दो वक्त की रोटी के लिए ढाबों, होटलों व अस्पतालों में बाल मजदूरी कर रहे बच्चे

Edited By swetha,Updated: 19 Sep, 2018 10:22 AM

child labor

भले ही देश की अलग-अलग राजनीति पार्टियों की ओर से गरीब लोगों का जीवन स्तर ऊपर उठाने के लिए चुनाव से पहले व बाद में समय की सरकारों की ओर से बड़े-बड़े दावे किए जाते हैं। पर इन दावों की हवा निकलती हुई आम देखी जा सकती है।

फगवाड़ा (रुपिंद्र कौर): भले ही देश की अलग-अलग राजनीति पार्टियों की ओर से गरीब लोगों का जीवन स्तर ऊपर उठाने के लिए चुनाव से पहले व बाद में समय की सरकारों की ओर से बड़े-बड़े दावे किए जाते हैं। पर इन दावों की हवा निकलती हुई आम देखी जा सकती है।

यह बच्चे अपने पेट की भूख को शांत करने के लिए गंदगी के ढेरों में से कुछ तलाशते रहते हैं। कुछ बच्चे होटलों, ढाबों में बाल मजदूरी करने के लिए मजबूर हो जाते हैं। ये मासूम बच्चे जहां कारखानों, होटलों, ढाबों, रेलवे स्टेशनों, बस स्टैंडों पर अपने दो वक्त की रोटी के जुगाड़ करने के लिए काम करते हैं। वहीं  21वीं सदी के भारत की आर्थिक तरक्की का काला चेहरा पेश करते हैं। इन बच्चों के तबाह हो रहे बचपन को देखकर आजादी के 7 दशकों बाद भी सभ्याचार समाज की उस तस्वीर पर कई सवाल खड़े होते हैं, जहां बच्चों को ईश्वर का रूप माना जाता है।

भले ही बाल मजबूरी को रोकने के लिए सरकारों की ओर से कानून तो बनाए गए हैं परंतु कुछ कथित अधिकारियों की साहूकारों के साथ अंदर खाते मिलीभगत होने के कारण ये बाल मजदूरी को रोकने के लिए बनाए गए कानून की फाइलें भी दफ्तरों में ही दम घुटती रह जाती हैं। यदि देश में 14 वर्ष से कम आयु का कोई बच्चा काम करे, तो उसको बाल मजदूरी कहा जाता है और अक्सर ही बाल मजदूरी की चपेट में ये मासूम बच्चे आते हैं। कई बार तो इस प्रकार के बच्चे भी होते हैं, जिनके माता-पिता उनके लिए कुछ नहीं करते। संबंधित विभाग कार्रवाई कर खानापूर्ति कर दी जाती है। बाल मजदूरी आंकड़ा हर वर्ष बढ़ता ही जा रहा है। 

बाल मजदूरी करवाना भी है अपराध
वर्ष 1986 के दौरान सरकार की ओर से चाइल्ड लेबर एक्ट बनाया गया। इसके तहत बाल मजदूरी को यह अपराध ऐलाना गया है और रोजगार हासिल करने के लिए कम से कम 14 वर्ष की आयु तय की गई परंतु लोगों की लालची व गरीबी कारण यह कानून दफ्तरी फाइलों तक ही सीमित होकर रह गया। 

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