भाजपा के एक और जुमले पर आर.बी.आई. ने फेरा पानी

Edited By Punjab Kesari,Updated: 18 Apr, 2018 09:09 AM

npa crisis loans worth rs 2 72 lakh cr written off since nda government

देश के बैंकों की स्थिति घोटालों और बढ़ते एन.पी.ए. से लगातार खराब हो रही है। मोदी सरकार को इसका नुक्सान हो रहा है। शायद इसीलिए भाजपा को जुमलेबाजी करनी पड़ रही है। सरकार पर यह आरोप लग रहा है कि वह कोई भी ऐसा कदम नहीं उठा रही है

जालंधर(पाहवा): देश के बैंकों की स्थिति घोटालों और बढ़ते एन.पी.ए. से लगातार खराब हो रही है। मोदी सरकार को इसका नुक्सान हो रहा है। शायद इसीलिए भाजपा को जुमलेबाजी करनी पड़ रही है। सरकार पर यह आरोप लग रहा है कि वह कोई भी ऐसा कदम नहीं उठा रही है कि जिससे उद्योगपति बैंकों के लोन चुकाएं। इसी बीच भाजपा की तरफ से खबर आई कि उसके कार्यकाल में बैंकों ने चार लाख करोड़ रुपए वसूल लिए हैं। लेकिन यह भी झूठ निकला। खबर के मुताबिक भाजपा के ट्विटर अकाऊंट से शनिवार को एक ट्वीट किया गया। ट्वीट में कहा गया कि ‘इन्सोल्वैंसी एंड बैंकक्रप्सी कोड’ (आई.बी.सी.) 2016 के तहत 9 लाख करोड़ रुपए के एन.पी.ए. में से बैंकों ने 4 लाख करोड़ रुपए वसूल लिए हैं। 


आई.बी.सी. मोदी सरकार द्वारा बनाया गया कानून है। भाजपा के लोग इस सफलता को लेकर फूले नहीं समा रहे थे तथा इसे अधिक से अधिक लोगों तक पहुंचा कर वाहवाही लेने की कोशिश में लगे थे, लेकिन रिकार्व बैंक ऑफ इंडिया (आर.बी.आई.) के आंकड़ों ने भाजपा के नेताओं की इस जुमलेबाजी को धरा का धरा रख दिया है। कारण है कि आर.बी.आई. के आंकड़े कुछ और ही कहानी कहते हैं। आर.बी.आई. के अनुसार, 2014-15, 2015-16, 2016-17 और 31 दिसम्बर 2017-18 तक सार्वजनिक यानी सरकारी बैंकों ने 2.72 लाख करोड़ के एन.पी.ए. में से 29,343 करोड़ रुपए ही वसूले हैं। बाकी का पैसा यानी 2,42,657 लाख करोड़ रुपए माफ कर दिए गए हैं।


मतलब इस दौरान बैंक लोन का 10.77 प्रतिशत हिस्सा ही वसूल पाए एवं बाकी का 89 प्रतिशत पैसा माफ कर दिया गया है। यह आंकड़ा राज्य वित्त मंत्री शिव प्रताप शुक्ला ने 27 मार्च को राज्यसभा में एक सवाल के जवाब में बताया था। यह खबर सामने आने के बाद भाजपा के ट्विटर हैंडल से वह ट्वीट डिलीट कर दिया गया है। भाजपा ने ओडिशा में भी यह ट्वीट शेयर किया था। 

 

क्या होता है एन.पी.ए.?
जब कर्जदाता बैंक का लोन एक निश्चित समय तक नहीं लौटाते और उसके वापस आने की उम्मीद खत्म हो जाती है उसे नॉन परफार्मिंगएसेट (एन.पी.ए.) कहा जाता है। यह अधिकतर बड़े लोन के मामले में ही होता है क्योंकि छोटे लोन लेने वालों से तो बैंक जैसे-तैसे पैसा निकाल ही लेते हैं। असल में आई.बी.सी. के तहत आने वाले कर्जों के मामले में कर्जधारक को 180 दिन के भीतर मामले को सुलझाने और डैडलाइन को फिर आगे 90 दिन तक बढ़ाने का मौका मिलता है। 

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