जेल में भी चलता है "पैसा फैंको तमाशा देखो" का खेल

Edited By Mohit,Updated: 16 Dec, 2018 05:38 PM

ludhiana jail

जेल के अन्दर कैदी व हवालातियों के पास प्रतिबंधित वस्तुओं का मिलना साधारण सी बात बन चुकी है। जेल अधिकारियों द्वारा समय समय पर किए गए दावों की हवा घंटों में ही निकल जाती है क्योंकि.................

लुधियाना (स्याल): जेल के अन्दर कैदी व हवालातियों के पास प्रतिबंधित वस्तुओं का मिलना साधारण सी बात बन चुकी है। जेल अधिकारियों द्वारा समय समय पर किए गए दावों की हवा घंटों में ही निकल जाती है क्योंकि सख्त कारवाई की चेतावनी व छानबीन के बावजुद वर्जित वस्तुओं को जेल के अन्दर उपलब्ध करवाने वाले कर्मचारियों के रूप में काली भेड़ों का मुल्य बढा देती हैं। पिछले कुछ वर्षों से मोबाईल, बीड़ी, जर्दा क प्रयोग उन बंदियों के लिए बहुत आसान है जो पुरानी हिन्दी फिल्म में गाए गीत के बोल में "पैसा फैंको तमाश देखो" से विष्य रखता है। मतलब सीधा है पैसा खर्च करो मनमर्जी की वर्जित वस्तु यां सुविधा मिल जाती है। फर्क सिर्फ इतना है कि प्रतिबंधित वस्तु के दाम काली भेड़ों की मर्जी के मुताबिक देने पड़ते हैं। जैसे बीड़ी का बण्डल 100 रू -150 रू व प्लास्टिक के ढक्कन में 50 रू का जर्दा व मोबाईल से काल करने का मुल्य अलग से होता है।

सुत्र बताते हैं कि जनवरी से दिसम्बर 2018 मे मध्य तक जेल के अन्दर बैरकों में सर्च अभियान, दीवार के बाहरी रास्ते से फैंके गए वर्जित समान, जेल डियूडी में आने वाले बंदियों की तलाशी करने पर 92 के मोबाईल, 31 नशे जैसे वस्तुएं व 21 के लगभग मामले कारवाई के लिए पुलिस को भेजने की संभावना आंकी जा रही है।

सुत्र बताते हैं कि जेल प्रशासन द्वारा समय समय पर पकड़े गए मोबाईल का मामला सबंधित अधिकारी द्वारा पुलिस को कारवाई के लिए भेज दिया जाता है। लेकिन पुलिस पकड़े गए मोबाईल के साथ निकलने वाले सिम की जांच गहराई से करे कि मोबाईल का सिम किस व्यक्ति के नाम जारी हुआ है और उस व्यक्ति ने सिम कार्ड जारी करवाते समय अपना आधार कार्ड यां अन्य कोई आई. डी. प्रुफ दिया है इस से मामला जल्दी सुलझ कर पुलिस के हाथ और भी कई सुराग मिल सकते हैं। लेकिन जब से जेल में मोबाईल पर प्रतिबंध लगने के बावजूद बंदियों से पकड़े गए मोबाईल पुलिस को ठोस कारवाई के लिए भेजे जाते हैं लेकिन नतीजा ठोस ना निकलने से जेल के अन्दर बैरकों में रह कर मोबाईलों का चोरी छिपे इस्तेमाल करने वाले बंदियों के हौंसले ओर बढ जाते हैं।

जेल के अन्दर बैरकों में अगर कोई बंदी चोरी छूपे मोबाईल यां नशे के साथ वॢजत सामान का इस्तेमाल करता है तो उसके इस गलत हथकंडे को पकड़वाने में कुछ विश्वासपात्र बंदी ही होते हैं जो गुप्त ढंग से सूचनाएं जेल अधिकारियों को देते हैं और पकड़ में आने के बाद उन पर कारवाई के लिए मामला पुलिस को भेज दिया जाता है।

जेल में कैदी व हवालातियों की संख्या हजारों में होने के चलते गार्द की कमी आटे में नमक के बराबर है। अगर किसी बैरक में बंदियों की गिणती 800 के लगभग है तों वहां सिर्फ 2 ही कर्मचारी तैनात होते हैं। गार्द की कमी भी खलने से बंदियों द्वारा वर्जित सामान का इस्तेमाल भी धड़ल्ले से करना आसान हो जाता है।

