भ्रष्टाचार की जड़ें काटने में असफल रहा विजीलैंस विभाग

Edited By Anjna,Updated: 16 Jan, 2019 10:06 AM

vigilance succeeded in cutting corruption roots

पंजाब में विजीलैंस विभाग का गठन 15 सितम्बर, 1967 को हुआ था। इस विभाग के गठन का मुख्य उद्देश्य यह था कि पंजाब सरकार के विभिन्न विभागों में से भ्रष्टाचार को खत्म किया जाए।

कपूरथला (गुरविंद्र कौर): पंजाब में विजीलैंस विभाग का गठन 15 सितम्बर, 1967 को हुआ था। इस विभाग के गठन का मुख्य उद्देश्य यह था कि पंजाब सरकार के विभिन्न विभागों में से भ्रष्टाचार को खत्म किया जाए। आम लोगों की सरकारी विभागों में होने वाली लूट को रोका जा सके परंतु विजीलैंस विभाग के गठन के बावजूद पंजाब सरकार में कोई भी विभाग ऐसा नहीं, जिसमें भ्रष्टाचार के मामले सामने न आते रहे हों।

इतना ही नहीं, सरकारी विभागों में भ्रष्टाचार की जड़ें इस हद तक मजबूत हो गई हैं कि कई बार खुद विजीलैंस विभाग पर ही भ्रष्टाचार के आरोप लगते देखे गए। जिस प्रकार हाथ की पांच उंगलियां समान नहीं, उसी प्रकार सरकारी विभागों के सब अधिकारी व कर्मचारी भी भ्रष्टाचारी नहीं होते। सरकारी विभागों में फैले भ्रष्टाचार का पता लगाने के लिए कुछ विभागों में काम करने वाले विश्वास योग्य सूत्रों से बात की तो पता लगा कि विजीलैंस का डर निचले स्तर के अधिकारियों को ही है, बड़े अधिकारियों को विजीलैंस का कोई डर नहीं। उनका रिश्वत लेने का ढंग भी ऐसा है कि वे कभी भी पकड़े नहीं जा सकते।

विजीलैंस विभाग को रहता है शिकायत का इंतजार
इस मामले के बारे में विजीलैंस विभाग का रिकॉर्ड देखने पर पता लगता है कि यह तब तक भ्रष्टाचारों पर शिकंजा नहीं कसता, जब तक उसके पास कोई शिकायत न पहुंचे। कोई भ्रष्टाचार से परेशान व्यक्ति विजीलैंस के पास आकर पूरी कहानी नहीं सुनाता। विजीलैंस विभाग ने सरकारी दफ्तरों से रिश्वतखोरी को खत्म करने के लिए कई उपाय किए हैं। जैसे कि वैबसाइट बनाई है, टोल फ्री नम्बर जारी किए गए हैं, सरकारी दफ्तरों में विज्ञापन लगवाए हैं, सैमीनारों व वर्कशॉप का आयोजन किया जाता है परंतु इसके बावजूद विभाग के शिकंजे में बड़े मगरमच्छ नहीं फंसते।

बड़े अफसर ऐसे बनते हैं करोड़पति
सूत्रों के अनुसार बड़े-बड़े अधिकारी गैर-कानूनी कालोनियां, पैलेसों, अवैध निर्माणों, रजिस्ट्रियों आदि अन्य कई प्रकार के कार्यों के द्वारा मोटी रकम कमाते रहे हैं। निचले स्तर के कर्मचारी बड़े अधिकारियों के नाम पर उगाही करते हैं। बड़े अधिकारी कड़ी कार्रवाई या भारी जुर्माने के नाम पर अपने मनी कलैक्टरों, रिश्तेदारों या विभाग के बाबुओं के द्वारा अपनी जेबें भरते रहते हैं। बड़े-बड़े कई अफसरों ने तो अपनी बेनामी जायदाद में भारी बढ़ौतरी की है। रजिस्ट्रियों के नाम पर अटार्नियों के नाम पर फर्जी लोगों को खड़ा करके मृतक व्यक्तियों की जमीनों की रजिस्ट्रियां होना आम बात रह चुकी है। यहां तक कि तहसीलदारों की सीट हासिल करने के लिए अधिकारियों को नेताओं के दरबार में नोटों से भरे अटैची तक देने पड़ते हैं। इस प्रकार सरकारी विभाग विजीलैंस के घेरे में आने के बावजूद भ्रष्टाचार में शामिल रहे हैं।

क्या कहते हैं विजीलैंस के आंकड़े
विजीलैंस विभाग में वर्ष-2018 में कुल 6 मामले दर्ज हुए, जिनमें से 3 शिकायतें 3 टोल फ्री नम्बर पर आई थीं। इन तीनों शिकायतों में से 2 तो हल कर लिया गया परंतु एक अभी भी पैंडिंग पड़ी है। विजीलैंस विभाग की ओर से 2 बड़ी उपलब्धियां प्राप्त की गईं, जिसमें पहली पंजाब टैक्नीकल यूनिवर्सिटी के वाइस चांसलर का और एक रैवेन्यू फ्रॉड का मामला है। कुल मिलाकर 6 मामलों में से 5 को रंगे हाथों पकड़ लिया गया और एक अभी तक पैंडिंग है।

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