सरकारों व शिरोमणि कमेटी ने गुरु गोबिंद सिंह मार्ग से मोड़ा मुंह

Edited By Punjab Kesari,Updated: 19 Nov, 2017 04:08 PM

governments and shiromani committee turned their back on guru gobind singh marg

खालसा पंथ की स्थापना करने वाले दशमेश पिता श्री गुरु गोबिंद सिंह जी के प्रकाश पर्व को शिरोमणि कमेटी द्वारा 25 दिसम्बर को मनाने की घोषणा की गई है, लेकिन शिरोमणि कमेटी तथा सरकारों द्वारा गुरु गोबिंद सिंह जी के नाम पर बने गुरु गोबिंद सिंह मार्ग तथा....

निहाल सिंह वाला/बिलासपुर (बावा/जगसीर): खालसा पंथ की स्थापना करने वाले दशमेश पिता श्री गुरु गोबिंद सिंह जी के प्रकाश पर्व को शिरोमणि कमेटी द्वारा 25 दिसम्बर को मनाने की घोषणा की गई है, लेकिन शिरोमणि कमेटी तथा सरकारों द्वारा गुरु गोबिंद सिंह जी के नाम पर बने गुरु गोबिंद सिंह मार्ग तथा ऐतिहासिक स्थानों को जाते रास्तों की ओर ध्यान न देने से सिद्ध होता है कि लोगों को इतिहास से जोडऩे के लिए कोई प्रयास नहीं किए जा रहे हैं। गुरु गोबिंद सिंह मार्ग की हालत आज बहुत ही नाजुक बनी हुई है। इस मार्ग पर जाने के लिए लोग कन्नी कतराते हैं।

पिछले 10 वर्षों दौरान मार्ग की नाजुक हालत की ओर नहीं दिया ध्यान
इस ऐतिहासिक मार्ग की हालत पिछले 10 वर्षों से बहुत ही नाजुक है। कई जगह से यह मार्ग छप्पड़ का रूप धारण कर चुका है। मधेके में इस मार्ग पर बने शैलर वालों द्वारा गंदा पानी छोड़कर इस मार्ग को तोड़ दिया गया है। लोगों द्वारा इस संबंधी प्रशासन को लिखित शिकायत पत्र भी भेजे गए हैं, लेकिन इस समस्या का कोई ठोस हल नहीं किया गया। अब जब श्री गुरु गोङ्क्षबद सिंह जी का प्रकाश पर्व बिल्कुल नजदीक है तो इस मार्ग की महत्ता और भी बढ़ जाती है तथा लोगों का कहना है कि क्या सरकार अब इस मार्ग के सुधार की ओर ध्यान देगी।

क्या है गुरु गोबिंद सिंह मार्ग का इतिहास
गुरु गोबिंद सिंह जी आनंदपुर साहिब का किला छोडऩे के बाद 1705 को तख्तूपुरा साहिब की धरती से होते हुए गांव मधेके पहुंचे थे। तीर व तलवार चलाते हुए गुरु साहिब के हाथ की उंगली पर जख्म हो गया था। एक मुसलमान लुहार ने मुंह की भांप देकर पट्टी उतार दी थी। खुश होकर गुरु साहिब ने उक्त लुहार को कुल में बढ़ौतरी होने का वचन दिया था।

अब इस जगह पर गुरुद्वारा पाका साहिब सुशोभित है। इसके बाद गुरु जी को दीना साहिब की संगत अपील करके ले गई थी तथा दीना साहिब की धरती पर ही गुरु  साहिब ने मुगल बादशाह औरंगजेब को फारसी भाषा में पत्र लिखा था, जिसको इतिहास में गुरु साहिब द्वारा औरंगजेब को लिखा जफरनामा कहा जाता है। जफरनामा पढऩे के बाद औरंगजेब की दिल का दौरा पडऩे से मौत हो गई थी।

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