413561 वोट मिले हैं, जो कुल मतों का 37.4 फीसदी है।

दिशा-निर्देश विहीन हो गई थी पंजाब में ‘आप’
प्रदेश में चुनाव के दौरान ‘आप’ की स्थिति भ्रामक रही। पार्टी नेतृत्व सूबे के ‘आप’ सुप्रीमो को सही दिशा-निर्देश व चुनावी एजैंडा ही नहीं दे पाया। नतीजन ‘आप’ किसी भी राजनीतिक दल से गठबंधन नहीं कर पाई। यहां तक कि बहुजन समाज पार्टी से भी ‘आप’ का गठबंधन होते-होते रह गया और पार्टी का दलित वोट बैंक छिटकने के साथ पार्टी दिशाहीन होती चली गई। चुनाव प्रचार के आखिरी दिनों में अरविंद केजरीवाल ने पंजाब में डेरा तो डाला, लेकिन उसका कोई फायदा नहीं हुआ। अत: संगरूर में अपने ही दम पर भगवंत मान को अपनी सीट बचानी पड़ी।

2014 के बाद जब तानाशाह हुआ केंद्रीय नेतृत्व
‘आप’ का केंद्रीय नेतृत्व 2014 लोकसभा चुनाव जीतने के बाद पंजाब में तानाशाह रवैया अपनाने लगा था। लोकसभा चुनाव जीतने के बाद पंजाब में ‘आप’ की गहरी पैठ बन गई थी। 2017 में विधानसभा चुनाव में यह लहर चल पड़ी थी कि ‘आप’ पंजाब में सरकार बनाने वाली है। शायद यही वजह रही कि 2016 में ‘आप’ आलाकमान ने पार्टी के तत्कालीन कन्वीनर सुच्चा सिंह छोटेपुर पर कथित तौर पर रिश्वत का आरोप लगने पर उन्हें भी पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया था। 

2018 में बुरी तरह बिखरी ‘आप’
2017 के विधानसभा चुनाव में 20 सीटें जीत कर राज्य में अपना दबदबा कायम करने वाली ‘आप’ का भविष्य 2019 के लोकसभा चुनाव के आते-आते धूमिल हो चुका था। 2018 में पंजाब में ऐसा बिखराव शुरू हुआ कि यह बिखरती ही चली गई। पार्टी के प्रवक्ता सुखपाल खैहरा को उस समय पार्टी से अलग कर दिया गया, जब आम चुनाव नजदीक थे। पार्टी में संकट तब खड़ा हुआ जब सुखपाल खैहरा को विधायक दल के नेता के पद से हटा दिया गया। इस प्रकरण के बाद सुखपाल खैहरा ने पार्टी के खिलाफ  मोर्चा खोल दिया। 

एन.आर.आई. हुए ‘आप’ के लिए निष्क्रिय
इस बार लोकसभा चुनाव में विदेशों में रह रहे लाखों पंजाबियों ने भी चुनाव में ‘आप’ का सहयोग नहीं दिया जिसकी वजह पार्टी में बिखराव ही था। 2017 के विधानसभा चुनाव में पार्टी को 500 से ज्यादा एन.आर.आई. ने करोड़ों रुपए का चंदा ऑनलाइन या चैक के जरिए दिया था। इसके अलावा करीब साढ़े पांच हजार एन.आर.आई. चुनाव प्रचार करने पंजाब पहुंचे थे। इस बार ये एन.आर.आई. निष्क्रिय रहे और पार्टी को वित्तीय सहायता के अलावा प्रचार में भी कोई सहयोग नहीं मिला। नतीजन पार्टी अब बिल्कुल हाशिए पर नजर आ रही है, लोकसभा चुनाव के नतीजे अब पंजाब में टू पार्टी सिस्टम के संकेत दे रहे हैं।  

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