2012 के चुनाव पर 300 करोड़ से ज्यादा का आया था खर्च

Edited By Updated: 24 Jan, 2017 10:27 AM

2012 election came at the expense of 300 million

चुनाव विशेषज्ञों के मुताबिक 2012 के चुनावों में 300 करोड़ रुपए से ज्यादा का खर्च हुआ था। यह खर्चा चुनावी रैलियों से लेकर हर छोटे-बड़े चुनाव प्रबंध में किया गया। नेताओं के आने-जाने पर ही करोड़ों रुपए का खर्चा हुआ था।

जालंधरःचुनाव विशेषज्ञों के मुताबिक 2012 के चुनावों में 300 करोड़ रुपए से ज्यादा का खर्च हुआ था। यह खर्चा चुनावी रैलियों से लेकर हर छोटे-बड़े चुनाव प्रबंध में किया गया। नेताओं के आने-जाने पर ही करोड़ों रुपए का खर्चा हुआ था। उधर, पंजाब की आम जनता का कहना है कि इस बार लग ही नहीं रहा कि राज्य में विधानसभा चुनाव हो रहे हैं। नोटबंदी के चलते चुनावों की रंगत खत्म हो गई है।   

कार्ड स्वैपिंग और ऑनलाइन ट्रांजैक्शन बढ़ी 
राजनीतिक दलों की इलैक्शन डील कर रही मैनेजमैंटों का कहना है कि चुनावों में नोटबंदी के साइड इफैक्ट देखने को मिल रहे हैं। छोटे खर्चों के लिए भी कार्ड स्वैपिंग, पेटीएम और ऑनलाइन ट्रांजैक्शन ज्यादा हो रही है।आगामी दिनों की मांगों को पूरा करने के लिए एडवांस बुकिंग से ऑर्डर देने पड़ रहे हैं। 

प्रत्याशियों ने बताई तंगी
इस मुद्दे पर ‘पंजाब केसरी’ की टीम ने 135 प्रत्याशियों से बात की तो उन्होंने नोटबंदी से हो रही परेशानी को खुलकर बयान किया। अधिकतर प्रत्याशियों का कहना था कि बैंक द्वारा निर्धारित की गई लिमिट से परेशानी बढ़ रही है। 24,000 की लिमिट होने से बैंकों से पैसा नहीं निकाल पा रहे हैं। माइक, चाय, शामियाने, गाडियों की व्यवस्था के लिए भी लोग कैश मांग रहे हैं। उधारी तेजी से बढ़ रही है जिसे चुकाने में वक्त लगेगा। इसके अलावा कई बंदोबस्तों को पूरा करने के लिए रिश्तेदारों से उधार करना पड़ रहा है। ए.टी.एम. में फिर से लाइनें लगनी शुरू हो गई हैं। 

*53 प्रतिशत ने कहा नोटबंदी से परेशानी हो रही है
*30 प्रतिशत ने कहा पे.टी.एम. व अन्य ऑनलाइन ट्रांजैक्शन का सहारा ले रहे
*20 प्रतिशत ने कहा कि नोटबंदी से कोई परेशानी नहीं हो रही

 चैक का पड़ रहा चक्कर
नोटबंदी के पीछे एक वजह पी.एम. मोदी ने टैक्स चोरी को रोकने की भी बताई थी जिसके तहत ई पेमैंट या चैक के जरिए भुगतान करने की बात कही गई थी। अब चुनावों में उम्मीदवारों को 20 हजार से ऊपर का खर्च चैक के रूप में करने को कहा गया है। इस चक्कर में उम्मीदवार अपने खाते में से सिर्फ उसी काम के लिए चैक से पेमैंट दे रहा है जो उसने पक्के खर्च में दिखानी होती है। हालांकि उम्मीदवारों के पैसे जो दूसरों के खाते में जमा हैं, उसके भी चैक उनके पास हैं और कई जगह फंड के रूप में चैक मिल रहे हैं। अगर उम्मीदवार किसी सामान की पेमैंट के लिए चैकों का प्रयोग करता है तो आगे चैक लेने वाला टैक्स या बिल के चक्कर में आनाकानी कर रहा है। वोट से ज्यादा फंड की डिमांड  
नोटबंदी के दौर में आए चुनावों में जो रोचक तस्वीर देखने को मिल रही है उसका एक पहलू यह भी है कि कई उम्मीदवार तो वोट की जगह फंड की डिमांड ज्यादा कर रहे हैं। कई जगह देखने को मिला कि जो उम्मीदवार हर किसी को अपने दोस्त, रिश्तेदार या बिजनैस सर्कल से वोटों के लिए संपर्क करने को कहता था, अब उसकी सिफारिश फंड दिलवाने के लिए हो रही है। 

डोर-टू-डोर प्रचार पर जोर
चुनावों में नोटबंदी का असर यह भी है कि रैलियों या मीटिंगों की जगह डोर-टू-डोर प्रचार पर जोर है क्योंकि रैली या मीटिंग करवाने वाले ज्यादातर लोगों द्वारा उम्मीदवार पर ही खर्च का बोझ डाला जाता है। साथ ही चुनाव आयोग की वीडियोग्राफी टीमें भी खर्च जोडऩे के लिए हर समय उम्मीदवार के पीछे लगी रहती हैं। इसका हवाला देते हुए उम्मीदवारों द्वारा डोर-टू-डोर प्रचार को पहल दी जा रही है। अगर कहीं मीटिंग करनी भी पड़ जाए तो बड़े आयोजन के रूप में टैंट, कुसिंयां लगाने की जगह घर या फैक्टरी के अंदर ही इसका प्रबंध हो रहा है। 

नहीं खुल रहे ज्यादा आफिस
चुनावों में आम तौर पर हर उम्मीदवार का आफिस नजर आता था लेकिन इस बार आफिस एकाध ही है क्योंकि अगर आफिस खुलेंगे तो उन सब का खर्च उम्मीदवार के खाते में जुड़ेगा। इसी तरह जो लोग आफिस में बैठेंगे, उनके खर्च भी उम्मीदवार को देने पडेंग़े। यहां तक कि जो उम्मीदवारों के आफिस बने हुए हैं, उनमें बनने वाला खाना भी पहले के मुकाबले सादा ही है। 

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