पराली के साथ ही रोकना होगा रैड कैटेगरी इंडस्ट्रीज का पॉल्यूशन भी

Edited By Sunita sarangal,Updated: 06 Nov, 2019 10:11 AM

the red category industry have to be stopped

शाही शहर और वित्तमंत्री का जिला छोड़ पंजाब में कहीं सांस लेने लायक नहीं हवा

जालंधर(बुलंद/ जतिन्द्र): शहर में बढ़ रहे वायु प्रदूषण का असर अस्पतालों में मरीजों की बढ़ती संख्या से देखने को मिला। सांस और हृदय रोगियों की संख्या में काफी वृद्धि हो गई है। हर घर में कोई न कोई जुकाम, सांस की तकलीफ, खांसी, आंखों में जलन, फेफड़ों में खराबी जैसे रोगों से ग्रस्त दिखाई दे रहा है। बीते 24 घंटों दौरान पंजाब की आबोहवा की बात करें तो केवल शाही शहर और वित्त मंत्री के जिले बठिंडा को छोड़कर कहीं भी समूचे राज्य में हवा सांस लेने के लायक नहीं है।
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कानून अनुसार प्रदूषण फैलाने वालों पर क्या कार्रवाई हो सकती है इस बारे शहर के प्रमुख वकीलों ने बातचीत दौरान यह जानकारी दी। वकीलों की नजर में अकेले पराली जलाना ही वायु प्रदूषण के लिए जिम्मेदार नहीं है। इसके लिए वाहनों का धुआं और इंडस्ट्री से निकलता धुआं भी जिम्मेदार है। सरकारों ने प्रदूषण को नियंत्रण करने के लिए कानून तो काफी कड़े बनाए हैं, मगर उन पर सख्ती से पहरा देने की जरूरत है। इसके साथ ही रैड कैटेगरी इंडस्ट्री के पॉल्यूशन को कंट्रोल करने की भी बड़ी जरूरत है।
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प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड की अनदेखी जिम्मेदार
एडवोकेट हर्ष झांजी ने बढ़ रहे वायु प्रदूषण के बारे में कहा कि इसका मुख्य कारण प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड की अनदेखी है। अनेक फैक्टरियां अवैध तौर पर रिहायशी इलाकों में चल रही हैं जिन्हें बिजली विभाग भी हैवी लोड कनैक्शन दे रहा है, जिसका दिल करता है पेड़ काट देता है। सड़कों के निर्माण के नाम पर लाखों पेड़ काटे गए हैं। प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड रैजीडैंशियल जोन व इंडस्ट्रीयल जोन को डिक्लेयर करे। किसानों को भी चाहिए कि वे अपने मुनाफे के चक्कर में पराली व नाड़ न जलाएं।
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समुचित प्रयास के अभाव में बढ़ रहा प्रदूषण
सीनियर एडवोकेट नवतेज सिंह मिन्हास ने अपने विचार प्रगट करते हुए कहा कि पंजाब में प्रदूषण का स्तर खतरनाक रूप धारण करता जा रहा है। इसका असर आने वाली पीढ़ी पर पड़ना तय है। पंजाब प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड, नगर निगम, जिला प्रशासन तथा सरकार के साथ-साथ समाज को भी इसके लिए आगे आना चाहिए। केवल इंडस्ट्री की चिमनी ही नहीं बल्कि सड़कों पर धुआं छोड़ रहे अंधाधुंध वाहनों की बढ़ती संख्या भी इसके लिए जिम्मेदार है। विडम्बना यह है कि सड़कों पर खड़ी ट्रैफिक पुलिस केवल चालान काटने तक ही सीमित होकर रह गई है। यही कारण है कि बेरोक-टोक के चलते धुआं छोड़ते वाहनों की संख्या में तेजी से इजाफा हो रहा है। ऊपर से चंद पैसों के लालच में प्रदूषण सैंटर पर आसानी से दिए जा रहे सर्टीफिकेट भी प्रदूषण की आग में घी डालने का काम कर रहे हैं। इसके लिए जहां पंजाब सरकार को दिल्ली की तर्ज पर वाहनों की अवधि निर्धारित करनी चाहिए, वहीं लोगों को भी अधिक से अधिक पौधे लगाते हुए अपने वाहनों की नियमित जांच करवाना सुनिश्चित करनी चाहिए।
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इंसान खुद ही जिम्मेदार
एडवोकेट रजिंद्र भाटिया का कहना है कि वायु प्रदूषण फैलाने के लिए सिर्फ इंसान ही जिम्मेदार है। क्योंकि इंसान की हर एक्टिविटी प्रदूषण को जन्म दे रही है। ट्रैफिक, इंडस्ट्री, कृषि, ट्रांसपोर्टेशन आदि सब इसमें शामिल हैं। इससे केवल मानव जीवन ही नहीं अन्य जीवों व वनस्पति की सेहत पर बुरा प्रभाव पड़ रहा है। वायु नियंत्रण को लेकर सामूहिक स्तर पर प्रयास होने चाहिएं ।  
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हमें खुद को बदलना होगा
एडवोकेट राजू अम्बेदकर ने कहा कि सबसे खतरनाक स्तर वायु प्रदूषण का है। जिस हिसाब से प्रदूषण बढ़ा है इससे लगता है कि आने वाले दिनों में देश के लोगों की औसतन आयु 10-20 साल कम हो जाएगी। प्रदूषण नियंत्रण के लिए केवल कानून बनाने से काम नहीं चलेगा। कानून पहले ही काफी हैं। इसके लिए हमें खुद को बदलना होगा।    
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फैक्ट्रियों में लगाए जाएं प्रदूषण नियंत्रण संयंत्र
एडवोकेट अशोक शर्मा का कहना है कि बढ़ते वायु प्रदूषण के कारण सांस लेना मुश्किल हो गया है। गाड़ियों, कारखानों तथा पराली को जलाने के कारण निकलने वाला धुआं हवा में जहर घोल रहा है। इससे तेजी से वायु प्रदूषण बढ़ रहा है। वायु प्रदूषण के लिए मुख्य रूप से जिम्मेदार बढ़ते उद्योग व उन उद्योगों में प्रदूषण नियंत्रण संयंत्रों का न होना है। प्रदूषण फैलाने में वाहन तो योगदान डाल ही रहे हैं वृक्षों का कटाव भी मुख्य कारणों में से एक है। सरकार को प्रदूषण रोकने के लिए कड़े कदम उठाने चाहिएं।
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कानून पर सख्ती से पहरे की जरूरत
एडवोकेट परमिंद्र सिंह विग ने कहा कि प्रदूषण से संबंधित कानूनों की शुरूआत जून 1972 में स्टॉकहोम में आयोजित यूनाइटेड नेशन्स कॉन्फ्रैंस में हुई। 1986 में एन्वायरनमैंट प्रोटैक्शन एक्ट सामने आया। इससे पहले एयर प्रिवैंशन एंड कंट्रोल ऑफ पॉल्यूशन एक्ट 1981 व वाटर प्रिवैंशन एंड कंट्रोल ऑफ पॉल्यूशन एक्ट 1974 पहले ही मौजूद था। 2010 में नैशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल नाम की एक अलग अदालत बनी। इसके अतिरिक्त द इंडियन फोरैस्ट एक्ट 1927, वाइलड लाइफ एक्ट 1972, द पब्लिक लाइबिलिटी इंश्योरैंस एक्ट 1991 व द कम्पैनसेटरी एफोरेशन फंड एक्ट 2016 मौजूद है। अगर इन्हें सख्ती से लागू किया जाए तो प्रदूषण फैलाने वालों की कमी आना लाजमी है।
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समाज के हर वर्ग को डालना होगा योगदान
सीनियर एडवोकेट चौधरी ऋषि पाल सिंह सैनी ने कहा कि उम्र भोग चुके वाहन सड़कों पर बेखौफ प्रदूषण फैला रहे हैं और मूकदर्शक बनी ट्रैफिक पुलिस को इस तरफ विशेष ध्यान देना चाहिए। लाखों पुराने वाहन बिना एम.वी.आई. से पास हुए सड़कों पर प्रदूषण फैलाते हुए दौड़ रहे हैं। इसकी ओर भी प्रशासन को ध्यान देना चाहिए। साथ ही समाज के हर वर्ग का कर्तव्य बनता है कि वह वातावरण को स्वच्छ बनाने में अपना बहुमूल्य योगदान डाले।
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पुरानी गाड़ियों पर लगाना होगा अंकुश
एडवोकेट पुरुषोत्तम कपूर ने कहा कि स्वच्छ पर्यावरण तभी बनेगा जब समाज का हर वर्ग जागरूक होकर पौधारोपण करेगा। कारखानों से निकलने वाला धुआं वातावरण को प्रदूषित बनाने में अहम भूमिका निभाता है जिस पर अंकुश लगना चाहिए।  

