सावधान! शुद्ध पानी बना दुनिया के लिए एक सपना

Edited By Punjab Kesari,Updated: 23 Mar, 2018 12:39 PM

plastic fiber is also made in a dream shop for making pure water

न्यूयार्क की स्टेट यूनिवॢसटी के शोधकत्र्ताओं ने पिछले दिनों एक रिपोर्ट में खुलासा किया है कि दिल्ली, चेन्नई, मुम्बई समेत दुनिया के 19 शहरों से बोतलबंद पानी में प्लास्टिक पाटर््स पाए गए हैं। रिपोर्ट के मुताबिक भारत, चीन, अमरीका, ब्राजील, इंडोनेशिया,...

जालंधर (सोमनाथ): न्यूयार्क की स्टेट यूनिवॢसटी के शोधकत्र्ताओं ने पिछले दिनों एक रिपोर्ट में खुलासा किया है कि दिल्ली, चेन्नई, मुम्बई समेत दुनिया के 19 शहरों से बोतलबंद पानी में प्लास्टिक पाटर््स पाए गए हैं। रिपोर्ट के मुताबिक भारत, चीन, अमरीका, ब्राजील, इंडोनेशिया, केन्या, लेबनान, मैक्सिको और थाईलैंड के बोतलबंद पानी के नमूनों का विश्लेषण किया गया।
यह तो बात बोतलबंद पानी की है, अगर यू.एस. की डाटा पत्रकारिता आऊटलैट ओरब द्वारा गठित कमीशन के अध्ययन पर नजर डाली जाए तो विश्व में कहीं भी पानी ले लें, उसमें प्लास्टिक फाइबर्स पाए जाते हैं। चाहे यह बोतलबंद पानी हो या फिर आम नलों से लिया गया जल। पत्रिका ने यह बात 5 महाद्वीपों में नलों से लिए पानी के नमूनों के अध्ययन के आधार पर कही है। रिपोर्ट के मुताबिक 83 प्रतिशत नलों के पानी में प्लास्टिक फाइबर्स है। यही नहीं, अमरीका में हुए एक अध्ययन के मुताबिक 93 प्रतिशत लोगों के खून में भी प्लास्टिक के कण पाए गए हैं। ऐसा पेशाब में थैलेट्स रसायन के पाए जाने से प्रतीत होता है।  वहीं डी.एम.सी. के डॉ. रामेश थिंद जोकि पंजाब सरकार के नोडल अफसर भी हैं, की मानें तो पंजाब में 95 प्रतिशत पानी पीने लायक ही नहीं है।  

 

भाभा अटॉमिक रिसर्च सैंटर 3 साल पहले ही चेता चुका है 


वर्ष 2015 में भाभा अटॉमिक रिसर्च सैंटर ने बोतलबंद पानी पर एक रिसर्च की थी। इसमें टैस्ट किए गए पानी में 27 प्रतिशत ब्रोमेट नामक रसायन की मात्रा तय मानकों से ज्यादा पाई गई थी। वर्ल्ड हैल्थ आर्गेनाइजेशन के मुताबिक पानी में ब्रोमेट की अधिक मात्रा जहर की तरह काम करती है। इसके अलावा बोतलबंद पानी में क्लोराइट और क्लोरेट नामक नुक्सानदायक कैमिकल की मौजूदगी भी पाई गई थी। चिंता की बात यह है कि अभी तक भारत में ऐसा कोई कानून या सिस्टम नहीं है जो बोतलबंद पानी में नुक्सानदायक कैमिकल्स की अधिकतम मात्रा तय कर सके। कुल मिलाकर कहा जाए तो देश में 100 प्रतिशत शुद्ध पानी की खोज हमारे सिस्टम के लिए सबसे बड़ी चुनौती है।

 

जल प्रदूषण से निपटने का एक कारगर उपाय 


लखनऊ स्थित भारतीय विषविज्ञान अनुसंधान संस्थान के शोधकत्र्ताओं ने प्लास्टिक कचरे से चुंबकीय रूप से संवेदनशील ऐसी अवशोषक सामग्री तैयार की है जिसका उपयोग पानी से सीफैलेक्सीन नामक जैव प्रतिरोधक से होने वाले प्रदूषण को हटाने में हो सकता है। वैज्ञानिकों ने पॉलिएथलीन टेरेफ्थैलेट (पी.ई.टी.) के कचरे को ऐसी उपयोगी सामग्री में बदलने की रणनीति तैयार की है जो पानी में जैव प्रतिरोधक तत्वों के बढ़ते स्तर को नियंत्रित करने में मददगार साबित हो सकती है। इस तकनीक से प्लास्टिक अपशिष्ट का निपटारा होने के साथ-साथ जल प्रदूषण को भी दूर किया जा सकेगा। 

 


