Edited By Updated: 12 May, 2017 05:01 PM
विधानसभा चुनाव के बाद हीरो से जीरो बने शिरोमणि अकाली दल (बादल) के राष्ट्रीय अध्यक्ष सुखबीर सिंह बादल ने कुछ विश्वसनीय निकट साथियों के साथ बातचीत करते हुए स्वीकार किया है कि शिरोमणि अकाली दल, जो किसी समय हर्ष पर था आज फर्श पर आ गया है।
विधानसभा चुनाव के बाद हीरो से जीरो बने शिरोमणि अकाली दल (बादल) के राष्ट्रीय अध्यक्ष सुखबीर सिंह बादल ने कुछ विश्वसनीय निकट साथियों के साथ बातचीत करते हुए स्वीकार किया है कि शिरोमणि अकाली दल, जो किसी समय हर्ष पर था आज फर्श पर आ गया है। अर्थात उसका ग्राफ हीरो से गिर जीरो पर पहुंच गया है। यदि यह सच है तो इस आत्म स्वीकृति को बादल अकाली दल के लिए शुभ संकेत माना जा सकता है, चूंकि किसी राजनीतिक पार्टी के नेतृत्व की ओर से अपनी ही पार्टी के गिरते जा रहे ग्राफ को स्वीकार कर लेना, इस बात का संकेत माना जाता है कि पार्टी नेतृत्व पार्टी की लोकप्रियता में आ रही कमी को लेकर ङ्क्षचतित है और पार्टी को नवजीवन दे, उसे फिर से उधारने के लिए सार्थक प्रयत्न करने के लिए सक्रिय होने का इच्छुक है। यदि ऐसा होता है तो इसमें कोई शक नहीं रह जाता है कि शिरोमणि अकाली दल जो पटरी से उतरता दिखाई दे रहा है, फिर से पटरी पर अपना पुराना गौरव हासिल करने में सफल न हो सके। उसके फिर से पटरी पर आ सकने का एक कारण यह भी है कि इस समय पंजाब में कोई ऐसा अकाली दल नहीं है, जिसे सिख उसके बदल के रूप में स्वीकार कर सके। इस सब कुछ के बावजूद एक यह सवाल भी उभर कर सामने आ जाता है कि क्या पार्टी का नेतृत्व इस हीरो से जीरो की स्थिति को स्वीकार करते हुए इस बात पर गंभीरता से विचार चर्चा करने के लिए तैयार होगा कि उससे कहां और कैसे ऐसी भूल हुई। जिसके चलते पार्टी हीरो से जीरो तक आ पहुंची है।
इधर शिरोमणि अकाली दल के कुछ टकसाली मुखियों से की गई बात से ऐसा लगता है कि जैसे वे मानते हैं कि दल में आए इस ढलाव की प्रक्रिया, उस समय आरंभ हुई जब शिरोमणि अकाली दल के नेतृत्व ने वर्षों पहले (उस समय के हिसाब से) निकट भविष्य में होने वाले विधानसभा चुनाव में अकाली दल की जीत को निश्चित करने के लिए गंभीर चिन्तन कर रणनीति बनाने और दल की कार्यप्रणाली को सार्थकता प्रदान करने के लिए शिमला के दल के वरिष्ठ मुखियों की एक तीन दिवसीय चिन्तन बैठक का आयोजन किया गया। उस बैठक का आयोजन करते हुए शिरोमणि अकाली दल की श्री गुरु ग्रंथ साहिब की हजूरी में अरदास कर बैठक किए जाने की परम्परा की पूरी तरह अवहेलना कर दी गई। इस बैठक में अकाली दल के स्थापित परम्परा की अवहेलना किए जाने के संबंध में किया गया तो दल के मुखियों की ओर से बताया गया कि उन्होंने अपने दल शिरोमणि अकाली (बादल) को धर्म निरपेक्ष स्वरूप दे, राष्ट्रीय राजनीतिक पार्टी के रूप में स्थापित करने का फैसला किया है। जिसके आधार पर उसे गुरुद्वारों से बाहर निकालने की ओर कदम बढ़ाया गया है। यही कारण है कि इस संबंध में पहले करते हुए शिरोमणि अकाली दल की बैठकें गुरुद्वारे से बाहर, बिना श्री गुरु ग्रंथ साहिब का प्रकाश और अरदास किए की गई है।
