तो क्या 17 लोगों ने देश में जल-वायु प्रदूषण फैलाकर ली 12 लाख लोगों की जान !

Edited By Sunita sarangal,Updated: 09 Feb, 2020 11:00 AM

water and air pollution spread 17 millions lost their lives

एन.सी.आर.बी. की रिपोर्ट का हैरतअंगेज खुलासा, सवा सौ करोड़ की आबादी में पर्यावरण से छेड़खानी करने वाले सिर्फ 35,196 लोग

-सवा सौ करोड़ की आबादी में पर्यावरण से छेड़खानी करने वाले सिर्फ 35196 लोग
-महानगरों का पॉल्यूशन से दम घुट रहा है, लोग दूषित जल से मर रहे हैं।
-सरकारें पर्यावरण के कानूनों को सख्ती से लागू ही नहीं कर पा रही हैं।


जालंधर(सूरज ठाकुर): देशभर में जल और वायु प्रदूषण की वजह से हर साल 12 लाख लोगों की जान जा रही है लेकिन जनवरी माह में जारी 2018 की नैशनल क्राइम ब्यूरो (एन.सी.आर.बी.) रिपोर्ट कुछ और ही कह रही है। इस रिपोर्ट में पर्यावरण को लेकर हैरतअंगेज तथ्य सामने आए हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि देशभर में जल और वायु प्रदूषण फैलाने के सिर्फ 17 मामले ही सामने आए हैं। इनमें मध्य प्रदेश में सर्वाधिक 7, केरल में 3, गुजरात में 2, हरियाणा, कर्नाटक, महाराष्ट्र, यू.पी. और वैस्ट बंगाल में 1-1 मामला दर्ज हुआ है। अगर वाकई ही यह रिपोर्ट सही है तो क्या यह मान लिया जाए कि इतने कम लोगों ने ही लाखों लोगों को मौत की नींद सुला दिया? देश की संसद में हवा-हवाई बातें करने वाली सरकारें पर्यावरण के कानूनों को सख्ती से लागू ही नहीं कर पा रही हैं। महानगरों में लोगों का पॉल्यूशन से दम घुट रहा है, लोग दूषित जल से मर रहे हैं। स्वच्छ वायु और जल के भाषण संसद में रिकॉर्ड हो रहे हैं और पर्यावरण की फाइलें दफ्तरों में धूल फांक रही हैं।

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धूम्रपान और ध्वनि प्रदूषण के मामले ज्यादा
साल 2018 में पर्यावरण कानून के तहत कुल 35,196 मामले दर्ज किए गए हैं। इनमें सर्वाधिक तमिलनाडु के 14,536, केरल 5,750, उत्तर प्रदेश के 1,693, महाराष्ट्र 1,010, तेलंगाना 483, कर्नाटक 400, हिमाचल 270, उत्तराखंड 194 और झारखंड के 155 मामले शामिल हैं। पर्यावरण संबंधी विभिन्न कानूनों के तहत दर्ज मामलों में फॉरैस्ट कंजरवेशन एक्ट के 2,768, वाइल्ड लाइफ प्रोटैक्शन 782, एनवायरनमैंटल प्रोटैक्शन एक्ट 86, एयर एंड वाटर पॉल्यूशन कंट्रोल 17, धूम्रपान और तंबाकू के 23,517, ध्वनि प्रदूषण के 7,947 और नैशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल के 79 मामले शामिल हैं।

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सरकार पर सवालिया निशान?
आंकड़ों के विश्लेषण से पता चलता है कि जिन राज्यों में पर्यावरण के खिलवाड़ के मामले ज्यादा हैं वहां कानून का उल्लंघन ज्यादा हुआ है और जिन राज्यों में ऐसे मामलों की संख्या कम है वहां पर पर्यावरण से छेड़खानी कम हो रही है। अगर यही वास्तविकता है तो देशभर में बढ़ रहे विभिन्न प्रकार के प्रदूषण का स्तर केंद्र सरकार की योजनाओं पर सवालिया निशान छोड़ता है। राजधानी दिल्ली समेत कई शहरों में वायु प्रदूषण खतरनाक स्तर को भी पार कर गया है। देश में जीवन-प्रत्याशा (लाइफ एक्सपैक्टैंसी) में 5.3 साल की कमी आई है। दिल्ली से सटे 2 शहरों हापुड़ और बुलंदशहर में जीवन-प्रत्याशा 12 साल कम हो गई है जो दुनिया में किसी भी शहर की तुलना में सबसे ज्यादा है।

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ऐसे हैं हालात
वाहनों से होने वाला प्रदूषण बच्चों की दिमागी संरचना को बदल रहा है। एक अध्ययन के मुताबिक देश में वायु प्रदूषण के कारण प्रति तीन मिनट एक बच्चा अपने निचले फेफड़े के संक्रमण (एल.आर.आई.) के कारण जान गंवा रहा है। उद्योग और दूषित नदियां केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सी.पी.सी.बी.) ने अपने अध्ययन में कहा है कि देश की 323 नदियों के 351 हिस्से प्रदूषित हैं। ऐसी कोई भी औद्योगिक इकाई जो रोजाना 100 किलोलीटर औद्योगिक अपशिष्ट की निकासी करती हो या फिर पर्यावरण (संरक्षण) कानून 1986 के तहत अधिसूचित खतरनाक रसायनों का उत्पादन, भंडारण व आयात करती है, उसे ग्रॉस पॉल्यूटिंग इंडस्ट्री कहा जाता है। उन पर निगरानी भी बड़ा सवाल है।

 

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वर्तमान में जी रहे हैं, भविष्य का पता नहीं
पिछले बजट में इस मद में 460 करोड़ रुपए ही आबंटित किए गए थे। वर्तमान बजट में इसके लिए करीब 10 गुणा बजट बढ़ाया गया है। पर्यावरणविद् सरकार की इस घोषणा का स्वागत कर रहे हैं। यहां आपको यह बताना भी जरूरी है कि पिछले बजट की राशि का सरकार राज्यों को 38 फीसदी ही इस्तेमाल कर पाई। केंद्र सरकार पर्यावरण को स्वच्छ रखने के लिए राज्यों को पैसा मुहैया नहीं करवा पा रही है और न ही राज्य सरकारें पर्यावरण कानूनों को सख्ती से लागू कर पा रही हैं। लोग वर्तमान में जीने के आदी हो गए हैं, भविष्य का स्वरूप फाइलों में दफन होता जा रहा है।

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रिपोर्ट में उद्योगों का जिक्र नहीं
रिपोर्ट में देश के उन उद्योगों, वाहनों और संयंत्रों का जिक्र नहीं किया गया है जो वायु में जहर घोल रहे हैं। उनके खिलाफ की गई कार्रवाई के आंकड़े भी रिपोर्ट में नहीं हैं। हालांकि देश भर के कई राज्यों के मामले अदालतों और नैशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एन.जी.टी.) में लंबित पड़े हुए हैं। शहरों में वायु प्रदूषण की गंभीर समस्या को देखते हुए वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने बजट 2020-21 में वायु प्रदूषण की रोकथाम के लिए 4,400 करोड़ रुपए का बजट आबंटित किया है। यह राशि उन शहरों पर खर्च होगी जहां की आबादी 10 लाख से अधिक है।

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