पढ़ाई की उम्र में भूख मिटाने के लिए सड़कों पर भटक रहा देश का भविष्य

Edited By Vaneet,Updated: 15 Nov, 2018 03:57 PM

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4 नवम्बर को हर वर्ष देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू के जन्म दिवस को बाल दिवस के रूप के तौर पर देश के कोने-कोने में मनाया जाता है तथा इस दिन होने वाले समागमों दौरान देश भर के  मंचों से हर वर्ष राजनीतिज्ञ

मोगा(गोपी राऊके): 14 नवम्बर को हर वर्ष देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू के जन्म दिवस को बाल दिवस के रूप के तौर पर देश के कोने-कोने में मनाया जाता है तथा इस दिन होने वाले समागमों दौरान देश भर के  मंचों से हर वर्ष राजनीतिज्ञ बच्चों के लिए पढ़ाई यकीनी बनाने के अलावा उनको बनते अधिकार दिलाने की भरपूर वकालत करते हैं लेकिन समागम खत्म होने उपरांत यह वायदे सिर्फ झूठे आश्वासन ही बनकर रह जाते हैं। ताजा मामला मोगा के कोटकपूरा चौक नजदीक सड़क के किनारे अपने पेट की अग्नि शांत करने के लिए देश का भविष्य कहलाने वाले झाड़ू बनाकर बेचने वाले नन्हे बच्चों का है, जिनकी जिंदगी में आज बाल दिवस का दिन कोई मायने ही नहीं रखता बल्कि ये 4, 6 तथा 8 वर्षीय बच्चे अपने माता-पिता के साथ रोजाना की तरह झाड़ू बनाने में व्यस्त थे।

पेट की खातिर बेघर होने को मजबूर परिवार

राजस्थान के उदयपुर जिले से संबंधित झाड़ू बना रहे बच्चों के पिता अर्जुन कुमार का कहना था कि वह पीढ़ी-दर-पीढ़ी खजूर के पत्तों के झाड़ू बनाकर अपनी जिंदगी का पहिया चलाते हैं। अर्जुन बताता है कि उसको तथा उसके परिवार को यह भी नहीं पता कि स्कूल में पढ़ाई किस अक्षर से शुरू होती है। उन्होंने बताया कि वह मोगा में 4 परिवारों के कुल 17 मैंबर आए हैं तथा इस शहर में जितना समय काम चलेगा वह झाड़ू बनाकर बेचते रहेंगे। जब यहां काम कम हो जाएगा तो वे यहां से किसी और शहर के लिए कूच कर जाएंगे।

दयनीय आर्थिकता के कारण सपने पूरे करने में असमर्थ : अर्जुन कुमार
गरीबी की मार झेल रहे अर्जुन को जब बच्चों को पढ़ाई करवाने के लिए स्कूल भेजने संबंधी सवाल किया गया तो उसने कहा कि अब जब उसका लड़का 3 साल का हो गया है तो मन में यह बड़ी चाहत है कि उसको स्कूल में पढ़ाई करवाकर किसी और रोजगार के लिए पैरों पर खड़ा किया जाए लेकिन परिवार की दयनीय आॢथक हालत के कारण कोई पक्का पुनर्वास ही नहीं है। इस कारण वह चाहते हुए भी अपने बच्चे को पीढ़ी-दर-पीढ़ी चले आ रहे चल-फिरकर जिंदगी के दिन काटने वाले चक्कर से किसी भी तरह निकलने में असमर्थ है। उसने कहा कि समय की सरकारें यदि बच्चों को सही अर्थों में शिक्षित कर देश का भविष्य संवारने के लिए वचनबद्ध हैं तो हमें पक्का रोजगार देकर 2 वक्त की रोजी-रोटी का प्रबंध करके दें ताकि हमारे बच्चों की वर्षों पुरानी चली आ रही अशिक्षित रहने की त्रासदी समाप्त हो सके।

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बाल मजदूरी को रोकने के सरकारी दावे कागजों तक ही सीमित
सरकार की ओर से समय-समय पर बाल मजदूरी को रोकने के लिए किए जाते दावे कागजों तक ही सीमित होकर रह गए हैं। सरकार की ओर से बेशक हर साल बाल दिवस मनाया जाता है और बाल मजदूरी रोकने के लिए कार्रवाई अमल में लाई जाती है लेकिन वह कार्रवाई सप्ताह उपरांत फिर पानी के बुलबुले की तरह गायब हो जाती है। शहर के बुद्धिजीवी पिं्रस अरोड़ा, सर्बजीत सिंह, जोगिन्द्र सिंह, अतुल कुमार ने कहा कि सरकार बाल मजदूरी को रोकने के लिए अपने बनाए गए नियमों को संबंधित विभाग में निर्देश देकर सख्ती से लागू करवाए। सरकार स्पैशल टीमों का गठन कर शहरों व आसपास के इलाकों में दौरे करवाए तथा छोटे बच्चों को काम करने से रोककर उनके माता-पिता को बच्चों के भविष्य प्रति जागरूक करे, तभी देश का भविष्य कहलाने वाले बच्चे देश के सुनहरे भविष्य में अपना योगदान डाल सकते हैं।

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