Edited By Punjab Kesari,Updated: 14 Mar, 2018 09:26 AM
करीब सौ सालों में 13 तारीख जलियांवाला बाग के लिए खुशी भी लेकर आई और गम भी। इत्तफाक ही कहे कि इस तारीख ने इस बाग से रिश्ता 13 मार्च 2018 (आज) ने और मजबूत कर दिया है। 13 अप्रैल 1919 को जलियांवाला बाग नरसंहार का बदला तत्कालीन पंजाब के गर्वनर
अमृतसर(स.ह., नवदीप): करीब सौ सालों में 13 तारीख जलियांवाला बाग के लिए खुशी भी लेकर आई और गम भी। इत्तफाक ही कहे कि इस तारीख ने इस बाग से रिश्ता 13 मार्च 2018 (आज) ने और मजबूत कर दिया है। 13 अप्रैल 1919 को जलियांवाला बाग नरसंहार का बदला तत्कालीन पंजाब के गर्वनर माइकल ओ डायर को 13 मार्च 1940 के दिन ही गोली मारने वाले क्रांतिकारी ऊधम सिंह का 11 फुट ऊंची आदमकद प्रतिमा को इसी जलियांवाला बाग में 78 साल बाद जगह दी गई है।
राजनाथ सिंह ने किया शहीदों को नमन
देश के गृहमंत्री राजनाथ सिंह संसद की कार्रवाई के बीच इस मौके पर जलियांवाला बाग में ऊधम सिंह को नमन करने पहुंचे। राजनाथ सिंह ने जहां शहीदों को नमन किया, वहीं उन्होंने दुश्मनों को चेतावनी देते हुए कहा कि स्वाभिमान की जंग में विदेशी ताकतों से हम घबराने वाले नहीं है। खास बात है कि जलियांवाला बाग का बदला लेने वाले ऊधम सिंह का बुत तो बाग के मुख्य गेट पर लगाकर शहीद लिख दिया गया, लेकिन जो अस्थियों का कलश जलियांवाला बाग म्यूजियम में रखा है, उस पर शहीद नहीं लिखा गया हैै। लंदन में दहाडऩे वाला सुनाम का शेर सिंह कब ऊधम सिंह से राम मोहम्मद सिंह आजाद बनकर विदेशी धरती पर शहादत देने वाला पहले भारतीय शहीद तो कहलाया, लेकिन आज तक सरकारों ने उसे शहीद का दर्जा नहीं दिया।
गृहमंत्री ने विजिटर बुक पर लिखा शहीद, सवाल पर साधी चुप्पी
मंच पर देश के गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने कई बार शहीद ऊधम सिंह कहा, लेकिन जब पंजाब केसरी संवाददाता ने उनसे जलियांवाला बाग कार्यालय में जाते समय सवाल पूछा कि ऊधम सिंह को शहीद का दर्जा कागजों में कब मिलेगा तो इस बार वो चुप्पी साधते हुए आगे बढ़ गए। हालांकि तुरंत बाद राजनाथ सिंह ने जलियांवाला बाग विजिटर बुक में लिखा ‘जलियांवाला बाग के सभी शहीदों को मेरी हार्दिक श्रद्धांजलि। जलियांवाला बाग कांड स्वतंत्रता संघर्ष के इतिहास का मेजर टर्निंग प्वाइंट रहा है। आज शहीद ऊधम सिंह की आदमकद प्रतिमा का अनावरण किया है, यह उनके तथा सभी शहीदों के प्रति सम्मान की अभियक्ति है’।
दिल में जख्म हरे, दीवारों के भी नहीं भरे
यह गुरमीत सिंह हैं। जलियांवाला बाग की दीवार और उनके मकान की दीवार सांझी है। बताते हैं कि उनके दादा 13 अप्रैल 1919 का खूनी मंजर अपनी आंखों से देखा था, जिसे उन्होंने पिता भूपिंद्र सिंह को सुनाया था। पिता बताते थे कि जनरल डायर के आदेशों पर चली गोलियां की आवाजों से आस-पास रहने वाले परिवारों को कान सुन्न हो गए। कई-कई रातें वो सो नहीं सके। खूनी कुआं में लाशों को निकालने का सिलसिला काफी
दिनों तक चला।
हे ‘नाथ’! क्या है ‘राज’, कब मिलेगा शहीद का दर्जा
अंतर्राष्ट्रीय सर्व कम्बोज समाज के राष्ट्रीय प्रधान शिंद्रपाल सिंह (बोबी कम्बोज) पंजाब केसरी के साथ खास बातचीत में कहते हैं कि ऊधम सिंह को शहीद का दर्जा मिलना चाहिए। आज हमने गृहमंत्री राजनाथ सिंह को ज्ञापन सौंपा है और उनसे सवाल भी किया है कि देश के लिए कुर्बानी देने वालों को आखिर अभी तक सरकारें क्यों शहीद का दर्जा नहीं दे रही हैं। खर राज क्या है।