उस समय अकाली मुखियों की ओर से यह भी बताया गया कि इस चिन्तन बैठक में जहां अकाली दल की स्थापित परम्परा के विरुद्ध श्री गुरु ग्रंथ साहिब का प्रकाश और अरदास करने की आवश्यकता नहीं समझी गई, वहीं इसमें पंथक मुद्दों के संबंध में भी किसी प्रकार का विचार करना जरूरी नहीं समझा गया। उनका यह जवाब जो उनकी नई बदली हुई सोच पर आधारित था, इस बात का संकेत था कि शिरोमणि अकाली दल (बादल) के मुखियों ने यह बात मान ली है कि अब उन्हें राजसत्ता की प्राप्ति के लिए न तो ‘गुरु’ की और न ही उसके ‘पंथ’ की आवश्यकता रह गई है। अब ‘गुरु’ और ‘पंथ’ के बिना भी राजसत्ता पर काबिज हो सकते हैं।
जानकार सूत्रों के अनुसार बादल अकाली दल के नेतृत्व की गुरुद्वारों से बाहर रहने की यह सोच अधिक समय तक बनी न रह सकी। इसका खुलासा उसी समय हो गया जब इस चिन्तन बैठक के कुछ समय बाद ही लौंगोवाल में संत हरचंद सिंह लौंगोवाल की बरसी मनाए जाने के संबंध में हुए एक समारोह में शिरोमणि अकाली दल (बादल) को संरक्षक प्रकाश सिंह बादल ने दावा किया कि उनके लिए शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के चुनाव जितने महत्वपूर्ण हैं, उतने पंजाब विधानसभा और लोकसभा के चुनाव नहीं है, जो इस बात का संकेत था कि अकाली दल के जिस नेतृत्व ने कुछ ही समय पूर्व दल को राष्ट्रीय पार्टी के रूप से स्थापित करने के लिए उसे गुरुद्वारों से बाहर निकालने का दावा किया था, उसी ने कुछ ही समय बाद मान लिया था कि मैं गुरुद्वारों की सत्ता की लालसा का त्याग किसी भी कीमत पर नहीं कर सकता।
उधर बताया गया कि राष्ट्रीय पार्टी घोषित होने के कुछ ही समय बाद जब दिल्ली में अपने राष्ट्रीय अस्तित्व का अहसास करवान ेके लिए पश्चिमी दिल्ली, जो सिख बहुल क्षेत्र और गैर सिख पंजाबियों का गढ़ माना जाता है, में एक कांफ्रैंस आयोजित की गई। इस कांफ्रैंस की हाजिरी का यह आलम था कि उसकी आगे की सीटें तक भी पूरी तरह भर नहीं पाई थीं। इस प्रकार शिरोमणि अकाली दल (बादल) न पंथक पार्टी रह सका, न ही राष्ट्रीय पार्टी के रूप में मान्यता पा सका। अब बताया जाता है कि बादल अकाली दल का नेतृत्व फिर से पंथक एजैंडे की ओर मुडऩे के लिए हाथ-पांव मारने लगा है, लगता नहीं कि उसके लिए इतना बड़ा मोड़ काट पाना सहज होगा। उसके सामने एक नहीं कई सवाल हैं, जिनसे पार पाना उसके लिए आसान नहीं होगा। न तो उसके पास पंजाब में मंजीत सिंह जी.के. जैसा चेहरा है और दिल्ली की तरह पंजाब में उसके समर्थन में लोगों को खींच सके और न ही उसके लिए परिवारवाद के जाल से निकल पाने की सामथ्र्य ही रह गई है। (जसवंत सिंह)