Edited By Punjab Kesari,Updated: 20 Jan, 2018 04:56 AM
अकाली-भाजपा गठबंधन के 10 साल के शासनकाल में भाजपा कार्यकत्र्ताओं की सुध न लेने से नाराज कार्यकत्र्ता विधानसभा चुनाव व नगर निगम चुनाव में शांत होकर बैठ गए, जिसके चलते भाजपा को 2017 के विधानसभा व निगम चुनाव में करारी पराजय का सामना करना पड़ा। भाजपा को...
जालंधर(पवन): अकाली-भाजपा गठबंधन के 10 साल के शासनकाल में भाजपा कार्यकत्र्ताओं की सुध न लेने से नाराज कार्यकत्र्ता विधानसभा चुनाव व नगर निगम चुनाव में शांत होकर बैठ गए, जिसके चलते भाजपा को 2017 के विधानसभा व निगम चुनाव में करारी पराजय का सामना करना पड़ा।
भाजपा को 2007 के विधानसभा चुनाव में 23 विधानसभा सीटों में से 19 सीटों पर सफलता मिली थी लेकिन 2012 में पार्टी 23 में से 12 सीटें जीत सकी थी। जबकि 2017 में हुए विधानसभा चुनाव में भाजपा कार्यकत्र्ता पंजाब नेतृत्व से बिल्कुल नाराज नजर आए। इसका मुख्य कारण 10 साल के शासनकाल में भाजपा कार्यकत्र्ताओं की सुनवाई न होना था। भाजपा के टकसाली कार्यकत्र्ताओं, जिन्होंने रात-दिन एक कर चुनाव जिताने में अहम भूमिका अदा की थी, की चुनाव जीतने वालों ने सार नहीं ली, जिसके चलते भाजपा कार्यकत्र्ता 2017 के विधानसभा चुनाव व निगम चुनावों में घरों में बैठ गए । इस करके भाजपा के उम्मीदवार 15000 से 32,000 के भारी अंतर से हार गए।
विधानसभा चुनावों में मिली करारी हार के बाद न तो भाजपा ने पंजाब में अपनी कार्यशैली में परिवर्तन किया और न ही पंजाब के नेतृत्व से नाराज कार्यकत्र्ताओं को शांत करने के लिए संगठन में कोई परिवर्तन किया, जिस कारण नगर निगम चुनाव में भी भाजपा को जालंधर, अमृतसर व पटियाला में हार का सामना करना पड़ा तथा कांग्रेस पार्टी को भारी सफलता हाथ लगी। कांग्रेस की सफलता का श्रेय पंजाब में भाजपा के नेतृत्व को जाता है, जिन्होंने अपने शासनकाल के दौरान कार्यकत्र्ताओं की तरफ ध्यान नहीं दिया।
न केवल भाजपा के टकसाली कार्यकत्र्ता ने अब पार्टी के धरने, प्रदर्शन व विभिन्न कार्यक्रमों से दूरी बना ली बल्कि पार्टी के दिए कार्यक्रमों विरोध, प्रदर्शन में कार्यकत्र्ताओं की कम संख्या को देखते हुए पूर्व मंत्री, पूर्व विधायक अक्सर गायब रहने लगे ताकि उनकी इमेज खराब न हो जाए। अगर पार्टी कार्यकत्र्ता नाराज होकर ऐसे घर घर बैठा रहा तो पार्टी को पंजाब में आने वाले लोकसभा चुनाव में भारी नुक्सान उठाना पड़ सकता है।