Edited By Updated: 03 Apr, 2017 03:21 PM
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चंडीगढ़: किस्मत बदलने का सपना ले पंजाबी विदेश की अोर रुख करने में कोई कसर नहीं छोड़ते। ट्रैवल एजैंटों के जरिए वे इस सफर की शुरुअात तो कर लेते हैं लेकिन मंजिल कहां ले जाएगी वह नहीं जानते।
24 साल का तरसेम सिंह भी इसी उम्मीद पर विदेशी सफर पर निकला कि उनकी किस्मत बदल जाएगी। पंजाब के नवांशहर जिले के बांग गांव में रहने वाले तरसेम के इस सफर ने वाकई ही तरसेम की जिंदगी बदल दी, यह अलग बात है कि ऐसे बदलाव की उन्हें कभी चाहत नहीं रही होगी।
जर्मनी ले जाने का वादा कर ट्रैवल एजैंट उन्हें लीबिया ले गया और फिर माल्टा में उन्हें फैंक दिया। वलेटा में करीब एक महीने तक दर-दर की ठोकरें खाने के बाद अब तरसेम को 6 पंजाबी युवाओं का साथ मिला है। माल्टा के गोजो आइलैंड में एक निर्माणस्थल पर बने अवैध कमरे में इन 6 युवाओं को एक ही बिस्तर पर सोना पड़ता है। तरसेम के पास कोई स्थायी नौकरी नहीं है और वह किसी तरह अपना गुजारा करने के लिए छोटे-मोटे काम करने को मजबूर हैं। अच्छे जीवन का सपना लेकर पंजाब से निकलने वाले तरसेम को जिंदगी ऐसे मौंड़ पर ले आई है कि उन्हें घर छोड़ने का अफसोस होता है।
तरसेम बताते हैं, 'मैं पंजाब के अपने गांव लौटना चाहता हूं, लेकिन मेरे पास पैसे नहीं हैं। वीजा की अवधि खत्म हो चुकी है। मुझे हवाईअड्डे पर जाने से डर लगता है। लगता है कि कोई कभी भी मुझे गिरफ्तार कर सकता है। मैं तो जर्मनी जाने के विमान में बैठा था, लेकिन पता नहीं कैसे लीबिया पहुंच गया। इसके बाद लीबिया के एक एजैंट की मदद से जंगल और भू-मध्यसागर पार करके मैं यहां माल्टा पहुंचा।' वह आगे बताते हैं, 'लीबिया का वह एजेंट भी यहीं माल्टा में रहता है। मुझे इटली भेजने के एवज में उसने 2 लाख रुपए मांगे हैं, लेकिन मेरे पिता ने अपनी एक एकड़ जमीन पहले ही बेच दी थी। दोबारा पैसे कहां से अाते।
तरसेम अकेले नहीं हैं, जिनके साथ यह सब कुछ हुआ हो। पंजाब के कई युवा माल्टा में फंसे हैं। यूरोप के किसी देश में नौकरी के मौके खोजने और अपनी व परिवार की जिंदगी बदलने का सपना देखकर इन्होंने पंजाब के ट्रैवल एजेंट्स को 6 से 10 लाख रुपए दिए थे। इतना पैसा खर्च कर भी उनके हाथ धोखा ही आया।
माल्टा के वरिष्ठ पुलिस इंस्पैक्टर जोस माइकल सोलर जूलियान स्ट्रीट स्टेशन में नियुक्त हैं। यहां ज्यादातर अवैध विदेशी दिहाड़ी मजदूरी का काम करते हैं। सोलर ने बताया, 'यह बहुत बड़ी इंडस्ट्री है। ये लोग गलती से मानव तस्करी करने वालों के चंगुल में फंस जाते हैं और उन्हें यूरोप भेजने के एवज में हजारों यूरो की कीमत चुकाते हैं। उन्हें अच्छी नौकरी दिए जाने का लालच दिया जाता है, लेकिन टूरिस्ट वीजा होने के कारण माल्टा पहुंचकर उन्हें कोई काम नहीं मिलता। उन्हें सड़कों पर सोना पड़ता है और कई गिरफ्तार कर लिए जाते हैं। ये लोग अपने घरों को लौटना चाहते हैं, लेकिन डिटेंशन सेंटर्स में फंसे रह जाते हैं।'
सोलर बताते हैं, 'दिल्ली से वे ट्रिपली पहुंचते हैं। फिर घने जंगल पार करने के बाद वे ट्यूनिस पहुंचते हैं। वहां से जहाज या फिर नाव पर बैठकर वे इटली पहुंच जाते हैं। कई लोग इटली नहीं पहुंत पाते और माल्टा चले आते हैं। इस पूरी यात्रा में दो से तीन महीने तक का समय लगता है। ऐसी यात्राओं ने कई लोगों की जान भी ली है। इन मामलों की कहीं रिपोर्ट भी नहीं होती।' पंजाब के एक गैर-सरकारी संगठन (NGO) हेल्पिंगहेपलेस ने विदेशों में फंसे तरसेम जैसे युवाओं की मदद के लिए आगे आई है। यह NGO अब तक 100 ऐसे युवाओं को वापस लाया है। अब यह संगठन माल्टा में फंसे पंजाबी युवाओं से संपर्क करने की कोशिश में लगा है।