Edited By Punjab Kesari,Updated: 14 Jan, 2018 09:51 AM
पर्यावरण विभाग की रिपोर्ट के मुताबिक वायु प्रदूषण के लिए सबसे ज्यादा हम खुद जिम्मेदार हैं। पर्यावरण विभाग के अलावा नैशनल एनवायरनमैंट इंजीनियरिंग रिसर्च इंस्टीच्यूट, नैशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल के मुताबिक 70 प्रतिशत वायु प्रदूषण मानव जनित कारणों से है। यह...
जालंधर(सोमनाथ कैंथ): पर्यावरण विभाग की रिपोर्ट के मुताबिक वायु प्रदूषण के लिए सबसे ज्यादा हम खुद जिम्मेदार हैं। पर्यावरण विभाग के अलावा नैशनल एनवायरनमैंट इंजीनियरिंग रिसर्च इंस्टीच्यूट, नैशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल के मुताबिक 70 प्रतिशत वायु प्रदूषण मानव जनित कारणों से है। यह भी सच है कि बाहरी प्रदूषण से ज्यादा उन घरों में वायु प्रदूषण की मात्रा ज्यादा है, यहां खाना पकाने के लिए लकड़ी और उपलों का इस्तेमाल होता है।
वायु प्रदूषण के संबंध में जारी रिपोर्टों के अनुसार घरों में चूल्हे से निकलने वाला धुआं सिगरेट के धुएं से 3 गुना ज्यादा खतरनाक है। यदि हवा में इन स्रोतों को खत्म या नियंत्रित नहीं किया गया तो 3 दशक में यह खतरा डेढ़ गुना ज्यादा बढ़ जाएगा। आई.आई.टी. मुम्बई, हैल्थ इफैक्ट इंस्टीच्यूट बोस्टन (अमरीका), वांग शूजियाओ विश्वविद्यालय बीजिंग (चीन) और कोलंबिया विश्वविद्यालय कनाडा में हुई शोधों के मुताबिक प्रदूषण का जितना खतरा शहरों और औद्योगिक क्षेत्रों में है उतना ही खतरा ग्रामीण इलाकों में भी है।
रिपोर्टों के अनुसार प्रदूषण के मुख्य स्रोतों और उनसे होने वाली मौतों का भी आकलन किया गया है। घरेलू प्रदूषण का स्तर खतरनाक रूप ले चुका है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यू.एच.ओ.) की रिपोर्ट के अनुसार घरों के अंदर होने वाला प्रदूषण वैश्विक पर्यावरण की सबसे बड़ी समस्या है। दुनिया भर में घरों में होने वाले प्रदूषण से प्रति वर्ष 43 लाख लोगों की मौत होती है। यह दुनिया भर में एक साल में प्राकृतिक हादसों से होने वाली मौतों से 45 गुना ज्यादा है।
12 लाख मौतें रुक सकती हैं
अध्ययनों के मुताबिक घरों में बायोमॉस दहन, कोयले के इस्तेमाल में कमी, मानव जनित धूल को रोकने, पैट्रोलियम के इस्तेमाल को घटाने की दिशा में काम करके 12 लाख मौतों को रोका जा सकता है।
आंगनबाड़ी सैंटरों और स्कूलों में बच्चों की सेहत को खतरा
जिन आंगनबाड़ी सैंटरों में भोजन पकाने के लिए ठोस ईंधन जैसे सूखी लकडिय़ों और उपलों आदि का इस्तेमाल होता है, वहां की हवा खतरनाक ढंग से प्रदूषित होती है। इससे बच्चों की सेहत पर बुरा असर पड़ता है। अध्ययन से पता चला कि आंगनबाड़ी केंद्रों पर हवा में फैले अत्यंत सूक्ष्म दूषित कणों (पी.एम. 2.5) का घनत्व औसतन 2524 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर था। पी.एम. 10 की मात्रा 95 से लेकर 13,800 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर के बीच थी। इन सभी आंगनबाड़ी केंद्रों में वायु प्रदूषण का स्तर मानकों से कहीं ज्यादा है। दूसरी तरफ हालांकि ज्यादातर स्कूलों में मिड-डे मील बनाने के लिए गैस का इस्तेमाल होता है लेकिन कई ग्रामीण स्कूलों को सर्वे के दौरान लकडिय़ों आदि से खाना बनाते पाया गया है।
मैडीकल हिस्ट्री बताएगी मरीज प्रदूषण से कितना प्रभावित
किसी बीमारी के लिए प्रदूषण कितना जिम्मेदार है इसका पता लगाने के लिए एम्स ने अध्ययन शुरू किया है। एम्स के निदेशक डॉ. रणदीप गुलेरिया ने बताया कि एम्स में दाखिल होने वाले मरीजों से यह जानकारी जुटानी शुरू कर दी गई है। इसमें मरीजों से पूछा जाता है कि उनके घर में खाना बनाने के लिए कौन-सा ईंधन इस्तेमाल होता है। प्रकाश का स्रोत क्या है और किस प्रकार का काम वह करता है, इनसे पता चलाना आसान होगा कि कोई मरीज प्रदूषण से कितना प्रभावित है।
भयावह स्थिति
भोजन पकाने और प्रकाश के लिए घरों में जलाया जाने वाला बायोमॉस प्रदूषण का सबसे बड़ा कारण है। किसी एक स्रोत से होने वाली सबसे ज्यादा मौतों के लिए यही सबसे ज्यादा जिम्मेदार है।
वायु प्रदूषण के लिए 6 मानवजनित कारक
आई.आई.टी. मुम्बई, हैल्थ इफैक्ट इंस्टीच्यूट बोस्टन (अमरीका), वांग शूजियाओ विश्वविद्यालय बीजिंग (चीन) और कोलंबिया विश्वविद्यलय (कनाडा) में हुए अध्ययनों के मुताबिक