Edited By Punjab Kesari,Updated: 08 Nov, 2017 08:51 AM
मंगलवार की सुबह पंजाब में गहरी स्मोग ने दस्तक दी, जो धुंध व प्रदूषण के मिश्रण से बनी है।
जालंधर (रविंदर शर्मा) : मंगलवार की सुबह पंजाब में गहरी स्मोग ने दस्तक दी, जो धुंध व प्रदूषण के मिश्रण से बनी है। अमूमन गहरी धुंध पंजाब में दिसम्बर और जनवरी के महीने में देखने को मिलती है। पंजाब में अभी ठंड ने पूरी तरह से अपने पांव नहीं जमाए हैं, मगर धुंध व प्रदूषण से बनी स्मोग ने जीना जरूर मुहाल कर दिया है।गहरी स्मोग के साथ-साथ विजीबिलिटी भी जीरो थी। दिल्ली-एन.सी.आर. समेत इस बार पंजाब में सुप्रीमकोर्ट व हाईकोर्ट के पटाखे निर्धारित समय में ही फोडऩे के सख्त आदेशों के बाद भी सरकारें प्रदूषण पर लगाम नहीं लगा सकी। पंजाब सरकार ने न तो बढ़ते प्रदूषण को लेकर एक भी गंभीर कदम उठाया और न ही सरकार का ध्यान इस गंभीर समस्या की तरफ है। पंजाब में बढ़ा प्रदूषण का स्तर सामान्य से उस उच्चतम स्तर पर है, जिसमें लोगों को सांस लेने में दिक्कत होने लगती है। स्वास्थ्य विभाग के मुताबिक ज्यादा दिन तक इस प्रदूषण भरी हवा में सांस लेने से गंभीर बीमारियां हो सकती हैं। यह हवा क्षेत्र में अधिक उम्र के लोगों के साथ-साथ बच्चों के लिए भी बेहद घातक है।
भारतीय मौसम एजैंसी के हवाले से कहा जा रहा है कि नासा की सैटेलाइट इमेज से मिले नवीनतम चित्रों में पंजाब समेत पड़ोसी राज्य हरियाणा व राजस्थान में अधिक रोशनी देखी जा रही है। दरअसल नासा की सैटेलाइट चित्रों को फायर मैपर, वह यंत्र जो अधिक तापमान या आग लगने की स्थिति बताता है, की मदद से देखने पर इन राज्यों में आग जैसी स्थिति नजर आ रही है। नासा का यह फायर इंफर्मेशन फार रिसोर्स मैनेजमैंट सिस्टम (फमर्स) लगभग रियल टाइम (एनआरटी) पर पृथ्वी के उस हिस्से से आग और तापमान का आंकड़ा भेजता है, जहां आग लगी है। नासा का सैटेलाइट आग लगने वाली किसी जगह के ऊपर से गुजरता है तो उसके 3 घंटे के बाद यह चित्र नासा के कम्प्यूटर पर पहुंच जाता है। इस चित्र को नासा की सैटेलाइट के जरिए माडरेट रैजोल्यूशन इमेजिंग स्पैक्ट्रोरेडियोमीटर (मोदीज) और विजिलबर इंफ्रारैड इमेजिंग रेडियोमीटर सूट (वीर्स) तरीकों से लिया जाता है।
क्यों लगी हरियाणा, राजस्थान और पंजाब में आग
देश में खरीफ फसल खेतों में तैयार हो रही है। खरीफ फसल के लिए महत्वपूर्ण दक्षिण-पश्चिम मानसून जा चुका है। वहीं देश में मौसम बदल रहा है। गर्मी जा रही और ठंड दस्तक दे चुकी है। इस समय इन राज्यों में किसानों को नई खेती करने का एक आखिरी मौका मिलता है। लिहाजा इस मौसम में बुआई के लिए खेत तैयार करना होता है। ऐसी स्थिति में इन राज्यों में ज्यादातर किसान अपना समय और मेहनत बचाने के लिए खेतों में पड़े अनाज के कचरे को जला देते हैं। आम तौर पर किसानों द्वारा यह काम दीवाली के मौके पर कर दिया जाता है। मगर इस बार दिल्ली-एन.सी.आर. में सुप्रीमकोर्ट के आदेश व पंजाब में हाईकोर्ट के आदेश के बाद पटाखों पर प्रतिबंध लग गया था। वहीं इन राज्यों में भी प्रशासन भी चुस्त था। गौर हो कि उत्तर भारत में खेतों का कचरा जलाने का काम 1980 के दशक में तब शुरू हुआ, जब खेतों में बुआई-जुताई के लिए मशीनों का इस्तेमाल शुरू हुआ। इससे पहले किसान इस कचरे को वापस खेत में मिला देते थे। मगर मशीनी युग आने के बाद से खेतों में कटाई के बाद एक-एक फुट लंबी नाड़ निकलती है, इनको निष्पादित करना किसानों के लिए बड़ी चुनौती बन जाती है। लिहाजा वे अपना समय और मेहनत बचाने के लिए इसे जलाने का काम करते हैं।
हार्ट सर्जन ने 2 साल पहले ही बता दी थी तस्वीर
2 साल पहले देश के जाने माने हार्ट सर्जन डा. नरेश त्रेहन ने बताया था कि दिल्ली में इस दौरान होने वाला प्रदूषण आदमी के फेफड़ों पर बुरा असर डाल रहा है। इसको सिद्ध करने के लिए डा.त्रेहन ने नई दिल्ली में एक आदमी के फेफड़ों की तुलना हिमाचल प्रदेश में रहने वाले एक अन्य आदमी के फेफड़ों से की थी। डा.त्रेहन के मुताबिक दिल्ली में जारी प्रदूषण से आदमी के फेफड़ों पर बुरा असर पड़ रहा
है और वह अस्थमा समेत कई गंभीर बीमारियों से जूझ रहा है।
नगर निगम व ट्रैफिक पुलिस भी जिम्मेदार
पराली के साथ-साथ शहर में सूखे पत्तों व कूड़े के ढेरों को भी खुलेआम आग लगाई जा रही है। इसके लिए सीधे तौर पर नगर निगम जिम्मेदार है और निगम कर्मचारी व अधिकारी ही यह काम कर रहे हैं। वहीं दूसरी तरफ लगातार वाहनों का प्रदूषण भी वातावरण को प्रदूषित कर रहा है और ट्रैफिक पुलिस पूरी तरह से इन बातों की अनदेखी कर रही है।