99 वर्ष बाद भी ‘जिंदा’ है जलियांवाला बाग में ‘जनरल डॉयर’ की क्रूरता के निशान

Edited By Anjna,Updated: 13 Apr, 2018 11:08 AM

99 years later the marks cruelty general dwar in jalianwala bagh

13 अप्रैल 1919 का दिन। जलियांवाला बाग में उस समय ‘रौलेट एक्ट’ के विरोध में रैली चल रही थी। करीब 2 हजार से अधिक लोग इस रैली में मौजूद थे। कुछ पर्यटक भी थे, जो रैली का हिस्सा बन गए थे। ठीक शाम के 5 बजकर 15 मिनट पर जनरल डॉयर ने अपने सैनिकों के साथ...

अमृतसर (स., नवदीप): 13 अप्रैल 1919 का दिन। जलियांवाला बाग में उस समय ‘रौलेट एक्ट’ के विरोध में रैली चल रही थी। करीब 2 हजार से अधिक लोग इस रैली में मौजूद थे। कुछ पर्यटक भी थे, जो रैली का हिस्सा बन गए थे। ठीक शाम के 5 बजकर 15 मिनट पर जनरल डॉयर ने अपने सैनिकों के साथ जलियांवाला बाग के भीतर जाने वाले एकमात्र रास्ते पर मशीनगन फिट करवाकर गोलियां चलाने के आदेश दे दिए। साढ़े 5 बजे तक 1650 राउंड गोलियां चली, जिसमें 384 लोगों की लाशें बिछ गई। इनमें 337 पुरुष, 41 नाबालिग व एक 6 माह का मासूम भी शामिल था। लोग गोलियों से बचने के लिए भागने लगे और बगल में स्थित कुआं में जान बचाने के लिए छलागें लगा दी। शहीदी कुआं (खूनी कुआं) से 120 लाशें बाद में निकाल गई। ये घटनास्थल पर रौंगटे खड़े कर देती हैं।PunjabKesari
‘सैल्फी’ लेने वाले भूले ‘शहीदों’ को 
जलियांवाला बाग में रोजाना हजारों पर्यटक पहुंचते हैं। शहीदों की स्थली अब सैरगाह बन गई है। लोग आते हैं सेल्फी लेते हैं, लेकिन शहीदों को बारे में उन्हें इतनी ही जानकारी है कि यहां पर गोलियां चली थी। गोलियां किसने चलाई और क्यों चलाई, अधिकांश युवा पर्यटक इस बात से अनभिज्ञ हैं। जयपुर के अविनाश रावते कहते हैं कि जलियांवाला बाग में गोलियां इस लिए चली क्योंकि अंग्रेजों के खिलाफ फतवा जारी किया गया था। PunjabKesari
 

जेब में रखा सिक्का भी गोलियों से छलनी 
जलियांवाला बाग म्यूजियम में संभाल कर रखी 13 अप्रैल 1919 की यादों में कुछ शहीदों की तस्वीरें हैं और वह सिक्का भी है जो किसी शहीद के जेब से निकला था। सिक्के पर भी गोलियों के निशान साफ दिखते हैं। PunjabKesari
 

आज भी सिहर जाते हैं लोग देख ‘शहीदी कुआं’
आज भी सिहर जाते हैं लोग शहीदी कुआं देख कर। इस कुआं में 120 लाशें निकली थीं। अब इस कुआं को देखने देश-दुनिया से पर्यटक पहुंचते हैं। कुआं देख अंदाजा लगाते हैं किस तरह उस दिन निहत्थे भारतीयों ने इसमें छलागें लगाई। कुआं लाशों से भर गया था, तब से इसे ‘खूनी कुआं’ भी कहा जाने लगा है। PunjabKesari
उधम सिंह की अस्थियां को ‘शहादत’ का इंतजार 
जलियांवाला बाग का बदल लेने वाले ऊधम सिंह की अस्थियां तो बाग के म्यूजियम में संभाल कर रखी हैं, लेकिन उन्हें शहादत का इंतजार है। 1940 में फांसी चूमने वाले ऊधम सिंह को शहीद का दर्जा कब मिलेगा, यह सरकारें तय नहीं कर सकी हैं। PunjabKesari
यह है वह गली जहां से दाखिल हुई थी अंग्रेजों की फौजें 
यह वह गली है जहां अंग्रेजों की फौजें दाखिल हुई थी। बाग के भीतर जाने का एक ही रास्ता होने के चलते निहत्थे भारतीय को जान बचाने के लिए बाग में इधर-उधर भागना पड़ा और नतीजा 15 मिनट की फायरिंग में दुनियां में सबसे क्रूरता भरी घटना सामने आई।

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