अध्ययनकत्र्ताओं में शामिल डा. प्रेमांजलि राय ने इंडिया साइंस वायर को बताया कि आसपास के क्षेत्रों से पी.ई.टी. रिफ्यूज एकत्रित कर नियंत्रित परिस्थितियों में उन्हें कार्बनीकरण एवं चुंबकीय रूपांतरण के जरिए चुंबकीय रूप से संवेदनशील कार्बन नैनो-मैटीरियल में परिवर्तित किया गया है। डा. राय के अनुसार वैज्ञानिकों द्वारा विकसित किए गए कम लागत वाले इस नए चुंबकीय नैनो-मैटीरियल में प्रदूषित पानी से सीफैलेक्सीन को सोखने की बेहतर क्षमता है। अध्ययनकत्र्ताओं ने पाया है कि प्रति लीटर पानी में इस अवशोषक की 0.4 ग्राम मात्रा का उपयोग करने से सीफैलेक्सीन की आधे से अधिक सांद्रता को कम कर सकते हैं।     

 

पंजाब में 95 फीसदी  पानी पीने लायक ही नहीं  

 

वहीं चीन की समाचार एजैंसी शिन्हुआ के मुताबिक एडिलेड विश्वविद्यालय और दक्षिण आस्ट्रेलियाई स्वास्थ्य एवं मैडीकल अनुसंधान संस्थान के वैज्ञानिकों ने 1500 से ज्यादा पुरुषों में थैलेट्स नामक रसायन की मौजूदगी की संभावना की जांच की है। यह रसायन दिल की बीमारी और उच्च रक्तचाप व टाइप-2 मधुमेह से जुड़ा है। एडिलेड विश्वविद्यालय के सहायक प्रोफैसर जुमिन शी का कहना है कि परीक्षण के दौरान थैलेट्स की पहचान लोगों के पेशाब के नमूने से होती है। ऐसा प्लास्टिक के बर्तनों या बोतलों में रखे खाद्य पदार्थ को खाने से होता है। शी के मुताबिक ज्यादा थैलेट्स स्तर वाले पुरुषों में दिल संबंधी बीमारियां, टाइप-2 मधुमेह व रक्त दबाव को बढ़ा हुआ पाया गया है। शी के मुताबिक यह विशेष बात है कि पश्चिम के लोगों में थैलेट्स का स्तर ज्यादा है क्योंकि वहां बहुत सारे खाद्य पदार्थों को अब प्लास्टिक में पैक किया जाता है। उन्होंने कहा कि शोध में पाया गया है कि जो सॉफ्ट ड्रिंक पीते हैं और पहले से पैक खाद्य सामग्री को खाते हैं, उनके पेशाब में स्वस्थ लोगों की तुलना में थैलेट्स की मात्रा ज्यादा पाई गई। 

 

विश्व स्वास्थ्य संगठन करेगा समीक्षा

 


बोतलबंद पानी में माइक्रोप्लास्टिक के टुकड़े पाए जाने की खबरों के बीच विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यू.एच.ओ.) ने कहा कि वह इस संबंध में समीक्षा करेगा। वहीं खाद्य सुरक्षा एवं भारतीय मानक एसोसिएशन के मुख्य कार्यकारी अधिकारी पवन कुमार अग्रवाल ने कहा कि भारत में बोतलबंद पानी के लिए तय मानकों में कीटनाशकों व माइक्रो आर्गेनिज्म की जांच होती है। उन्होंने कहा कि माइक्रोप्लास्टिक की जांच के लिए कोई मानक नहीं है जैसा कि अध्ययन में संकेत दिया गया है। हमें इस मसले को समझने की जरूरत है और यह देखना होगा कि इसके लिए नए मानक बनाए जाएं या मौजूदा मानकों का उन्नयन किया जाए।  

 

पानी में माइक्रोप्लास्टिक का पता लगाने के लिए नाईल रैड डाई का प्रयोग

 


स्टेट यूनिवर्सिटी आफ न्यूयार्क के वैज्ञानिकों ने पानी में माइक्रोप्लास्टिक का पता लगाने के लिए नाईल रैड डाई का इस्तेमाल किया। डाई प्लास्टिक के कणों के साथ चिपक जाती है और कणों का रंग यैलो हो जाता है। पानी में प्लास्टिक फाइबर्स की मौजूदगी बारे ओरब मीडिया की तरफ से खोज करवाई गई है। इस अध्ययन को न तो पत्रिका में प्रकाशित किया गया है और न ही इसकी कोई वैधानिक समीक्षा हुई है। वहीं यूनिवर्सिटी ऑफ ईस्ट ऐंजलिया के वैज्ञानिक जिन्होंने नाईल रैड डाई बनाई है, का कहना है कि वह इस प्रयोग से पूरी तरह संतुष्ट हैं और इसका लैब में सावधानीपूर्वक प्रयोग किया गया है। 

Related Story

Trending Topics

IPL
Chennai Super Kings

176/4

18.4

Royal Challengers Bangalore

173/6

20.0

Chennai Super Kings win by 6 wickets

RR 9.57
img title
img title

Be on the top of everything happening around the world.

Try Premium Service.

Subscribe Now!