दालों की बढ़ती कीमतों ने केंद्र व राज्य सरकारों की नींद उड़ाई

Edited By Updated: 23 May, 2016 09:40 PM

rising prices of pulses of the central and state governments flown sleep

देश में दालों की बढ़ती कीमतों को देखते हुए चाहे केन्द्र ने राज्य सरकारों को दालों पर वैट घटाने के लिए कहा था परन्तु...

जालंधर(धवन): देश में दालों की बढ़ती कीमतों को देखते हुए चाहे केन्द्र ने राज्य सरकारों को दालों पर वैट घटाने के लिए कहा था परन्तु कई राज्य सरकारें दालों पर वैट घटाने के लिए तैयार नहीं है क्योंकि उनका मानना है कि ऐसा करने से राज्य सरकारों की आमदनी हाथ से चली जाएगी। पहले ही राज्य सरकारें आॢथक संकटों में घिरी हुई हैं। वास्तव में दालों की बढ़ी कीमतों ने केन्द्र व राज्य सरकारों की नींद उड़ा दी है। 

राज्य सरकारों का मानना है कि केन्द्र को उल्टा दालों का आयात बढ़ाना चाहिए ताकि इनकी कीमतों में गिरावट आ सके। कीमते कम करने के लिए सारा बोझ राज्य सरकारों पर नहीं डाला जाना चाहिए। चालू वर्ष में दालों की मांग तथा सप्लाई में 7 मिलियन टन का अंतर माना जा रहा है। पिछले 9 वर्षों में दालों की मांग में 7 मिलियन टन की बढ़ौतरी हुई है। 
 
उड़द की दाल की कीमत औसत: 170, अरहर की दाल 140 तथा चने की दाल 70 रुपए प्रति किलो चल रही है। केन्द्र सरकार को देश में गोदामों के अंदर लगभग 9 लाख टन दालों का स्टाक रखना होता है। देश में दालों का उत्पादन चालू वर्ष में 17 मिलियन टन होगा। जबकि मांग 23.6 मिलियन टन रहेगी। यद्यपि केन्द्र 5.5 मिलियन टन दालो का आयात करने जा रहा है परन्तु उसके बावजूद देश की मांग को पूरा करना संभव नहीं होगा। 
 
दालों के साथ साथ चीनी के दाम भी पिछले कुछ समय में बढ़े हैं, जिस कारण राज्य सरकारों की नींद उड़ी हुई है। 2017 के शुरू में जिन राज्यों में विधानसभा के आम चुनाव होने हैं, वहां पर राज्य सरकारें अधिक परेशान हैं क्योंकि मंहगाई का बोझ गरीब व मध्यम वर्ग को लगातार सता रहा है। पहले भाजपा महंगाई का मुद्दा कांग्रेस के खिलाफ उछाला करती थी परन्तु अब स्वयं केन्द्र व अधिकांश राज्यों में भाजपा की सरकारें हैं, इसलिए महंगाई का मुद्दा उनके खिलाफ काम कर सकता है। 
 

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