Edited By Punjab Kesari,Updated: 01 Jan, 2018 09:39 AM
हरियाणा के गुरुग्राम स्थित फोर्टिस अस्पताल के ब्लड बैंक और फार्मेसी में मिली 32 खामियों के बाद स्वास्थ्य विभाग की ओर से भले ही ब्लड बैंक और फार्मेसी का लाइसैंस सस्पैंड कर दिया गया हो,
जालंधर (नरेन्द्र वत्स): हरियाणा के गुरुग्राम स्थित फोर्टिस अस्पताल के ब्लड बैंक और फार्मेसी में मिली 32 खामियों के बाद स्वास्थ्य विभाग की ओर से भले ही ब्लड बैंक और फार्मेसी का लाइसैंस सस्पैंड कर दिया गया हो, लेकिन इससे यह बात साफ हो चुकी है कि मल्टीस्पैशलिटी के नाम पर बड़े अस्पतालों में किस तरह मरीजों के साथ लूट-खसूट की जाती है।
इस अस्पताल में 16 लाख रुपए की मोटी रकम चुकाने के बावजूद डॉक्टर 7 साल की मासूम आद्या की जान नहीं बचा सके। जब आद्या के पिता ने खामोशी तोड़कर अस्पताल प्रबंधन के खिलाफ लड़ाई लडऩे का निर्णय लिया, तो सरकार भी आंखें खोलने के लिए मजबूर हो गई। दरअसल, ये हालात सिर्फ एक मल्टीस्पैशलिटी अस्पताल के नहीं हैं। चकाचौंध से परिपूर्ण अधिकांश अस्पतालों में मरीजों की जेब पर जमकर डाका डाला जाता है।
गुरुग्राम के इस अस्पताल में मासूम आद्या की मौत के बाद जब उसके पिता ने इंसाफ की लड़ाई लडऩे का निर्णय लिया, तो पूरा सरकारी तंत्र हिल गया। अस्पताल की फार्मेसी जहां किसी और के नाम से चल रही थी, तो वहीं ब्लड बैंक में भारी अनियमितताएं पाई गईं। यह बात भी सामने आई कि फार्मेसी में दवाओं के दाम अधिक वसूले जाते हैं। विभाग की ओर से फार्मेसी का लाइसैंस सस्पैंड कर दिया गया। 23 नवम्बर को हुई जांच के बाद विभाग की ओर से अस्पताल प्रबंधन को नोटिस जारी किया गया।
महत्वपूर्ण बात यह है कि दो सप्ताह बाद जब विभाग की ओर से ब्लड बैंक की दोबारा जांच की गई तो वे सभी खामियां ज्यों की त्यों बरकरार थीं। इसका सीधा-सा मतलब यही है कि इलाज के नाम पर मरीजों से मोटा पैसा वसूलने वाले ऐसे अस्पतालों के संचालकों को कानून का कोई भय नहीं है। नतीजा यह हुआ कि विभाग ने ब्लड बैंक का लाइसैंस भी सस्पैंड कर दिया। यह सब सरकार के सख्त रुख के चलते हुआ है।
प्राइवेट अस्पतालों में थोड़े से गंभीर मरीज को भी जाते ही इंटैंसिव केयर यूनिट में दाखिल कर लिया जाता है। कई अस्पतालों में तो मरीज के परिजनों को आई.सी.यू. में जाने की इजाजत नहीं दी जाती। अंदर उसका कैसा उपचार चल रहा है और कौन-सी दवाओं का इस्तेमाल किया जा रहा है, इसका भी मरीज के परिजनों को कोई पता नहीं चलता। अगर मरीज की मौत हो जाती है, तो डैड बॉडी को ही गायब कर दिया जाता है। इलाज के नाम पर मोटा पैसा वसूलने के बाद ही डैड बॉडी को सौंपा जाता है।
मरीज ले सकते हैं हैल्पलाइन का सहारा