हाल ही में एक पैस्को कर्मचारी द्वारा जेल के अन्दर बीड़ी व जर्दा बंदियों को सप्लाई करने के आरोप में जेल प्रशासन द्वारा मामला दर्ज करवाया गया है। वर्णनीय है कि इस से पहले भी एक कर्मचारी जगरूप सिंह की पगड़ी से 25 के लगभग नशीनी गोलीयां व एक हैड वार्डन रूप पर पानी के रैबर में बीड़ीयां व जर्दे की पुडिय़ों को छूपा कर जेल के अन्दर पहुंचाने का आरोप लगने पर भी कारवाई हो चुकी है।

सुत्र बताते हैं कि जेल के अन्दर मोबाईल यां नशे जैसी वस्तुओं का इस्तेमाल करने वाले बंदी जेल में आने पर गुप्त अंगों में छूपा कर वर्जित सामान ले आते हैं जिस को जेल डियूडी में गार्द कर्मचारियों ने कई बार रंगे हाथों वर्जित सामान पकड़ा है। लेकिन जेल डियूडी में तलाशी कराने के उपरांत प्रत्येक बंदी को मैटल डिटैक्टर से निकल कर अपनी बैरक तक जाना होता है। अगर उस ने कोई सामान गुप्त अंगो में छूपाया हुआ है तो मैटल डिटैक्टर इसका संकेत नहीं देता?

जेल परिसर में बंदियों के परिजन जब दाखिल होते हैं तो वहां पर बैठा एक कर्मचारी साथ लाए सामान की गहनता से जांच करता है। अगर किसी बंदी का परिजन देने के लिए दवाईयां लेकर आता है तो उक्त कर्मचारी उक्त दवाईयों को बंदी की बैरक न. उसका नाम नोट कर दवाईयां अपने पास जमा कर लेता है और जेल डाक्टर को दवाईयां दिखाने के उपरांत ही उक्त बंदी के पास भेजी जाती हैं। इसके बाद साथ लाए मोबाईल को चैक पोस्ट पर बैठा कर्मचारी जमा कर कूपन दे देता है। तांकि मुलाकात के बाद परिजन का मोबाईल आसानी से मिल सके। उसके उपरांत मुलाकात रूम के बाहर भी परिजन की व उसके साथ लाए सामान की गहनता से तलाशी होती है। फिर भी गंभीर चिंता के विष्य है बंदियों तक मोबाईल, नशा व वर्जित सामान कैसे पहुंच रहा है।

जेल अधिकारी ऐसा भी मान रहे हैं कि जेल दीवार के बाहरी रास्ते के करीब कुछ बैरकें पहले से स्थापित हैं। जब भी कोई असामाजिक तत्व दीवार के बाहरी रास्ते से जेल के अन्दर बंद पैकट फेंक कर फरार हो जाता है तो जेल अधिकारियों को सूचना मिलने से पहले फैंके सामान को बैरक में रहने वाले बंदी शीघ्र उठा कर अपने ठिकानो पर छूपा लेते हैं।

जेल में डियूटी करने आने वाले कर्मचारियों की भी सहायक सुपरीडैॅंट की निगरानी में डियूडी में तलाशी सिर से लेकर पांव तक की जाती है। इस के उपरांत ही उनको जेल के अन्दर विभिन्न बैरकों में डियूटी करने के लिए भेजा जाता है। फिर भी जेल के अन्दर वर्जित सामान का पहुंचना समझ से दूर है।

जेल के सुपरीडैंट शमशेर सिंह बोपाराए का कहना है कि जेल के अन्दर यां बाहर से आने वाले किसी भी बंदी की तालाशी के दौरान मोबाईल यां वर्जित सामान पकड़ा जाता है तो जेल का सबंधित अधिकारी शीघ्र एक पत्र के माध्यम से स्थानीय पुलिस को कार्यवाही के लिए भेज देता है। लेकिन भेजे गए पत्र पर गहराई से जांच कर कारवाई करना पुलिस का कार्य होता है। उन्होने बताया कि जेल के अन्दर बंदियों की अधिक संख्या होने के चलते गार्द की कमी हमेशा खलती रहती है। उन्होने कहा जेल प्रशासन द्वारा समय समय पर तालाशी लेने वाले कर्मचारियों को सख्त निर्देश दिए जाते हैं। अगर किसी भी कर्मचारी की सलिप्ता सामने आती है तो उस पर भी कानुनी कारवाई के लिए जेल प्रशासन पीछे नहीं हटेगा।

ताजपुर पुलिस चौंकी इंचार्ज सुदर्शन कुमार का कहना है कि जेल प्रशासन द्वारा बंदियों से पकड़े गए मोबाईल, नशा यां वर्जित सामान का पत्र भेजा जाता है उस पत्र के आधार पर बंदी के विरूद्ध कारवाई की जाती है।

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