शहादत के 52 वर्षों बाद भी शहीद के परिवार के जख्म हरे,पत्नी ने अपने पैसों से बनवाया यादगारी गेट

Edited By Punjab Kesari,Updated: 13 Sep, 2017 10:14 AM

52 years after the martyrdom of the martyr  s family  the wounds of green

1965 के भारत-पाक युद्ध को 52 वर्ष पूरे होने को हैं। गत वर्ष सरकार द्वारा इस युद्ध की जीत को स्वर्ण जयंती के रूप में मनाते हुए इस युद्ध में शहीद हुए बहादुर सैनिकों की शहादत को एक सुर में याद कर उनके शौर्य को सारे देश ने नमन किया था मगर उस युद्ध की...

पठानकोट/भोआ (शारदा,अरुण/आदित्य): 1965 के भारत-पाक युद्ध को 52 वर्ष पूरे होने को हैं। गत वर्ष सरकार द्वारा इस युद्ध की जीत को स्वर्ण जयंती के रूप में मनाते हुए इस युद्ध में शहीद हुए बहादुर सैनिकों की शहादत को एक सुर में याद कर उनके शौर्य को सारे देश ने नमन किया था मगर उस युद्ध की विभीषिका का दंश झेलने वाले शहीद परिवारों के जख्म आज भी हरे हैं। 
एेसा ही एक परिवार है सीमावर्ती गांव हैबत पिंडी निवासी अशोक चक्र विजेता रेलवे के फायरमैन शहीद चमन लाल का, जोकि शहादत के 5 दशक बीत जाने के बावजूद सरकार की उपेक्षा का दंश झेल रहा है।

शहीद फायरमैन चमन लाल ने 1965 के भारत-पाक युद्ध में अपनी वीरता दिखाते हुए पूरे गुरदासपुर शहर को तबाह होने से बचाया था। शहीद की पत्नी आशा रानी जो कि पिछले 50 वर्षों से अपने मायके अमृतसर में रह रही है, ने स्थानीय प्रवास के दौरान नम आंखों से बताया कि 13 सितम्बर का दिन इन्हें भला कैसे भूल सकता है। उनके पति उस समय गुरदासपुर रेलवे स्टेशन पर फायरमैन के पद पर तैनात थे। भारत-पाक के बीच जंग चल रही थी। 

स्टेशन पर पैट्रोल टैंकरों से भरी मालगाड़ी आकर रुकी थी कि उसी समय पाकिस्तानी जहाजो ने स्टेशन पर भीषण गोलाबारी शुरू कर दी। इससे 3 टैंकरो को आग लग गई। पल भर की देरी पूरे गुरदासपुर शहर को तबाह कर सकती थी। फायरमैन चमन लाल ने जान की परवाह किए बिना अपनी बहादुरी व शौर्य दिखाते हुए आग की चपेट में आए डिब्बों को बाकी ट्रेन से अलग कर सुरक्षित जगह पर पहुंचाया। इस दौरान वह खुद आग की चपेट में आ गए और गुरदासपुर शहर को बचाते हुए शहादत का जाम पी गए। 

उनके इस अदम्य साहस के लिए 26 जनवरी, 1966 को तत्कालीन राष्ट्रपति डा. राधा कृष्णन ने उनको मरणोपरांत अशोक चक्र प्रथम श्रेणी से सम्मानित किया। शहीद की पत्नी ने सजल नेत्रों से बताया कि जब उनके पति शहीद हुए थे तो उनका बेटा राज कुमार मात्र 40 दिन का था तथा बेटी पवना कुमारी 2 वर्ष की थी। पति की शहादत के बाद सरकार ने उनके गांव में एक यादगारी गेट का निर्माण, सरकारी स्कूल, डिस्पैंसरी का नाम शहीद के नाम पर करवाने तथा गांव में एक स्टेडियम बनाने की घोषणा की थी मगर अफसोस पति की शहादत के 52 वर्ष गुजर जाने के बाद भी घोषणाओं को अमली जामा नहीं पहनाया जा सका। 

कुछ वर्ष पहले उन्होंने अपने खर्चे पर ही अपने गांव में यादगारी गेट का निर्माण करवाया ताकि सीमावर्ती क्षेत्र की युवा पीढ़ी उनके पति की शहादत से प्रेरणा ले सके। उन्होंने बताया कि पति के शहीद होने के बाद रेलवे विभाग ने जहां उन्हें नौकरी दी वहीं गुरदासपुर रेलवे स्टेशन पर उनके पति की याद में एक स्मारक भी बनवाया लेकिन रेलवे में नि:शुल्क पास की सुविधा काफी जद्दोजहद के बाद वर्ष 2012 में ही मिली। उन्होंने कहा कि अब वह सेवानिवृत्त हो चुकी हैं मगर उनका बेटा आज भी बेरोजगार घूम रहा है। सरकार से मिलने वाली पैंशन से ही परिवार का गुजारा चल रहा है। 

उन्होंने आगे बताया कि पति के तीनों भाइयों ने जमीन के हिस्से व पैतृक मकान पर कब्जा जमा लिया है। इस अवसर पर शहीद के परिवार से दुख सांझा करने पहुंचे शहीद सैनिक परिवार सुरक्षा परिषद के महासचिव कुंवर रविंदर विक्की ने कहा कि फायरमैन चमन लाल रेलवे विभाग के एकमात्र एेसे कर्मचारी हैं, जिन्हें उनकी बहादुरी के लिए राष्ट्रपति द्वारा मरणोपरांत अशोक चक्र से सम्मानित किया गया है। इसलिए सरकार को शहीद परिवार की भावनाओं का सम्मान करते हुए अपने वायदे को पूरा करना चाहिए। कुंवर विक्की ने बताया कि शहीद चमन लाल की शहादत को नमन करने के लिए 13 सितम्बर को 2 जगह सुबह रेलवे स्टेशन गुरदासपुर व बाद दोपहर गांव हैबतपिंडी के सरकारी हाई स्कूल में एक श्रद्धांजलि समारोह का आयोजन किया जा रहा है।

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