Edited By Punjab Kesari,Updated: 28 Oct, 2017 10:48 AM
2019 के लोकसभा चुनाव में डेढ़ साल से भी कम समय बचा है मगर कांग्रेस अपनी अंदरूनी लड़ाई में ही उलझी हुई है। प्रदेश सरकार की ढीली कारगुजारी से न केवल वर्कर का मनोबल गिर रहा है बल्कि प्रदेश की जनता भी लगातार कैप्टन सरकार के कामकाज से खुश नजर नहीं आ रही...
जालंधर(रविंदर शर्मा): 2019 के लोकसभा चुनाव में डेढ़ साल से भी कम समय बचा है मगर कांग्रेस अपनी अंदरूनी लड़ाई में ही उलझी हुई है। प्रदेश सरकार की ढीली कारगुजारी से न केवल वर्कर का मनोबल गिर रहा है बल्कि प्रदेश की जनता भी लगातार कैप्टन सरकार के कामकाज से खुश नजर नहीं आ रही है। वहीं पार्टी के सांसदों का भी ढीला रवैया आने वाले समय में पार्टी को भारी पडऩे जा रहा है। कुल मिलाकर 2019 की लड़ाई में कांग्रेस पिछड़ती नजर आ रही है तो दूसरी तरफ गुरदासपुर उपचुनाव की हार से सबक लेते हुए भाजपा अब आने वाले समय में आक्रामक तरीके से अगले चुनावों की कैंपेन में जुटने जा रही है।
बात 2014 की करें तो मोदी लहर में प्रदेश में पहली बार चुनाव लड़ रही आम आदमी पार्टी ने सबसे बेहतरीन परफार्मैंस दी थी। आम आदमी पार्टी ने 24.4 प्रतिशत वोट शेयर करते हुए 13 में से 4 लोकसभा सीटों पर कब्जा जमाया था। अकाली दल को 4, भाजपा को 2 तो कांग्रेस को महज 3 सीटों पर ही संतोष करना पड़ा था। हालांकि कांग्रेस का वोट शेयर 33.10 प्रतिशत सबसे ज्यादा था मगर आम आदमी पार्टी ने सबसे ज्यादा नुक्सान कांग्रेस का ही किया था और कांग्रेस के 12.13 प्रतिशत वोट बैंक में सेंध लगाई थी। मौजूदा समय में पार्टी सांसदों की बात करें तो वह औसत दर्जे पर फीकी ही नजर आ रही है। बेहद उम्मीद के साथ अमृतसर की जनता ने कैप्टन अमरेंद्र सिंह को यहां से सांसद बनाकर दिल्ली भेजा था ताकि अमृतसर के लिए वह कुछ नया करेंगे मगर कैप्टन एक बार भी अमृतसर की जनता की आवाज को संसद में नहीं उठा सके। अब अमृतसर की जनता खुद को ठगा-सा महसूस कर रही है।
अमृतसर के अलावा जालंधर व लुधियाना से ही पार्टी के सांसद जीत सके थे। यहां से सांसद रहे संतोख चौधरी व रवनीत बिट्टू की कारगुजारी औसत दर्जे की रही है और वे अपने-अपने जिले के लिए कोई खास बड़ा प्रोजैक्ट लाने में नाकाम रहे हैं। अन्य जिलों में भी कांग्रेस की स्थिति कुछ ज्यादा बेहतर नहीं है। जालंधर व लुधियाना में तो पार्टी के भीतर ही अपने सांसदों के खिलाफ एक अलग लॉबी तैयार होती नजर आ रही है। सिर्फ पटियाला ही एक ऐसा हलका नजर आ रहा है जहां कांग्रेस की स्थिति कुछ अच्छी है, अन्य सीटों पर अगर अकाली दल व भाजपा ने अभी से आक्रामक रुख से कैंपेन की कमान संभाल ली तो कांग्रेस के लिए ये मुसीबत बन सकते हैं। ऐसे में राहुल गांधी के 2019 में खुद को प्रधानमंत्री प्रोजैक्ट करने की योजना पर पंजाब के नेता पानी फेर सकते हैं। प्रदेश की आॢथक स्थिति किसी से छुपी नहीं है और आने वाले समय में भी अगर कांग्रेस ने आर्थिक घाटे को कम करने का प्रयास न किया तो हालात और बिगड़ेंगे। ऐसे में प्रदेश के विकास कार्य ठप्प हो सकते हैं और इसका सीधा फायदा अकाली-भाजपा को हो सकता है।