Edited By Punjab Kesari,Updated: 08 Feb, 2018 04:12 PM
विधानसभा चुनाव के बाद से लगता है कि अकाली-भाजपा में कुछ ठीक नहीं चल रहा।
चंडीगढ़(सोनिया गोस्वामी): विधानसभा चुनाव के बाद मिली हार के बाद अकाली-भाजपा के रिश्तों में दरार पड़ती नजर आने लगी है। चुनाव के बाद दोनों पार्टियों के अलग होने के काफी चर्चे सामने आए लेकिन अकाली दल हमेशा यही कहता रहा कि पार्टी के अलग होने का सवाल ही पैदा नहीं होता। हाल ही में अकाली दल में एकमात्र हिंदू सांसद नरेश गुजराल द्व्रारा कहा गया कि गठबंधन को चलाने के लिए 'वाजपेयी टच' की आवश्यकता होती है। हालांकि, साथ ही पलटते हुए उन्होंने कहा कि पार्टी रिश्तों को बिगाड़ना नहीं चाहती ।
एक अंग्रेजी अखबार के साथ बातचीत दौरान गुजराल ने अपनी पीड़ा व्यक्त करते कहा कि अल्पसंख्यक संस्थानों में नियुक्ति के दौरान उनकी पार्टी से परामर्श नहीं किया गया था। अटल बिहारी वाजपेयी के समय के दौरान गठबंधन कैसे चलाया जा रहा था और अब इसमें क्या फर्क आया है, यह पूछने पर उन्होंने कहा, "एक बड़ा अंतर है।" उन्होंने कहा कि वाजपेयी जी ने प्रत्येक सहयोगी समानता दी, सामाजिक संबंध बनाए रखा। गुजराल ने बताया कि एक-एक वर्ष में दो-तीन बार मिलकर बैठक करते थे और अगर किसी ने बैठक के लिए समय मांगा तो उसे तुरंत मंजूरी मिल जाती थी लेकिन अब ऐसा नहीं है। हालांकि उन्होंने ये भी कहा कि बेशक भाजपा को पूर्ण बहुमत मिला लेकिन राजस्थान में 3 सीटों पर मिला कांग्रेस जीत से लगता है कि पार्टी अपना जनाधार गंवा रही है। बता दे कि इससे पहले भी गुजरात तथा हिमाचल चुनाव दौरान गुजराल में भाजपा की भूमिका पर सवाल उठाए थे। गुजराल ने कहा था कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की जीत है भाजपा की नहीं, मुझे नहीं लगता कि भाजपा को अपने अहंकार के कारण 2019 में बहुमत मिलेगा। गठबंधन को वापस लाने के लिए उन्हें अपने अहंकार को छोड़ते हुए बाजपेयी की नीतियों को अपनाना होगा। गुजराल के ऐसे बयानों से जाहिर होता है कि वह गठबंधन से खुश नहीं ।
उधर,गुजराल के बयान के बाद अकाली दल के प्रधान सुखबीर बादल ने प्रतिक्रिया देते कहा कि अकाली-भाजपा का रिश्ता अटूट है। सुखबीर ने बताया कि गुजराल ने केवल इतना ही बताया है कि जो भी वचन अपने सहयोगी दलों के लिए बनाए गए भाजपा को पूरा किया जाना चाहिए। वह भाजपा और तेलुगू देशम पार्टी के बीच संबंधों के संदर्भ में बात कर रहे थे।