21 करोड़ की लागत से बने जिला अस्पताल में  4 दिनों में 3 नवजातों की मौत

Edited By swetha,Updated: 21 May, 2019 09:56 AM

district hospital

जिला अस्पताल नवांशहर नवजन्मे बच्चों को जीवन देने के स्थान पर मौत का घर बनता जा रहा है।

नवांशहर (त्रिपाठी): जिला अस्पताल नवांशहर नवजन्मे बच्चों को जीवन देने के स्थान पर मौत का घर बनता जा रहा है। पिछले 4 दिनों में हुई 3 नवजन्मे बच्चों की मौत इसका उदाहरण है। सितम्बर 2014 में करीब 21 करोड़ रुपए की लागत से बने इस अस्पताल में गायनोकोलॉजिस्ट के 3 मंजूरशुदा पद होने के बावजूद एक भी गायनोकोलॉजिस्ट डाक्टर न होने से यहां पर सरकार की इंस्टीच्यूट डिलीवरी प्रभावित हो रही है। वहीं अस्पताल में हो रही नवजन्मे बच्चों की मौत से अस्पताल में डिलीवरी करवाने आने वाली गर्भवती महिलाओं में भय का माहौल है।

लड़के की खुशी चंद मिनटों के बाद हुई धूमिल 
नवांशहर के जिला अस्पताल में अपनी पत्नी संजू की डिलीवरी करवाने पहुंचे धनु राम ने बताया कि वह मूल रूप से यू.पी. के जिला गौंडा का रहना वाला है और पिछले 6-7 वर्षों से जिला शहीद भगत सिंह नगर में मैसन का कार्य करके अपने परिवार का पालन पोषण कर रहा है। उसने बताया कि पत्नी के गर्भवती होने के चलते वह गत रात करीब 2 बजे जिला अस्पताल में डिलीवरी के लिए पत्नी को लेकर आया था और आज सुबह 9.30 बजे उसकी पत्नी ने लड़के को जन्म दिया था। इस उपरान्त उसके बच्चे को पत्नी के साथ लेटा भी दिया लेकिन बाद में डाक्टर ने उसे बताया कि उसके लड़के की धड़कन कम होने के चलते मौत हो गई है। इस संबंधी पत्नी को अभी तक कुछ नहींं बताया गया है। धनु राम ने बताया कि 2 लड़कियों के बाद लड़का होने पर वह बहुत प्रसन्न था। इस खुशी को अपने परिवार के साथ सांझा किया था लेकिन कुछ ही मिनटों के बाद यह खुशी गम में बदल गई।

पल भर ही रही लड़का होने की खुशी

जिला अस्पताल में डिलीवरी के लिए पहुंची अंजू की जेठानी शिवाली ने बताया कि 11 महीने पहले ज्योति की शादी दीपक निवासी नवांशहर जो कबाड़ का कार्य करता है के साथ शादी हुई थी। अंजू को 18 मई की रात को जिला अस्पताल में डिलीवरी के लिए लाया गया था। अस्पताल वालों ने लड़का होने की सूचना दी तो पूरा परिवार पहला बच्चा लड़का होने पर बहुत प्रसन्न था। नवजन्मा बच्चा हैल्थी था लेकिन कुछ ही घंटों के बाद बताया गया कि धड़कन कम होने के चलते बच्चे की मौत हो गई है। शिवाली ने आरोप लगाते हुए बताया कि यदि अस्पताल प्रशासन के पास गायनीकोलॉजिस्ट डाक्टर ही नहीं है तो वह गर्भवती माताओं के जीवन को क्यों बर्बाद कर रहा है। 

1 लड़की के बाद हुआ था लड़का

अंगूरी देवी ने बताया कि दामाद जाडला में हलवाई के साथ काम करता है। उसकी लड़की ज्योति पहले भी एक लड़की की मां है। पुन: गर्भवती होने पर उसे जिला अस्पताल में डिलीवरी के लिए लाया गया। डिलीवरी के बाद लड़का हुआ था जिसे स्वस्थ बताकर मां के पास भी लेटाया गया था लेकिन कुछ समय बाद ही अस्पताल की नर्स नवजन्मे लड़के को अपने साथ ले गई और बाद में उन्हें बताया गया कि बच्चे की धड़कन गिर जाने के चलते मौत हो गई है। अंगूरी देवी ने जिला अस्पताल कर्मचारियों पर आरोप लगाते हुए कहा कि बिना गायनीकोलॉजिस्ट डाक्टर के चलते की जा रही डिलीवरी नवजन्मे बच्चों की मौत का कारण बन रही है और अस्पताल प्रशासन मूकदर्शक बना बैठा है।

अप्रैल में भी हुई 1 बच्चे की मौत
जानकारी अनुसार अप्रैल में डिलीवरी के लिए कुल 86 केस आए थे जिसमें से 85 बच्चे जिंदा हैं जबकि 1 बच्चे की आई.यू.डी. (पेट में ही डैथ) हुई है। इसी तरह से मई में अब तक कुल 48 डिलीवरियां हुईं जिनमें से 4 नवजन्मे बच्चों की मौत हुई है।

इंस्टीच्यूट डिलीवरी मुहिम को लग रहा झटका 
स्वास्थ्य विभाग द्वारा इंस्टीच्यूट डिलीवरी को प्रोमोट करने के लिए विभिन्न प्रकार की सुविधाएं गर्भवती महिलाओं को दी जा रही हैं ताकि लोग महंगे निजी अस्पतालों के स्थान पर नि:शुल्क प्रसूति केस करवाने के लिए सरकारी अस्पतालों में ही डिलीवरी करवाएं। विभाग घरों में दाइयों की मार्फत होने वाली अत्यन्त रिस्की डिलीवरी के स्थान पर लोगों को इंस्टीच्यूट डिलीवरी करवाने के लिए लगातार जागरूक भी करता आ रहा है लेकिन सिविल अस्पताल में गायनीकोलॉजिस्ट का पद रिक्त होना ङ्क्षचता का विषय है।

क्या कहना है अधिकारियों का

  • उक्त मामलों में प्रशासन द्वारा किसी तरह की लापरवाही नहीं बरती गई है बल्कि अपरिहार्य स्थितियों में जिसमें बच्चों को किसी अन्य स्थान पर बिना प्राथमिक उपचार के शिफ्ट करना संभव नहीं था, में मौतें हुई हैं। अस्पताल में गायनीकोलॉजिस्ट के सभी 3 पद रिक्त पड़े हैं जिस संबंधी उच्चाधिकारियों को बार-बार लिखा गया है। - डा. हरविन्दर सिंह, सीनियर मैडीकल अधिकारी 
  • चुनाव के चलते आचार संहिता लागू होने से जिला अस्पताल को नए डाक्टर नहीं मिल पाए हैं। हालांकि इस संबंधी विभाग को पहले से लिखा गया है। जल्द ही अस्पताल में गायनीकोलॉजिस्टों की कमी को पूरा कर लिया जाएगा। -डा. गुरिन्दर कौर चावला, सिविल सर्जन

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