Edited By Updated: 22 May, 2017 01:08 PM
पंजाब स्कूल शिक्षा बोर्ड की 10वीं कक्षा के नतीजे अाज अा चुके हैं। इन नतीजों को सुन जहां अवल अाने वाले छात्रों में खुशी की लहर है वहीं 57.50 फीसदी नतीजे अाने से शिक्षा विभाग पर सवाल खड़े हो गए हैं।
जालंधर(सोनिया गोस्वामी): पंजाब स्कूल शिक्षा बोर्ड की 10वीं कक्षा के नतीजे अाज अा चुके हैं। इन नतीजों को सुन जहां अवल अाने वाले छात्रों में खुशी की लहर है वहीं 57.50 फीसदी नतीजे अाने से शिक्षा विभाग पर सवाल खड़े हो गए हैं। इतनी कम प्रतिशत अाने के पीछे किसकी जिम्मेदारी है। 25 से 50 हजार तक का वेतन पाने वाले ये अध्यापक अाखिर क्यों बच्चों के भविष्य की अौर ध्यान नहीं देते।
सरकारी स्कूलों की दुर्दशा अाज एेसी मानी जाती है जैसे बच्चे वहां सिर्फ मिड-डे मील ही खाने जाते हों। स्कूल में बच्चों के पहुंचते ही वहां बच्चों को खाना खिलाने की चिंता शुरु हो जाती है। बच्चों को टाईम पर खाना खिलाना ही राष्ट्र निर्माण का हिस्सा नहीं।
सवाल उठाने पर भड़कते है सरकारी टीचर,असलीयत यही
जब स्कूल अध्यापकों पर पढ़ाई को लेकर सवाल उठाए जाते हैं तो उनके गुस्से की हद नहीं रहती लेकिन अगर वे इतने ही सक्षम है तो क्यों अपने बच्चों को सरकारी स्कूलों में पढ़ने के लिए नहीं भेजते। क्यों वे अपने बच्चों से ये नहीं सीखते कि उनके स्कूल का सिस्टम वे अपनी कक्षा में लागू करें। माना कि सरकारी स्कूलों में सुविधाअों की कमी है लेकिन वहां पढ़ाने वाले अध्यापकों को वेतन तो पूरा ही मिलता है फिर वे क्यों सिस्टम की दुहाई देते हैं।
सरकारी अौर प्राइवेट स्कूलों में फर्क
सरकारी स्कूलों में पढ़ाने वाले अध्यापकों अनुसार सिस्टम की कमी कारण रिजल्ट अच्छे नहीं अाते लेकिन प्राइवेट स्कूलों में एेसा कौन सा सिस्टम है जिस अनसुार उनके रिजल्ट अच्छे अाते हैं। सरकारी अध्यापक तो पूरा दिन कुर्सियों पर बैठ कर पढ़ाते हैं लेकिन प्राइवेट वालों को तो कलास में बैठ कर पढ़ाने तक की अनुमति नहीं। यही नहीं 3-10 हजार तक का वेतन पाने वाले टीचर बच्चों की शिक्षा को लेकर ज्यादा चिंतित रहते हैं। फिर सरकारी वालों को उनकी चिंता क्यों नहीं। अगर उन बच्चों के पास ट्यूशन रखने तक के पैसे हो तो उनके परिजन उन्हें सरकारी स्कूल में पढ़ाने की बजाए किसी छोटे प्राइवेट स्कूल में पढ़ाना अच्छा समझेगे।
सरकार करें समाधान
सरकार को चाहिए स्कूलों में होने वाले यूनिट टैस्टों पर नजर रखें। जिन बच्चों के अंक इन टैस्टों में कम अा रहे हैं उन्हों अलग से मेहनत करवाई जाए। अकाली सरकार में शिक्षा मंत्री रहे दलजीत सिंह चीमा ने अध्यापकों की ट्रेनिंग लगाई थी उसका कोई असर देखने को नहीं मिला। सरकारी स्कूलों के बच्चे नहीं सिर्फ टीचर जिम्मेदार है। उन्हें चाहिए जो बच्चा पढ़ाई में पीछे है उनके परिजनों को बताएं ताकि वे उसके लिए अौर मेहनत कर सकें।
सरकारी स्कूलों में क्यों नहीं होती PTM
क्या परिजनों का कलास अध्यापक से मिलना सिर्फ प्राइवेट स्कूलों में जरुरी है। सरकारी स्कूलों में भी हर सप्ताह पी.टी.एम.होनी चाहिए ताकि बच्चों की कमियों प्रति मां-बाप से बात की जा सके।
गरीब बच्चों की पढ़ाई को लिए बढ़ाए हाथ
माना कि अाज की बिजी लाईफ में हमारे पास किसी के लिए समय नहीं लेकिन संसार में बहुत से एेसे लोग पढ़े लिखे हैं जो बच्चों की पढ़ाई को लेकर अागे भी अाना चाहते हैं। उन्हें चाहिए हर रोज अपना कम से कम एक घंटा सरकारी स्कूल में पढ़ने वाले बच्चों को पढ़ाकर दें। अगर अाप लोग हर रोज समय नहीं निकाल पा रहे तो एक यूनिट तैयार करें जिसमें 15-20 लोग हफ्ते में 1-2 दिन बच्चों के दे सके।