मरीजों के साथ लूट-खसूट करने वाले अस्पतालों व डॉक्टरों के खिलाफ कार्रवाई करने के लिए केंद्र सरकार की ओर से भी कदम उठाए जा रहे हैं। मरीज ऐसी स्थिति में नैशनल काऊंसिल ऑफ मैडीकल नैगलिजैंसी के टोल फ्री नंबर 1800-11-4000 पर संपर्क कर सकते हैं।
अन्य राज्यों में भी हालात ऐसे ही
मरीजों के साथ लूट-खसूट का यह अकेला मामला नहीं है। प्राइवेट अस्पताल अन्य राज्यों में भी मरीजों से मनमाना पैसा वसूल करते हैं। मोटी रकम वसूल करने के बाद भी मरीज के ठीक होने की कोई गारंटी नहीं होती। दिल्ली के मैक्स हैल्थकेयर अस्पताल ने इसका उदाहरण पहले ही दे दिया था। सरकार को उसका लाइसैंस रद्द करना पड़ा। दिल्ली के ही श्री जीवन अस्पताल पर देहली स्टेट कंज्यूमर रीडरैसल कमीशन की ओर से 30 लाख रुपए जुर्माना किया जा चुका है।
मंगवाते हैं जरूरत से ज्यादा सामान
कई मामलों में यह बात सामने आई है कि मरीज का ऑप्रेशन करते समय डॉक्टर परिजनों से जरूरत से ज्यादा सामान व दवाएं मंगवाते हैं। परिजनों को ऑप्रेशन के बाद यह पता नहीं चलता कि कितना सामान और दवाएं ऑप्रेशन में यूज हुए हैं। आशंका यही रहती है कि सामान और दवाओं का एक हिस्सा बैकडोर से उसी मैडीकल स्टोर पर चला जाता है, जिससे परिजन इसे खरीदते हैं। बाद में इसकी रकम संबंधित डॉक्टर की जेब में चली जाती है।
अवैध तरीके से बेचा फ्रैश फ्रोजन प्लाजमा
जांच में यह बात भी सामने आई है कि फोर्टिस अस्पताल के ब्लड बैंक के पास फ्रैश फ्रोजन प्लाजमा कमॢशयल रूप से बेचने का एन.ओ.सी. तक नहीं था। यह एन.ओ.सी. हरियाणा स्टेट ब्लड ट्रांसफ्यूजन कौंसिल व खाद्य एवं औषधी प्रशासन विभाग की ओर से लेना होता है। बैंक की ओर से दो कंपनियों को फ्रैश फ्रोजन प्लाजमा बेचा गया।
पांच गुणा ज्यादा वसूले प्लेटलैट्स के दाम
स्वास्थ्य विभाग की ओर से 7 दिसम्बर को की गई जांच में यह बात सामने आई कि अस्पताल प्रबंधन की ओर से आभा को डेंगू के उपचार के लिए 25 यूनिट रैंडम डोनर प्लेटलैट्स चढ़ाई गई थीं। 17 यूनिट प्लेटलैट्स निर्धारित 400 रुपए के हिसाब से दी गईं जबकि 8 यूनिट के दाम पांच गुणा ज्यादा, यानी 2000 रुपए प्रति प्लेटलैट्स के हिसाब से वसूले गए। दवाओं के दाम भी अधिक वसूलने के कारण ड्रग लाइसैंस सस्पैंड कर दिया गया।
नहीं सुधर रहे सरकारी अस्पतालों के हालात
सरकारी अस्पतालों में आज तक आम मरीजों को बेहतर उपचार की सुविधा उपलब्ध नहीं हो पाई है। अधिकांश सरकारी अस्पताल आज भी आधुनिक चिकित्सा उपकरणों और विशेषज्ञ चिकित्सकों के मोहताज बने हुए हैं। बड़ी संख्या में सरकारी अस्पताल ऐसे हैं, जो सिर्फ प्राथमिक उपचार के बाद रैफरल अस्पताल की भूमिका में आ जाते हैं। यही कारण है कि आम लोगों की नजर में सरकारी अस्पतालों के प्रति विश्वास नहीं बन पाया है।