Edited By swetha,Updated: 22 Jul, 2018 12:00 PM
लोकसभा में विपक्ष का अविश्वास प्रस्ताव गिरना था, गिर गया लेकिन अनेक प्रश्न खड़े कर के चला गया। सरकार को भी पहले से ही इस बात की जानकारी थी तथा विपक्ष भी जानता था कि अविश्वास प्रस्ताव पास नहीं होगा। इसके बावजूद दोनों ही पक्ष इस प्रस्ताव पर बहस के लिए...
जालंधर(वरिंद्र सिंह): लोकसभा में विपक्ष का अविश्वास प्रस्ताव गिरना था, गिर गया लेकिन अनेक प्रश्न खड़े कर के चला गया। सरकार को भी पहले से ही इस बात की जानकारी थी तथा विपक्ष भी जानता था कि अविश्वास प्रस्ताव पास नहीं होगा। इसके बावजूद दोनों ही पक्ष इस प्रस्ताव पर बहस के लिए इसलिए तैयार थे क्योंकि दोनों ही देश की जनता को दिखाना चाहते थे कि उन्होंने 2019 के लिए किस प्रकार की तैयारी की है।
ताकत दिखाने के लिए खर्च कर दिए गए जनता के लाखों रुपए
यह वह युद्ध था जिसका परिणाम देश की जनता को पहले से ही मालूम था, इसके बावजूद पक्ष तथा विपक्ष ने लोकसभा की इस कार्रवाई पर देश की जनता के लाखों रुपए केवल अपनी ताकत दिखाने में खर्च कर दिए। अधिकांश लोगों ने इसे सरकारी धन की बर्बादी बताया लेकिन राजनीति के जानकार जिन्होंने लोकसभा में अविश्वास प्रस्ताव पर हुई बहस को लाइव देखा, उनका मानना है कि इस कार्रवाई से देश की जनता के सामने कई सच्चाईयां भी आईं तथा कई प्रश्न भी खड़े हुए हैं।
भाषण के अंत में आंख मारकर राहुल ने दिखाई अपरिपक्वता
कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने जिस प्रकार से अपने भाषण से लोगों को प्रभावित किया वह अभूतपूर्व था । पहली बार देश की जनता ने उनको एक अच्छे वक्ता के रूप में देखा। वहीं यह प्रश्न भी खड़ा हुआ कि अपने भाषण के अंत में आंख मारकर उन्होंने अपनी अपरिपक्वता को क्यों उजागर कर दिया? मीडिया से जुड़े लोग मानते हैं कि राहुल गांधी ने राफेल सौदे से जुड़े मामले को लोकसभा में उजागर कर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सहित सारी भाजपा को बैकफुट पर धकेला, लोगों के सामने इस बात को उजागर करके सनसनी पैदा कर दी कि जो जहाज मनमोहन सरकार के समय में 522 करोड़ में खरीदा जा रहा था। उसे ही मोदी सरकार 1600 करोड़ में खरीदने जा रही है तथा एक ऐसी कम्पनी को उस सौदे के साथ जोड़ा गया है जिसे जहाज बनाने का कोई अनुभव ही नहीं है।
खुद मुंह मिया मिट्ठू बने राहुल
राहुल गांधी ने प्रधानमंत्री को गले लगाकर सादगी तथा बड़ेपन का सबूत अवश्य दिया लेकिन प्रश्न यह पूछा जा रहा है कि अपने मुंह मियां मिट्ठू बनने की क्या आवश्यकता थी? उन्होंने स्वयं ही अपनी सादगी की चर्चा करके तथा अपने भाषण की प्रशंसा करके एक बार फिर से अपनी परिपक्वता पर प्रश्नचिन्ह लगा दिया।बुद्धिजीवी मानते हैं कि राहुल गांधी को लोकसभा में यह नहीं कहना चाहिए था कि लोग मेरे भाषण की तारीफ कर रहे हैं। इसकी बजाय अगर वह खामोश रहते तथा मीडिया अथवा जनता को तारीफ करने देते तो उनका कद बढ़ता लेकिन उन्होंने खुद अपना कद छोटा कर लिया तथा श्री मोदी को उन्हें अहंकारी कहने का अवसर भी दे दिया।
भाषण कला से मोदी ने किया प्रभावित,पर नहीं दे पाए राफेल समझौते का उत्तर
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एक स्थापित कुशल वक्ता हैं । एक बार फिर से उन्होंने अपनी भाषण कला से राष्ट्र को प्रभावित किया जरूर लेकिन वह बात का उत्तर नहीं दे पाए कि राफेल सौदे में जहाज की कीमत 522 करोड़ से बढ़कर 1600 करोड़ हुई कि नहीं? इससे यह प्रश्न तो देश की जनता के सामने खड़ा हो ही गया है कि क्या राफेल में कुछ गड़बड़ घोटाला है? विपक्ष प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के अहंकार को लेकर अक्सर प्रश्न खड़े करता रहता है। श्री मोदी ने राहुल गांधी के अभिवादन को स्वीकार करने के लिए अपनी सीट से न उठकर एक बार फिर से यह प्रश्न खड़ा कर दिया है कि क्या वह इतने अहंकारी हैं कि सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी के अध्यक्ष से हाथ मिलाने या गले मिलने के लिए भी खड़े नहीं हो सकते?
विपक्ष में रही एकजुटता की कमी
श्री मोदी का अपने भाषण में यह कहना कि राहुल गांधी उन्हें प्रधानमंत्री की कुर्सी से हटाने के लिए आए थे, इस प्रश्न को भी जन्म दे कर गया है कि क्या श्री मोदी राहुल के हमलों से हताश हो गए थे, क्योंकि देश ने लाइव देखा कि राहुल गांधी उन्हें केवल गले मिलने के लिए खड़े होने का आग्रह कर रहे थे। इन सब प्रश्नों से भी महत्वपूर्ण यह है कि शिवसेना क्यों भाजपा के साथ खड़ी नहीं हुई तथा विपक्ष भी पूरी तरह से एकजुटता क्यों नहीं दिखा पाया? इन सब प्रश्नों की पृष्ठभूमि में यह अवश्य ही माना जा रहा है कि 2019 भाजपा तथा विपक्ष के लिए उतना आसान नहीं होगा जितना वे समझ रहे हैं।