रायपुर ब्रदर्ज ने सर्बजीत मक्कड़ की बढ़ाईं मुश्किलें

Edited By swetha,Updated: 22 Apr, 2019 09:43 AM

raipur brothers find it difficult to increase sarabjit makkar

शिरोमणि अकाली दल के टकसाली नेता माने जाते रायपुर ब्रदर्ज ने जालंधर कैंट में आदमपुर हलकेे के पूर्व विधायक सर्बजीत सिंह मक्कड़ की मुश्किलें लगातार बढ़ाई हुई हैं क्योंकि मक्कड़ के साथ उनका पुराना जमीनी विवाद चल रहा है, जिसके चलते परमजीत सिंह रायपुर व...

जालंधर(महेश):शिरोमणि अकाली दल के टकसाली नेता माने जाते रायपुर ब्रदर्ज ने जालंधर कैंट में आदमपुर हलकेे के पूर्व विधायक सर्बजीत सिंह मक्कड़ की मुश्किलें लगातार बढ़ाई हुई हैं क्योंकि मक्कड़ के साथ उनका पुराना जमीनी विवाद चल रहा है, जिसके चलते परमजीत सिंह रायपुर व उनके भाई जसपाल सिंह ढेसी साफ शब्दों में कई बार कह चुके हैं कि जब तक उन्हें जमीनी विवाद में इन्साफ नहीं मिलता, वे पार्टी के साथ नहीं चलेंगे। हालांकि उन्होंने कोई विरोध भी न करने की बात कहते हुए केवल घर ही बैठने की बात कही है।

उन्होंने तो पार्टी हाईकमान से यहां तक भी मांग की है कि मक्कड़ को जालंधर कैंट हलके के प्रभारी पद से भी हटाया जाए क्योंकि साल 2017 में मक्कड़ के छावनी से चुनाव लडऩे के समय पार्टी का आज तक का सबसे निराशाजनक प्रदर्शन रहा था जबकि 2007 में बी.डी.पी.ओ. की सरकारी नौकरी छोड़कर अकाली दल में आए जगबीर सिंह बराड़ ने स्व. मुख्यमंत्री बेअंत सिंह की बेटी गुरकंवल कौर पूर्व कैबिनेट मंत्री को करीब 18 हजार वोटों से हराकर कांग्रेस के गढ़ माने जाते जालंधर कैंट हलके का किला फतह किया था। इससे पहले लम्बे अर्से से अकाली दल जालंधर कैंट हलके में कभी नहीं जीता था। बराड़ अपने असल रसूख से अकाली दल के वोट बैंक को बुलंदियों पर ले गए थे।

बराड़ ने जब अकाली दल को अलविदा कहकर कांग्रेस का दामन थामा तो वह उनकी जगह पर 2012 में घोषित अकाली प्रत्याशी परगट सिंह से 6 हजार से अधिक वोटों से हार गए थे। परगट सिंह भी अकाली दल छोड़कर कांग्रेस में चले गए और साल 2017 के कांग्रेस के संभावित उम्मीदवार जगबीर सिंह बराड़ की टिकट छीन कर चुनाव लड़ा और मक्कड़ को 30 हजार के करीब वोटों से हरा कर सफल हो गए जबकि अनुमान यह था कि अगर बराड़़ कांग्रेस की तरफ से आते तो उनकी लीड 50 हजार से अधिक होनी थी। उन्हीं ने ही अपने सभी वर्करों को परगट सिंह के साथ चला दिया था, जो कि मक्कड़ पर काफी भारी पड़े।

वालिया भी कर रहे हैं अलग मीटिंगें
साल 2017 में आम आदमी पार्टी की तरफ से कैंट हलके से चुनाव लड़ कर 26 हजार से अधिक वोट हासिल करने वाले एच.एस. वालिया भी बाद में अकाली दल में शामिल हो गए थे लेकिन मक्कड़ के साथ उनके भी राजनीतिक संबंध अच्छे नहीं रहे। वह भी खुद को अकाली दल की टिकट के दावेदार मानते हैं।अब लोकसभा चुनावों में वह भी अटवाल के लिए अलग मीटिंगें कर रहे हैं जिसमें मक्कड़ नहीं देखे जा रहे हैं। वालिया ने कहा है कि वह पार्टी के साथ हैं और आने वाले दिनों में वह कैंट हलके में भी अपनी मीटिंगें करेंगे। उन्हें अगर पार्टी कहेगी तो वह मक्कड़ को भी मीटिंग में आने का निमंत्रण जरूर देंगे।

ऐसे में अटवाल को कैसे मिलेगी लीड
जालंधर कैंट हलके में अकाली दल की गतिविधियों को देखकर तो नहीं लगता कि इस हलके से चरणजीत सिंह अटवाल को लीड मिल सके। नेताओं के साथ-साथ वर्कर भी अलग-अलग चल रहे हैं। कैंट के मौजूदा हालात अटवाल के लिए ठीक नहीं दिख रहे हैं। कैंट में तो वैसे ही कांग्रेस पहले से ही काफी मजबूत है। रायपुर ब्रदर्ज, मक्कड़ व वालिया को अगर हाईकमान एकजुट न कर सका तो कांग्रेस को इसका पहले से भी ज्यादा फायदा मिल सकता है।

भाजपा वर्कर भी नहीं दिख रहे
कैंट हलके में अकाली दल की भाईवाल पार्टी भाजपा की भी कोई मजबूती दिखाई नहीं दे रही है। अटवाल की मीटिंगों में भाजपा के वर्कर व नेता दिखाई नहीं दे रहे हैं। इसका एक कारण यह भी सामने आ रहा है कि अकाली दल की आपसी गुटबंदी के कारण भी भाजपाइयों ने अपनी दूरी बनाई हुई है। अगर देेखा जाए तो कैंट हलके में भाजपा का वैसे भी कोई खास जनाधार नहीं है। हलके केे भाजपा वर्करों का नेतृत्व करने वाला कोई भी नेता कभी फ्रंट पर आया नहीं देखा गया।

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