पंजाब में बीते 24 घंटों दौरान वायु क्वालिटी इंडैक्स यह रहा

अमृतसर 233 पीएम-2.5
जालंधर 299 पीएम-2.5
लुधियाना 206 पीएम-2.5
मंडी गोबिंदगढ़ 245 पीएम-2.5
पटियाला 183 पीएम-2.5
बठिंडा 150 पीएम-2.5

4 तरह का पॉल्यूशन घोल रहा पर्यावरण में जहर
1. व्हीकुलर पॉल्यूशन
2. इंडस्ट्रीयल पॉल्यूशन
3. एग्रीकल्चर पॉल्यूशन
4. डोमैस्टिक पॉल्यूशन

रैड कैटेगरी इंडस्ट्री क्या है
2015-16 के बीच 15,021 औद्योगिक इकाइयां रैड कैटेगरी इंडस्ट्रीज (सर्वाधिक प्रदूषण फैलाने वाले उद्योग) काऊंट की गई थीं। ये वे औद्योगिक इकाइयां हैं जिनमें कोयला और चावल का छिलका ईंधन के रूप में इस्तेमाल होता है। कोयला और चावल का छिलका जलने से वातावरण में ऑक्साइड नाईट्रोजन और सल्फर, आर्गेनिक कम्पाऊंड और अन्य पॉल्यूटैंट्स हवा में घुलते हैं जिससे प्रदूषण में इजाफा होता है।

 

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