Edited By Punjab Kesari,Updated: 13 Mar, 2018 10:24 AM
सरकार द्वारा नारी शिक्षा को प्रोत्साहन देने के लिए कई तरह की स्कीमें चलाई जा रही हैं, लेकिन शिक्षण संस्थानों में महिलाओं से होती यौन उत्पीडऩ की घटनाओं पर नुकेल कसने में समय-समय की सरकारें अभी भी असमर्थ ही नजर आ रही हैं। शायद यही कारण है कि भारत के...
जालंधर (सुमित): सरकार द्वारा नारी शिक्षा को प्रोत्साहन देने के लिए कई तरह की स्कीमें चलाई जा रही हैं, लेकिन शिक्षण संस्थानों में महिलाओं से होती यौन उत्पीडऩ की घटनाओं पर नुकेल कसने में समय-समय की सरकारें अभी भी असमर्थ ही नजर आ रही हैं। शायद यही कारण है कि भारत के विभिन्न विश्वविद्यालयों और उनके अधीन आते महाविद्यालयों में यौन उत्पीडऩ की घटनाओं में पिछले 3 वर्षों से लगातार बढ़ौतरी ही दर्ज की गई है।
इस संबंध में संसद में पूछे गए एक सवाल के जवाब में मिली जानकारी में बताया गया कि वर्ष 2016-17 की तुलना में वर्ष 2017-18 में शिक्षण संस्थानों में यौन उत्पीडऩ के मामलों की संख्या में 40 प्रतिशत तक बढ़ौतरी हुई। वर्ष 2016-17 में यौन उत्पीडऩ के 149 केस सामने आए थे जोकि वर्ष 2015-16 की तुलना में 3 गुणा तक बढ़े थे। अधिकतर विश्वविद्यालयों व संबंधित शिक्षण संस्थानों में इंटर्नल कम्पैलेंट कमेटी (आई.सी.सी.) बनी हुई हैं परन्तु इसके बावजूद ऐसी घटनाएं घट जाती हैं।
ऐसा भी नहीं है कि सरकारें इस बात को लेकर ङ्क्षचतित नहीं हैं, पर अभी तक उठाए जाने वाले कदम पूरी तरह कारगर सिद्ध नहीं हो पा रहे। सरकार के कहने पर यू.जी.सी. द्वारा सभी विश्वविद्यालयों के वाइस चांसलरों व अन्य शिक्षण संस्थानों के प्रमुखों को निर्देश जारी करजीरो टॉलरैंस की पॉलिसी अडॉप्ट करने को कहा गया है पर फिर भी ऐसे घटनाओं का घटित होना दर्शाता है कि सख्ती के साथ-साथ मानसिकता को बदलने पर भी जोर दिए जाने की जरूरत है ताकि ऐसी घटनाओं पर पूर्ण विराम लग सके। केन्द्र सरकार भी मान चुकी है कि शिक्षण संस्थाओं खासकर हायर एजुकेशन में दाखिले में महिलाओं की रेशो में गिरावट आने का मुख्य कारण सुरक्षा में कमी का होना ही है, इसीलिए इस ओर विशेष ध्यान देने की जरूरत है ताकि महिलाएं व लड़कियां खुद को सुरक्षित महसूस कर सकें।