Edited By Punjab Kesari,Updated: 22 Nov, 2017 09:17 AM
नोटबंदी के एक साल बाद भी मोदी सरकार के इस फैसले पर बहस जारी है। नोबेल पुरस्कार विजेता अर्थशास्त्री रिचर्ड थेलर ने इसे लागू करने में सरकार के तरीके को खामियों से भरा बताया है।
जालंधर (पाहवा): नोटबंदी के एक साल बाद भी मोदी सरकार के इस फैसले पर बहस जारी है। नोबेल पुरस्कार विजेता अर्थशास्त्री रिचर्ड थेलर ने इसे लागू करने में सरकार के तरीके को खामियों से भरा बताया है। उनके मुताबिक नोटबंदी एक अच्छा विचार है, लेकिन जिस तरीके से सरकार इसे अमल में लाई उसमें कई खामियां थीं। रिचर्ड थेलर के मुताबिक 2000 रुपए का नोट लाने से इस पूरी कवायद का मकसद ही अस्पष्ट हो जाता है। हालांकि सरकार इस तरह की बातों को सिरे से खारिज करती रही है।
देश के कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने नोटबंदी की वर्षगांठ पर एक दावा किया था कि नोटबंदी के बाद महिलाओं और लड़कियों की तस्करी के मामलों में भारी कमी आई है। इसके लिए बड़े पैमाने पर नकदी नेपाल और बंगलादेश चली जाती थी जो बंद हुई है। कानून मंत्री का यह दावा छोटा नहीं है। मानव तस्करी भारत की गंभीर समस्याओं में से एक है। इसके जरिए न केवल लड़कियों को देह व्यापार में धकेला जाता है बल्कि बाल मजदूरी और भीख मंगवाने के लिए भी बच्चों की खरीद-फरोख्त की जाती है।
इन सभी कामों में पैसे का लेन-देन होता है। अगर रविशंकर प्रसाद के बयान पर यकीन करें तो नोटबंदी के चलते केवल देह व्यापार ही कम नहीं हुआ होगा बल्कि मानव तस्करी के दूसरों कारणों पर भी इसका ‘भारी’ प्रभाव पड़ा होगा और उन सब में भी कमी आई होगी। अब अगर आंकड़ों तथा रिपोर्ट पर भरोसा किया जाए तो कानून मंत्री रवि शंकर प्रसाद का यह दावा खोखला है। भारत में मानव तस्करी को लेकर अमरीका के यू.एस. डिपार्टमैंट ऑफ स्टेट (विदेश मंत्रालय) की एक रिपोर्ट इसकी पुष्टि करती है। जनवरी 2017 से जून 2017 के लिए तैयार की गई यह रिपोर्ट बताती है कि नोटबंदी का मानव तस्करी पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा है। इसमें वहीं निरंतरता बनी हुई है जो दिसम्बर 2016 तक थी।
एक दूसरी रिपोर्ट के मुताबिक भारत में कुल 2 करोड़ सैक्स वर्कर हैं। इनमें से 1.60 करोड़ महिलाएं और लड़कियां ऐसी हैं, जिन्हें मानव तस्करी के तहत इस काम में डाला गया है। अगर नोटबंदी से इस धंधे में भारी कमी आई है तो यह सवाल भी उठता है कि सरकार ने अपनी उपलब्धियों में इसे कैसे शामिल नहीं किया। यह कोई संवेदनशील खुफिया जानकारी तो होती नहीं बल्कि यह तो एक ऐसी उपलब्धि है जिसे कोई भी सरकार जोर-शोर से प्रचारित करेगी। यह आंकड़ा सरकार की तरफ से नोटबंदी पर जारी विज्ञापन में मौजूद नहीं थे।