नगर निगम में वाटर शेयरिंग चार्ज के नाम पर हो रहा बड़ा घोटाला!

Edited By Vatika,Updated: 18 Aug, 2018 11:53 AM

jalandhar municipal corporation

वैसे तो जालंधर नगर निगम में भ्रष्टाचार व घोटाले कोई नई बात नहीं है परंतु वर्तमान समय में वाटर शेयरिंग चार्ज के नाम पर बड़ा घोटाला सामने आ रहा है। इस बारे जानकारी नगर निगम कमिश्नर दीपर्व लाकड़ा के ध्यान में आ गई है और माना जा रहा है कि जल्द ही इस...

जालंधर(खुराना): वैसे तो जालंधर नगर निगम में भ्रष्टाचार व घोटाले कोई नई बात नहीं है परंतु वर्तमान समय में वाटर शेयरिंग चार्ज के नाम पर बड़ा घोटाला सामने आ रहा है। इस बारे जानकारी नगर निगम कमिश्नर दीपर्व लाकड़ा के ध्यान में आ गई है और माना जा रहा है कि जल्द ही इस घोटाले की परतें खुल सकती हैं जिसके बाद निगम के कई अधिकारियों पर इसकी गाज गिरनी सम्भावित है। 

गौरतलब है कि हर कालोनी, हर हाऊसिंग प्रोजैक्ट तथा कमर्शियल यूज वाली बिल्डिंगों द्वारा जो पानी प्रयुक्त किया जाता है, वह पानी सीवरेज के रूप में नगर निगम के सीवर सिस्टम में जाता है। नगर निगम हर कालोनी, चाहे वह सरकारी तौर पर या गैर-सरकारी या अवैध तौर पर काटी गई हो, से वाटर शेयरिंग चार्ज लेने का हकदार है क्योंकि हर कालोनी का सीवर सिस्टम निगम के सीवर सिस्टम से जुड़ा हुआ है। यही नियम पी.ए.पी., रेलवे कालोनी जैसे बड़े परिसरों पर भी लागू होता है और पुलिस, रेलवे तथा हर सरकारी विभाग को निगम को हर साल वाटर शेयरिंग चार्ज देने पड़ते हैं।  प्राइवेट कालोनियों की बात करें तो चाहे वह अवैध रूप से ही क्यों न कटी हुई हो, अगर उसका सीवर निगम के सीवर सिस्टम से जुड़ा हुआ है तो उसे प्रति एकड़ 10 लाख रुपए से ज्यादा वाटर शेयरिंग चार्ज देने होते हैं।

जालंधर की कितनी कालोनियों से निगम वाटर शेयरिंग चार्ज वसूल रहा है। यह जांच का विषय बन रहा है। इसके अलावा हर कमर्शियल बिल्डिंग जिसमें होटल, मॉल्स आदि शामिल हैं, को भी 6 हजार रुपए प्रति मरला शेयरिंग चार्ज देने होते हैं। आरोप है कि जालंधर की कई बड़ी बिल्डिंगों से शेयरिंग चार्ज नहीं वसूले जा रहे। अगर वसूले भी जा रहे हैं तो मल्टीस्टोरी बिल्डिंगों के मामले में सिर्फ फ्लोर एरिया के चार्ज लगाकर बाकी मंजिलों के पैसे निजी जेबों में जाने की चर्चा है।

कर्मचारियों ने बना रखी है मोनोपली 
नगर निगम के वाटर टैक्स विभाग की बात करें तो यहां पिछले काफी साल चंद अधिकारियों व कर्मचारियों की मोनोपली बनी रही। इसी तरह वाटर शेयरिंग चार्ज वसूलने वाली टीम में भी चंद चेहरे सालों से जमे हुए हैं। ऐसे कर्मचारियों को हर साल अपने नियमित ग्राहकों को फायदा पहुंचाने और बदले में उनसे सेवा-पानी लेने में दिक्कत नहीं आती क्योंकि हर बार चंद चेहरे ही ऐसी वसूली हेतु जाते हैं। अब नए निगम कमिश्नर ने सबसे पहला काम कर्मचारियों/अधिकारियों की मोनोपली तोडऩे का शुरू कर रखा है।  अगर वाटर शेयरिंग चार्ज वाली टीम में भी बदलाव होता है तो काफी राज सामने आ सकते हैं। वैसे वाटर टैक्स विभाग में सुपरिंटैंडैंट की बदली के कारण माहौल काफी बदला हुआ है और काफी उथल-पुथल मची हुई है। 


हर महीने वसूली का लक्ष्य निर्धारित 
नए निगम कमिश्नर श्री लाकड़ा ने निर्देश जारी किए हैं कि वाटर टैक्स तथा अन्य टैक्सों की वसूली का हर महीने का लक्ष्य निर्धारित हो और उसे पूरा किया जाए। अभी तक तो ज्यादातर कर्मचारियों ने लक्ष्यों की पूर्ति नहीं की है परंतु आने वाले दिनों में सख्ती होने की सम्भावना है।  वाटर टैक्स के बिलिंग सिस्टम को भी रैगुलर किए जाने के प्रयास चल रहे हैं। इससे पहले शेयरिंग चार्ज वसूलने वाला दल सिर्फ मार्च के आखिरी हफ्ते में एक्टिव होता था और वाहवाही लूट लेता था परंतु अब परिस्थितियां बदलने की सम्भावना दिख रही है। 

वाटर शेयरिंग चार्ज की कई फाइलें गायब 
नगर निगम के एस.ई. किशोर बंसल ने कुछ माह पहले वाटर टैक्स विभाग से शेयरिंग चार्ज व अन्य फाइलें इत्यादि तलब की थीं। परंतु सामने आया कि वाटर शेयरिंग चार्ज से संबंधित कई फाइलें निगम रिकार्ड से गायब है या बनाई ही नहीं गई। मनमर्जी से चार्ज वसूल लिए गए। वसूले के लिए जिस जी-8 रसीद बुक का इस्तेमाल हुआ वह भी वसूली टीम की न होकर अन्य कर्मचारियों के नाम पर जारी हुई है। नियमानुसार अगर किसी रिहायशी प्रोजैक्ट या बड़ी कमॢशयल बिल्डिंग से टैक्स वसूला जाता है तो उसकी डिमांड जारी करना जरूरी होता है। शेयरिंग चार्ज से संबंधित पूरी फाइल बनती है परंतु ’यादातर मामलों में फाइल ही नहीं बनी या गायब है। अगर कमिश्नर वाटर शेयरिंग चार्ज से संबंधित कालोनियों/बिल्डिंगों की जांच करवाए और उनसे संबंधित फाइलें तलब करें तो करोड़ों का गोलमाल सामने आ सकता है।

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