Edited By Punjab Kesari,Updated: 23 Nov, 2017 08:58 AM
भाजपा युवा मोर्चा के कथित कार्यकर्ताओं द्वारा जलाए गए अखबार समेत इम्फाल से प्रकाशित होने वाले प्रमुख समाचार पत्रों ने विरोध में अपने अखबारों के संपादकीय खाली रखे। स्थानीय समाचारपत्र पोकनाफाम की प्रतियों को शनिवार को नित्यापट चुथेक में भाजपा दफ्तर के...
जालंधर (पाहवा): भाजपा युवा मोर्चा के कथित कार्यकर्ताओं द्वारा जलाए गए अखबार समेत इम्फाल से प्रकाशित होने वाले प्रमुख समाचार पत्रों ने विरोध में अपने अखबारों के संपादकीय खाली रखे। स्थानीय समाचारपत्र पोकनाफाम की प्रतियों को शनिवार को नित्यापट चुथेक में भाजपा दफ्तर के बाहर कुछ अज्ञात शरारती तत्वों ने आग लगा दी थी। आग लगाने वालों का आरोप था कि अखबार में कथित तौर पर प्रधानमंत्री की उपेक्षा वाली सामग्री दी जा रही थी। इनका आरोप था कि इस लेख ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को अपमानित और मणिपुर के मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह की छवि को खराब किया है।
यह लेख केंद्र और उग्रवादी संगठन नैशनल सोशलिस्ट कौंसिल ऑफ नागालैंड के बीच चल रही शांति वार्ता पर राजनीतिक व्यंग्य था। उधर भाजपा कार्यकत्र्ता कह रहे हैं कि मीडिया वह सब कुछ नहीं लिख सकता जो वह लिखना चाहता है। कुछ नैतिकता भी होनी चाहिए। प्रधानमंत्री को मवेशी चोर कहना बहुत गंभीर मसला है जिसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।
उन्हें सबक सिखाने के लिए प्रतियां जलाई गई हैं। भाजपा युवा मोर्चा द्वारा इम्फाल स्थित अखबार की प्रतियां जलाए जाने के विरोध का यह अलग तरीका था जिसके तहत संपादकीय की जगह को खाली छोड़ा गया है। ऑल मणिपुर वर्किंग जर्नलिस्ट्स यूनियन के अध्यक्ष डब्ल्यू श्यामजई ने घटना की ङ्क्षनदा करते हुए कहा कि अखबार को जलाया जाना भीड़ संस्कृति को बढ़ावा देने जैसा है।
उन्होंने कहा कि संबंधित पक्ष अगर ऑल मणिपुर वर्किंग जर्नलिस्ट्स यूनियन के स्तर पर मामले को सुलझाने में विफल रहते हैं तो वह अदालत में जा सकते हैं। इससे पहले राजस्थान के प्रमुख ङ्क्षहदी दैनिक राजस्थान पत्रिका ने वसुंधरा सरकार की नीतियों के प्रति अपना विरोध दिखाते हुए राष्ट्रीय प्रैस दिवस (16 नवम्बर) के मौके पर अपना सम्पादकीय कालम खाली छोड़ दिया था। सम्पादकीय कालम को मोटे काले बॉर्डर से घेरते हुए अखबार ने लिखा था कि आज राष्ट्रीय प्रैस दिवस यानी स्वतंत्र और उत्तरदायित्वपूर्ण पत्रकारिता का दिन है लेकिन राजस्थान में राज्य सरकार द्वारा बनाए काले कानून से यह खतरे में है। संपादकीय खाली छोड़कर लोकतंत्र के हत्यारे ‘काले कानून’ का पूर्ण मनोयोग से विरोध करते हैं।
गौरतलब है कि राजस्थान सरकार ने 2 विधेयक पेश किए थे, जिनको लेकर काफी विवाद और विरोध के बाद इसे विधानसभा की प्रवर समिति के पास भेज दिया गया, लेकिन वापस नहीं लिया गया है। ये विधेयक राज दंड विधियां संशोधन विधेयक, 2017 और सी.आर.पी.सी. की दंड प्रक्रिया संहिता, 2017 थे। राजस्थान पत्रिका इसे काला कानून कह कर इसका लगातार विरोध कर रहा है।